सेमल कि लकड़ी मकान की लकड़ी, फर्नीचर के उपयोग में लायी जाती है . पहले जमाने में सेमल नाव बनाने की काम आता था। हिमालयी क्षेत्र जैसे नेपाल में सेमल माचिस की बत्ती, प्लाईवुड , वुड -वूल बनाने के भी काम आता है
उत्तराखंड में सेमल पाये जाने का उल्लेख महाभारत के वन पर्व ( महाभारत , वन पर्व, 158 /51 -52 ) में मिलता है। इसका साफ़ अर्थ है माह्भारत काल में उत्तराखंड में सेमल भोज्य समाग्री थी
वाल्मीकि रामायण के किष्किन्धा काण्ड ( सर्ग -1 ) में भी सेमल का उल्लेख है .
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में सेमल वनों का उल्लेख है।
पुराणो में शाल्मलीद्वीप का उल्लेख है मिलता है।
राज निघंटु ने सेमल का वर्णन किया है और इसे औषधि के लिए उपयोगी माना है.
छठी सदी के अमरकोश में सेमल को छह नाम दिए हैं। व सेमल के गोंद को मोचरस कहा गया है।
जॉर्ज वाट (1890 ) ने सेमल का उल्लेख किया है
स्पॉन (1886, Report on Fibers and Fibrous Substances Exhibited at Colonial India Exhibition ) में लिखा है कि सेमल एक रेशे के लिए महत्वपूर्ण बनस्पाति है।
हिमालयी क्षेत्र में सेमल का उपयोग सब्जी व अचार बनाने में होता है किन्तु सेमल कि सब्जी अधिक चिकनी होने से सभी लोग सेमल की भाजी पसंद नही करते हैं।
सेमल का आयर्वेद में भी उपयोग होता है। सेमल का गोंद कई आयुर्वैदिक दवाइयों में उपयोग होता है ।
सेमल के पके फल के रेसे रुई के काम आते हैं।
सेमल के पत्ते चारे के काम आते हैं।
Copyright @ Bhishma Kukreti 1/11/2013