बदरी बेर

हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में बहुमूल्य औषधियों की उपलब्धता और उनके चमत्कारिक गुणों का प्रमाण हमारे प्रचीन ग्रन्थों में भी मिलता है। आज भी इस क्षेत्र में बहुमूल्य पौधों की अनेक प्रजातियां पायी जाती हैं जो पीड़ानाशक के रूप में प्रयोग में लायी जाती हैं। हिमालय के उच्च पर्वतीय क्षेत्रों, खासकर शुष्क एवं अति शीतोष्ण भाग में विशेष प्रकार की कंटीली झाड़ी सदियों से उगती आयी है जिसे हम 'सीबकथोर्न' के नाम से जानते हैं। हाल में हुए अनुसंधानों के परिणामों से इस कटीली झाड़ी को हिमालय का सोना अथवा जादुई झाड़ी जैसे विशेषणों से ख्याति मिली है, जिसने अपने पोषण एवं चमत्कारिक औषधीय गुणों के कारण प्रसिद्धि पायी है।

आस्था के 'फल' से कैंसर पर वार

रानीखेत भगवान बदरीनाथ की भूमि के फल 'बदरी बेर' अब कैंसर को भी मात देगा। हिमालयी रा

भगवान बदरीनाथ की भूमि के फल 'बदरी बेर' अब कैंसर को भी मात देगा। हिमालयी राज्य में अब तक के सफल शोध ने इस लाइलाज बीमारी के खात्मे को न केवल रामबाण ढूंढ निकाला है, बल्कि औषधीय गुणों से भरपूर आस्था के इस फल ने चिकित्सा विज्ञान में अनुसंधान की नई राह भी खोल दी है। खास बात यह कि चीन से इतर उत्तराखंड में बदरी बेर के पांच उत्पाद तैयार कर लिए जाने के बाद राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड ने उच्च हिमालयी क्षेत्रों में इसका उत्पादन बढ़ाने की महत्वाकांक्षी परियोजना को हरी झंडी दे दी है। पहले चरण में पिथौरागढ़, चमोली व उत्तरकाशी में एक-एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में बदरी बेर की पौध तैयार की जाएगी।

महाऔषधीय वनों के प्रदेश हिमालय में वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता मिली है। समुद्रतल से 2200 से 3300 मीटर की ऊंचाई पर उगने वाले 'बदरी बेर' (हिपोफी सेलीसिफोलिया) पर गहन शोध के बाद कैंसर से लड़ने की दिशा में एक नई उम्मीद जगी है। चूंकि इस फल में आंवले से 16 गुना अधिक ऑक्सीडेंट पाया जाता है, लिहाजा यह कैंसररोधी का काम भी करता है। खास बात यह कि औषधीय गुणों से भरपूर आस्था से जुड़े इस फल को लोगों तक पहुंचाने के लिए इसके पांच उत्पाद जूस, जैम, जैली, अचार व मुरब्बा तैयार कर लिए गए हैं।

अनुसंधान में प्रयोग सफल होने के बाद अब जड़ी-बूटी शोध एवं विकास संस्थान (भेषज) के वैज्ञानिक इस शोध में जुट गए हैं कि फल व इसके बीज से और क्या-क्या उत्पाद बनाए जा सकते हैं। बड़ी कामयाबी के बाद राष्ट्रीय औषधीय पादक बोर्ड ने महत्वाकांक्षी परियोजना तैयार कर इसका उत्पादन बढ़ाने का खाका तैयार कर लिया है। भेषज के कुमाऊं प्रभारी डॉ. विपिन भट्ट ने बताया कि अनुसंधान के जरिये हमने बदरी बेर से पांच उत्पाद तैयार कर लिए हैं। शोध जारी अभी है, ताकि और उत्पाद तैयार किए जा सकें।

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चीन से होगी होड़

पड़ोसी देश चीन बदरी बेर के 5000 से ज्यादा उत्पाद तैयार कर चुका है। चूंकि हिमालय की संजीवनी बूटी सरीखे बदरीबेर की खूबियां उजागर हो चुकी हैं, तो भेषज अब पुन: शोध में जुट गया है। ताकि चीन की बराबरी कर देशवासियों तक अपने उत्पाद पहुंचाए जा सकें।

