"पहला प्यार"

वह बस में बैठा सोच रहा था कि आज वह जया से दिल की बात कह ही देगा। जब से जया आकाशवाणी में आई थी तो उसी दिन से सुन्दरम अौर उसकी गहरी दोस्ती हो गई थी। सुन्दरम की नौकरी एक साल पहले लग गई थी अौर दोनो की पोस्टिंग एक ही अनुभाग में थी तो कैंटीन में चाय व लंच एक साथ होता था। सुन्दरम दिल ही दिल में उसे चाहने लगा था। पर एक झिझक थी उसके मन में कि जया उत्तर भारतीय आौर वह दक्षिण भारतीय । अस्सी के दसक में अन्तर जातीय विवाह इतने चलन में नहीं था। पर जया का उसके लिये लंच लाना,स्वेटर हाथ से बनाना अौर बात पर उसका पक्ष लेना कहीं न कहीं सुन्दरम को उसके प्रेम की झलक लगती थी। वह सपनों में खोये आज अपनी तमन्ना पूरी करने की आस लिये बैठा था कि झटके से अचानक लालबत्ती के कारण बस चौराहे पर रुकी तो उसकी नजर नीचे सड़क पर गई।

नीचे खड़ी लाल रंग की हीरो होंडा मोटरसाइकिल की पिछली सीट पर जया बैठी नज़र आई । उसने लड़के की कमर पकड़ रखी थी अौर मुस्कुरा कर बतिया रही थी। इस से पहिले कि सुन्दरम उसको बस से ही आवाज लगाता कि मोटरसाइकिल इण्डिया गेट की तरफ दौड़ पड़ी। उसकी आंखे मुड़ कर दूर तक मोटरसाइकिल चला रहे ब्लयू जीन्स अौर सफेद कमीज पहने युवा अौर उसके पीछे पिंक कलर के सूट में बतियाती जया का दूर तक पीछा करती रही। उसक दिमाग अब सोचने लगा कि जया किसके साथ इण्डिया गेट की तरफ जा रही है । हो सकता हो उसका भाई हो या जीजा जी भी हो सकते हैं । कयोंकि जया ने उसको अपने भैया अौर जीजा के बारे में बताया था कि वह दोनो भी इण्डिया गेट के पास किसी मंत्रालय में हैं । लेकिन भैया अौर जीजा के साथ तो वह चिपक कर मुस्कुरा कर नहीं बतिया सकती। इसी उधेड़ बुन में उसका स्टेंड भी निकल गया। जब कंडक्टर ने कहा," अरे उतरेगा न कै। अखरिला स्टेंड है यू"।

तो वह बेमन से उतरा। अरे वह तो बहुत दूर अा गया था, नई दिल्ली रेलवे स्टेशन । वहीं से पंद्रह रुपये में आटो पकड़ कर आकाशवाणी भवन पहुंचा। सोचा यहीं गेट पर पान की दुकान पर खड़े होकर जया का इंतजार करेगा अौर पूछूेगा कि वह लड़का कौन था अौर सीधे कैंटीन में काफ़ी पीते हुए उस से शादी का इज़हार भी कर दूंगा। बेचारा काफी देर खड़ा उसका इंतज़ार करता रहा पर जया नहीं आई. तभी ब्रीफकेस हाथ में लिए उसका अनुभाग अधिकारी, शर्मा जी, मिल गये।

"अरे क्या बात है सुन्दर ? तुम यहां क्या कर रहा है ?" शर्मा जी ने पूछा,"चलो अन्दर"। वह बेमन से उनके पीछे- पीछे अपने कमरे में पहुँच चुका था।

सीट पर बैठ तो गया पर दराज खोलने का भी उसका मन नहीं कर रहा था। उसकी नज़र एक टक बरामदे की तरफ थी कि कब जया आये आैर वह अपनी दिल की बात उस से कहे।

"वो दादा,कहां खोया है?शर्मा जी जोर से बोले। "आज अभी तक जया नहीं आई है तो उसकी सीट पर जो बजट की स्टेटमेंटस पड़ी हैं,उनको फटाफट टाईप करके ला ,दो बजे मीटिंग है बजट की"।

"जी सर" उसने फाइल उठाकर टाईप करनी शुरू कर दी।

काम इतना था कि कब एक बज गया उसे पता ही चला। फाइल शर्मा जी को पकड़ा कर वह फिर रिसेप्शन गेट पर खड़ा होकर जया की राह देखने लगा।

