गौं गौं की लोककला

संकलन

भीष्म कुकरेती

ठंठोली में (ढांगू ) पंडित पूर्णा नंद कंडवाल के जंगले दार कूड़ में काष्ठ कला

सूचना व फोटो आभार : सतीश कुकरेती , कठूड़

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 66

ठंठोली में (ढांगू ) पंडित पूर्णा नंद कंडवाल के जंगले दार कूड़ में काष्ठ कला

ठंठोली में भवन काष्ठ कला व अलंकरण -7

गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 65

संकलन - भीष्म कुकरेती

मल्ला ढांगू में ठंठोली गाँव वैद्यकी व पंडिताई हेतु प्रसिद्ध रहा है व जुड़वां गांव रणेथ में डळया गुरुओं के कारण भी प्रसिद्ध रहा है. ठंठोली व रणेथ के कारण ढांगू की पहचान मिलती थी (identity ) . ठंठोली में तिबारी व जंगलेदार मकानों की कमी नहीं है।

इसी क्रम में आज पंडित पूर्णा नंद कंडवाल के जंगलेदार मकान की चर्चा की जायेगी . छज्जा पत्थर के दासों (टोड़ी ) पर आधारित है। लकड़ी का उभरा छज्जा लकड़ी के दासों पर टिका है। पंडित पूर्णा नंद कंडवाल के जंगलेदार कूड़ (मकान ) में पहली मंजिल पर जंगल बंधा है। व इस जंगले में 16 काष्ठ स्तम्भ हियँ जो छज्जे से लगे काष्ठ छज्जे पर आधारित हैं। स्तम्भ का आधारिक भाग पर छिलवट्टी लगाई गयी है जिससे स्तम्भ का आधार को छवि मिलती है। स्तम्भ का सिरा या शीर्ष या ऊपरी भाग छत आधार काष्ठ पट्टिका से मिलता है। छत आधार के दास लकड़ी के हैं। स्तम्भ के ढाई फुट ऊंचाई से एक रेलिंग है जिस पर धातु रेलिंग हैं।

पूर्णा नंद कंडवाल के जंगलेदार भवन में लकड़ी पर केवल ज्यामितीय कला या अलंकरण हुआ है कहीं भी प्राकृतिक , मानवीय या प्रतीकात्मक (आध्यात्मिक ) चित्रण नहीं मिलता है।

ठंठोली में पूर्णा नंद कंडवाल की इस जंगलेदार मकान की मुख्य विशेषता है बड़ा मकान का होना जो इसे ठंठोली में ही नहीं क्षेत्र में भी प्रसिद्ध बना देता है।

सूचना व फोटो आभार : सतीश कुकरेती , कठूड़

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