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सैनिकों के लिए बूस्टर डोज

उच्च हिमालयी क्षेत्रों में देश की सीमा के प्रहरी भारतीय सैनिकों के लिए खासतौर पर बदरी बेर संजीवनी बूटी से कम नहीं। वैज्ञानिकों की पहली प्राथमिकता में फौजियों तक इसके उत्पाद अधिक मात्रा में पहुंचाना है।

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बदरी बेर के गुण

-विटामिन सी व मिनरल्स का खजाना।

-ऑक्सीडेंट व न्यूट्रीएंट्स जबर्दस्त।

-बीज में ओमेगा फैट

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धार्मिक महत्व

बदरीनाथ धाम में बहुतायत में यह फल पाया जाता है, इसीलिए इसे बदरी बेर कहा गया। भगवान बदरीनाथ के सेवक एवं कुलदेव घंटाकर्ण के भोजन थाल में सजने वाली जड़ी-बूटियों में बदरी बेर भी शामिल है। इसलिए यह फल आस्था से भी जुड़ा है।

बदरी फल- सीबकथोर्न, चूक यानी अमेश- बहुउपयोगी हिमालयी फल

उत्तराखण्ड राज्य जो कि हिमालय की गोद में बसा है जिसकी वजह से यह एक खास भौगोलिक परिस्थिति रखता है जिसमें ना जाने कितने बहुमूल्य उत्पाद पैदा होते होंगे। आज हम एक ऐसे बहुमूल्य उत्पाद की बात कर रहे है जिसकी वर्तमान में शोध तथा वैज्ञानिक समुदाय में तो अच्छी पहचान है .

डॉ. राजेंद्र डोभाल, महानिदेशक -UCOST उत्तराखण्ड.

उत्तराखण्ड में बहुतायात मात्रा में उगने वाले इस उत्पाद को समान्यतः अमेज या सी-बकथॉर्न नाम से जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम Hippophae जो कि एक Elacagnaceae कुल का पादप है। इसके अन्तर्गत विश्व में पायी जाने वाली कुल 7 प्रजातियों में से पांच मुख्य प्रजातियां Hippophae rhamnoids, H.salicifolia, H.neurocarpa, H.goniocarpa तथा H.tibetana हैं तथा जिनमें से तीन मुख्य प्रजातियां Hippophae rhamnoids, H.salicifolia तथा H.tibetana भारत में पायी जाती है। अमेज का मूल यूरोप तथा एशिया से माना जाता है, वर्तमान में इसकी अच्छी मांग और उपयोगिता को देखते हुए अमेरिकी देशों में भी उगाया जाने लगा है। भारत के उच्च हिमालयी राज्यों उत्तराखण्ड, हिमाचल तथा जम्मू कश्मीर आदि में यह 2000 से 3600 मीटर (समुद्र तल से) तक की ऊॅचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है। उत्तराखण्ड राज्य के उत्तरकाशी, चमोली तथा पिथोरागढ जनपद में इसका बहुतायत उत्पाद होता है। इसे उत्तरकाशी में अमील, चमोली में अमेश तथा पिथोरागढ में चुक के नाम से जाना जाता है।