ठीक दो बजे जया आई अौर सीधे जल्दी -जल्दी अपने कमरे की तरफ मुड़ गई। सुन्दरम जैसे ही उसके पास जाने को हुआ वह तेजी से आगे निकल गई ।

"जया कहाँ थी आज?तुम्हें पता था कि कितनी जरूरी फाइल टाइप करने को पड़ी थी तुम्हारे पास"?शर्मा जी ने जया को हल्के से डांट लगाई।"सुन्दर को थैंकस बोलो। उसने सारा काम कर दिया तुम्हारा"।

"सौरी सर,आज पिताजी का श्राद्ध था न, तो पंडित जी ने पूजा में देरी कर दी। मैं हाफ डे की अप्लिकेशन दे रही हूँ सर"कहते हुए जया सहाब के सामने बैठकर ही अर्जी लिखने लगी।"थैंक्स, सुन्दर" । उसने एक बार

सुन्दरम की तरफ देख कर कहा।

सुन्दरम की हालत तो ऐसे हो गयी कि जैसे काटो तो खून नहीं । कितना झूठ बोल रही है । किसी लड़के के साथ मोटरसाइकिल पर घूम रही थी अौर यहाँ पिताजी का श्राद्ध मना रही है ।

वह चुपचाप आकर अपनी सीट पर बैठ गया अौर दिखाने के लिए एक फाइल खोल ली। जया की सीट उसके बगल वाली ही थी। सोचने लगा जब जया आके बैठेगी तो मैं सच्चाई जान के ही रहूँगा कि उसने साहब से झूठ क्यों बोला। बाकी बात बाद में होंगी। थोड़ी देर में जया अपनी सीट पर बैठे अपनी टेबल की दराज खोलने लगी।

"कहाँ थी आज? मैने सुबह से काफ़ी भी नहीं पी"सुन्दरम ने धीरे से जया से पूछा।

"तो मैने मना किया था काफ़ी पीने को। पी लेते। क्या कभी कोई छुट्टी भी नहीं कर सकता अौर सुन तो लिया तुमने कि पिताजी का श्राद्ध था आज ।" जया बगैर मुंह ऊपर किए एक सांस में ही बोल पड़ी।

'अरे झूठ बोल रही हो तुम, मोटरसाइकिल में किसी के साथ घूम रही थी अौर ये क्या पिताजी का श्राद्ध " सुन्दरम धीरे से, पर गुस्से में कह रहा था ।

"अरे जब तुमने देख ही लिया था तो क्यों पूछ रहे हो"।जया ने तिरछी नज़र से सुन्दरम को देखा।"बड़ी जासूसी करते हो मेरी"।

"अच्छा, वो लड़का कौन था? तुम्हारा भाई या जीजा जी"? सुन्दरम ने धीरे से पूछा ,क्योंकि उसे लग गया था कि जया अब कुछ गुस्सा होने लगी थी।

"मेरा मंगेतर था जय सिंह। जिससे मेरी शादी हो रही है अगले महीने। तुझे कुछ तकलीफ । अब मैं सहाब को ये सब बताती, इसीलिए पिताजी के श्राद्ध का बहाना बना दिया, आजकल श्राद्ध जो चल रहे हैं । खैर तुझे क्या पता? जया ने मुस्कुराते हुए कहा।

यह सुनकर तो सुन्दरम के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। यह उसका पहला प्यार था अौर कितने अरमान सजाये थे उसने। पर वह अपने पहले प्यार का इज़हार करने में बहुत देर कर चुका था।

वह पसीने से तर बतर हो गया। उसके सारे सपने चकनाचूर हो गये थे आौर दिल के अरमान पसीने के साथ बहने लगे। वह सीधा उठा व शर्मा जी से तबियत खराब होने का बहाना बना कर आधे दिन की छुट्टी लेकर घर चला गया। उसने घर से ही मंत्रालय में मद्रास स्थानांतरण की अर्जी अौर अपने एक महीने के अवकाश आवेदन अर्जी भी साथ ही भिजवा दी थी। जो बाद में स्वीकार भी हो गई। उसका स्थानांतरण मद्रास हो गया था। उस दिन के बाद' वह कभी भी अपने पुराने आफिस आकाशवाणी भवन में नज़र नहीं आया।