कचनार (ग्वीराळ /क्वैराळ ) का इतिहास , सब्जी , अन्य उपयोग और इतिहास
उत्तराखंड परिपेक्ष में जंगल से उपलब्ध सब्जियों का इतिहास -5
उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --47
आलेख : भीष्म कुकरेती
संस्कृत नाम - कचनार
सामन्य हिंदी नाम - कचनार
गढ़वाली -कुमाऊंनी नाम -ग्वीराळ , क्वैराळ
25 ऊंचा पेड़ जिससे फूल वसंत में आते हैं ।
Botanical Name - Bauhinia variegata
Bauhinia जीनस की दुनिया भर में 600 species पायी जाती हैं ।
Bauhinia variegata प्रजाति का जनस्थान पूर्वी भारत व चीन है और सम्भवत: हिमालय जन्मस्थल है।
उत्तराखंड में कचनार, ग्वीराळ , क्वैराळ का उपयोग शायद 3000 साल पहले से होता रहा है।
उत्तराखंड में फूलों के महीने में कचनार के फूल देहरियों में सुबह सुबह डाले जाते हैं।
कचनार के पत्तों को पशुओं के लिए चारे के रूप में भी उपयोग होता है।
चरक संहिता व सुश्रुवा संहिता में कचनार के आयुर्वैदिक उपयोगों का उल्लेख है।
आयुर्वेद में कचनार, ग्वीराळ , क्वैराळ का औसधि उपयोग खांसी -जुकाम -सांस की बीमारियों , कोढ़ , बबासीर , जुलाब ,अल्सर जैसी बीमारियों में होता है।
ऊत्तराखण्ड में कचनार, ग्वीराळ , क्वैराळ का उपयोग इसकी कलियों से सब्जी बनाने में होता है।
ऊत्तराखण्ड में कचनार, ग्वीराळ , क्वैराळ का उपयोग घर बनाने कि लकड़ियों के लिए भी होता है।
कचनार, ग्वीराळ , क्वैराळ की कलियों की सब्जी
Copyright @ Bhishma Kukreti 30/10/2013