अमेश को हिपोपी भी कहा जाता है और इसमें लगने वाले फल को ही मुख्य रूप से उपयोग में लाया जाता है जिससे जूस, जेम, जेली तथा क्रीम आदि निर्मित कर उपयोग में लाया जाता है। विभिन्न वैज्ञानिक विश्लेषणों तथा इस पर हुए शोध के अनुसार यह एक विशेष पौष्टिक तथा औषधीय फल है। जिसमें कुछ विशेष औषधीय रसायन होने के कारण विभिन्न औषधीय गुण है। इसके एसेंसियल ऑयल में लगभग 190 प्रकार के बायोएक्टिव अवयव पाये जाते है। जिसकी वजह से इसके ऑयल की अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में खास मांग रहती है। प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा अन्य अमीनों एसिड की अच्छी मात्रा होने के साथ यह कैल्शियम, फास्फोरस तथा आयरन का अच्छा प्राकृतिक स्रोत है। इसमें विटामिन सी की मात्रा 695 मिग्रा/100ग्रा जो कि नीबू तथा संतरे से भी अधिक है, विटामिन ई -10 मिग्रा/100ग्रा तक तथा केरोटिन 15मिग्रा/100ग्रा तक पाये जाते है। इसके अलावा यह विटामिन के का एक अच्छा प्राकृतिक स्रोत है जो कि इसमें 230 मिग्रा/100ग्रा तक पाया जाता है। इसके फल का एक अलग ही स्वाद शायद ही

अमेश यानी सीबक्थोर्न के फलों से लकदक टहनी

किसी अन्य फल से मेल रखता हो जो कि इसमें मौजूद वोलेटायल अवयव जैसे कि इथाइल डोडेसिलोएट, इथाइल औक्टानोएट, डीलानौल, इथाइल डीकानोएट तथा इथाइल डोडेकानोएट आदि के कारण होता है। इसके अलावा यह एक अच्छा प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट का भी स्रोत है जो कि इसमें उपस्थित एस्कोर्बिक एसिड, टोकोफेरोल, कैरोटेनोइडस, फ्लेवोनोइडस आदि के कारण है। अच्छे पोषक तथा औषधीय रसायनों के कारण इसका उपयोग पाचन, अल्सर, हृदय, कैंसर तथा त्वचा रोगों में परम्परागत ही किया जाता है।

वर्तमान में अमेज से निर्मित विभिन्न व्यवसायिक उत्पाद जैसे एनर्जी ड्रिंक्स, स्किन क्रीम, न्यूट्रिशनल सप्लिमेंटस, टॉनिक, कॉस्मेटिक क्रीम तथा सेम्पू आदि बाजार में उपलब्ध है। यह त्वचा कोशिका तथा म्यूकस मेम्ब्रेन रिजेनेरेशन आदि में प्रभावी होने के कारण कॉस्मेटिक में खूब प्रयोग किया जाता है। रोमेनियो द्वारा इससे निर्मित क्रीम तथा शैम्पू विकसित कर अन्तर्राष्ट्रीय पेटेंट किया गया है। इसके अलावा अमेज को अच्छा नाइट्रोजन फिक्सेशन करने वाला पौधा भी माना जाता है जो कि लगभग 180मिग्रा/हैक्टअर प्रतिवर्ष नाइट्रोजन फिक्शेसन करने की क्षमता रखता है जो कि मिट्टी की उर्वरकता में प्रभावी होता है।

अमेश के फल बेहद खट्टे.

विश्वभर में अमेज से निर्मित विभिन्न उत्पादों की बढती मांग को देखते हुए इसका अच्छी मात्रा में उत्पादन किया जाता है। पूरे विश्व के सम्पूर्ण उत्पादन का लगभग 90 प्रतिशत उत्पादन चीन, रूस, कनाडा, मंगोलिया तथा उतरी यूरोप में होता है। प्राकृतिक रूप में लगभग 750 से 1500 किग्रा बेरी प्रति हैक्टेयर उत्पादन जंगलों से प्राप्त होता है। चीन में इसके लगभग 200 से अधिक प्रोसेसिंग प्लांट हैं। विस्तृत वैज्ञानिक तथा शोध अध्ययन के अनुसार अमेज की पौष्टिक तथा औषधीय महत्ता को देखते हुए पर्वतीय राज्य उत्तराखण्ड की आर्थिकी का बेहतर विकल्प बनाया जा सकता है।

कई उत्पाद बनते हैं अमेश -चूक- या सीबक्थोर्न से !

प्रदेश में इसके वैज्ञानिक तथा औद्योगिक तथ्यों के प्रचार प्रसार की आवश्यकता है जिससे कि इसे भी एक स्वरोजगार का उतम विकल्प बनाया जा सके।