बागोरी गाँव (नेलांग घाटी ) में एक मकान में काष्ठ कला
गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली , खोली , कोटि बनाल ) में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी - 140
संकलन - भीष्म कुकरेती
उत्तरकाशी में स्थित नेलांग घाटी को उत्तराखंड का लद्दाख भी कहा जाता है। तिब्बत सीमा पर नेलांग घाटी में बागोरी गाँव है जो छह महीने नीति माणा तरह बीरान रहते हैं औररहवासी सर्दियों में निचली जगहों में स्थानन्तरित हो जाते हैं। बागोरी को यात्रियों के लिए 2015 में ही खोला गया भी विदेशियों के लिए यहां जाना आज भी मना है व भारतीय भी परमिट ले कर ही यहाँ यात्रा कर सकते हैं।
बागोरी में लगभग 150 घर हैं जो लकड़ी से ही बने हैं। यद्यपि कंक्रीट सीमेंट ने बागोरी पर कब्जा शुरू कर दिया है फिर भी अधिसंख्य मकान तिब्बती शैली में काष्ठ भवन ही हैं। ऊंचाई , अत्तयधिक शीत व भुकम्प संवेदनशील क्षेत्र होने से बगोरी में मकान लकड़ी के निर्मित होते थे व मकानों के तल मंजिल जानवरों या भंडार सुरक्षित होते हैं व मनुष्य पहली मंजिल पर ही रहते हैं। जौनसार , रवाईं क्षेत्र के काष्ठ भवनों व बागोरी के काष्ठ भवनों में अंतर् है कि बागोरी के भवन अधिकतर एक दुपुर हैं जबकि पारम्परिक जौनसारी भवन बहु मंजिले होते हैं। जहां जौनसारी भवनों में लकड़ी के बौळी व कड़ियों के मध्य रोड़ी से दीवालें बनती हैं बागोरी के लकड़ी के दीवारों के निर्माण में पत्थर व मिट्टी प्रयोग नहीं होते हैं , बागोरी में हिन्दू व बौद्ध दोनों पंथ के परिवार रहते हैं।
आज बागोरी के एक विशेष डेढ़ पुर भवन में काष्ठ कला , अलंकरण , लकड़ी नक्कासी पर चर्चा होगी। भवन भूतल से चार पांच फ़ीट ऊपर कड़ियों के आधार पर टिका है। फर्श है व तीनों दीवारें लकड़ी की हैं। पहली मंजिल आधा मंजिल की सामने की दीवार भी लकड़ी की है। तीनों दीवारोंकी लकड़ी पर ज्यामितीय कटान हुआ है जिन्हे आम गढ़वाली भाषा में मजबूत टिला पटिला कहते हैं से बनी हैं। मकान की छत ढलान वाली है पहले तो छत लकड़ी की ही बनी थी किन्तु अब चद्दर स इच्छा दिया गया है।
भवन के पहली मंजिल में सामने की ओर भव्य तिबारी है जो चार स्तम्भों /सिंगाड़ों से बनी है। तीन स्तम्भ में शानदार , कशिश दार नक्कासी हुयी है और एक सिंगाड़ सपाट स्लीपर नुमा बौळी /कड़ी है। प्रत्येक नक्कासीदार सिंगा ड़ के आधार चौखट डौळ का है जिसके ऊपर ड्यूल (wood ring plate ) है , जिसके ऊपर एक चौखट नुमा आकृति है जिस पर प्रतीकात्मक आकृति अंकित हुयी है। यहां से सिंगाड़ /स्तम्भ /खम्बा की गोलाई कम होती जाती है व जहाँ सबसे कम गोलाई है वहां एक ड्यूल है व ड्यूल के ऊपर उर्घ्वगामी / सीधा कमल फूल है. कमल फूल से स्तम्भ ऊपर की ओर मुरिन्ड /शीर्ष कड़ी या बौळी से मिलने से पहले थांत की शक्ल अख्तियार कर लेता है। थांत के ऊपर वनस्पति व प्रतीकात्मक (देव चक्र आदि ) का अंकन है। प्रत्येक सिंगाड़ के थांत में अलग अलग ढंग से अंकन हुआ है। कमल फूल के बगल से ही मेहराब का चाप शुरू होता है। मेहराब की चाप कटान तिप्पत्ति नुमा है। मेहराब के त्रिभुज में किनारे पर बहुदलीय फूल खुदे हैं व शानदार खूबसूरत प्राकृतिक अलंकरण की नक्कासी हुयी है।
मेहराब व स्तम्भ के ऊपर मुरिन्ड /मथिण्ड /शीर्ष कड़ी या बौळी पर भी पर्ण -लता आकृतियां खुदी है।
डेढ़ पुर की दीवारें लकड़ी के सपाट पटिलों से बनी है।
तीखी ढलान वाली छत के आधार के बाह्य पट्टिका /कड़ी में पर्ण -लता -पुष्प का सम्मिलित अलंकरण उत्कीर्णन हुआ है व बेजान लकड़ी में जान डालने में सफल हुए हैं। बीच बीच में एक या दो जगह प्रतिकात्मक चिन्हों (संभवतया शगुन हेतु ) की नकासी भी मिलती है।
लगता है भवन किसी हिन्दू परिवार का है क्योंकि कुछ प्रतीक अंकन हिन्दुओं से मिलते हैं।
निष्कर्ष निकलता है कि बगोरी (नेलंग घाटी ) के इस विशेष मकान में नक्कासी शानदार हुयी है व भवन तिब्बत्ती व गढ़वाली शैली का संगम है। आम तिब्बती भवन शैली में नक्कासीदार तिबारी स्तम्भ कम ही देखे गए है। .
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