गौं गौं की लोककला

संकलन

भीष्म कुकरेती

अमाल्डू (डबरालस्यूं ) के ललिता प्रसाद उनियाल ' ललाम जी ' के भव्य तिपुर भवन में काष्ठ कला व अलंकरण

सूचना व फोटो आभार : अशोक उनियाल , अमाल्डू

Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 54

अमाल्डू (डबरालस्यूं ) के ललिता प्रसाद उनियाल ' ललाम जी ' के भव्य तिपुर भवन में काष्ठ कला व अलंकरण

अमाल्डू (डबरालस्यूं में भवन काष्ठ अलंकरण कला/अलंकरण -1

डबरालस्यूं , गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों/ निमदारियों / जंगलों पर काष्ठ अंकन कला - 4

दक्षिण पश्चिम गढ़वाल (ढांगू , उदयपुर , डबराल स्यूं अजमेर , लंगूर , शीला पट्टियां ) तिबारियों , निमदारियों , डंड्यळियों में काष्ठ उत्कीर्णन कला /अलंकरण 33

गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 54

संकलन - भीष्म कुकरेती

ढांगू , उदयपुर , डबरालस्यूं , अजमेर में डबराल स्यूं में 125 -150 साल पूर्व लगभ बसे अमाल्डू गाँव का सामजिक व सांस्कृतिक महत्व है। ये चारों पट्टियां सामन्य से अधिक ब्राह्मण बहुल पट्टियां हैं , डबरालस्यूं व मल्ला ढांगू में तो गंगाड़ी ब्राह्मणो की जनसंख्या अधिक ही है। इन चार पट्टियों ब्रिटिश शासन के कुछ दशाब्दी उपरान्त सर्यूळ ब्राह्मणों की आवश्यकता महसूस हुयी तो जसपुर ढांगू में बहुगुणा , अमाल्डू में उनियाल का डिबरण उदयपुर में रतूड़ी, जल्तह में ममगाईं सर्यूळ ब्राह्मण बसाये गए। इन्हे इन पट्टियों में बामण , पंडित नहीं 'गुरु ' शब्द से भट्याया जाता था। देखा जाय तो कुछ समय पहले भी इन जातियों को बामण , पंडित नाम से भट्याने का अर्थ है इनकी बेज्जती करना।

अमाल्डू डबराल स्यूं में डवोली के दक्षिण सट कर , कूंतणी के पूर्व व कख्वळ - जल्ठ , दिख्यत के पश्चिम में बसा है। ऊणी (उत्तर गढ़वाल , उनियालों का मूलस्थान) से उनियाल यहां अमाल्डू में तिमली- डाबर - डवो ली के डबरालों ने बसाया। अमाल्डू से ही उनियाल 'कख्वळ , जल्ठ बसे। या हो सकता है प्राचीन समय में जल्ठ भी डवोली या अमाल्डू का ही भाग रहा हो। यह तो निश्चित है कि अमाल्डू पहले डवोली का ही हिस्सा था।

अमाल्डू के उनियाल शाक्त हैं और आज भी अपने समय आने पर राज राजेश्वरी मंदिर में पूजा( इनका पूजा विधान में हिस्सा बनता है ) करने जाते हैं व इनको दक्षिणा भाग मिलता है। प्रवासी रतुड़ियों , बहुगुणाओं , मँगाईयों , या थपलियालों का अपने मूल गाँव से सम्पर्क लाइन सर्वथा टूट चुकी है किन्तु ु अमाल्डू के उनियालों का राजराजेश्वरी दक्षिणा पर बराबर का हिस्सा होने से आज भी इनका सम्पर्क सूत्र ऊणी से है ही। इस बराबर सम्पर्क के कारण राजराजेश्वरी वास्तु कला का प्रभाव अमाल्डू की वास्तु कला पर पूरा है। अमाल्डू गाँव में तिपुर/ तिमंजिला मकान सामन्य अनुपात से अधिक हैं और उसका श्रेय राजराजेश्वरी वास्तु कला प्रभाव को ही जाता है। अमाल्डू में तिपुर राजराजेश्वरी दरबार की बरबस नकल भी कहलायी जाती हैं।

आज का विवेचत तिपुर है स्व ललिता प्रसाद उनियाल याने 'ललाम जी ' की भव्य तिबारी /तिपुर का। ललाम जी ' नाम से प्रसिद्ध ललिता प्रसाद उनियाल गढ़वाली के प्रसिद्ध कवि हुए हैं और अबोध बंधू बहुगुणा ने ; ललाम जी ' की रचनाओं विनोद काव्य व सासु ब्वारी की भूरी भूरी भूरी प्रशंसा की है।

'ललाम जी के 'तिपुर को कभी डबरालस्यूं की शान कहा जाता था। तिपुर देवलगढ़ की राजराजेश्वरी तर्ज पर ही निर्मित हुआ है । तिपुर /तिबारी का निर्माण काल 1935 के लगभग का है तब ' ललाम जी ' लाहौर थे।

तिपुर मकान 24 कमरों वाला है याने दुखंड , तिभित्या। हर मंजिल पर आठ कमरे। अमाल्डू हे के अशोक उनियाल प्रत्यक्षदर्शी ने 'ललिता प्रसाद उनियाल के तिपुर /तिबारी का वर्णन इस प्रकार किया है -

तिपुर में तल मंजिल , पहला मंजिल व दूसरा मंजिल है। बाहर चौक दांदण है। ऊपर जाने हेतु जो डिंड्याळी या खोळी में आती है। पहली मंजिल व दूसरी मंजिल में कुल 36 काष्ठ स्तम्भ है व साल तूण से निर्मित स्तम्भों के मध्य दूरी ढाई फिट है। दूसरी मंजिल के स्तम्भों पर अष्टदल पदम् पुष्प उत्कीर्णित हुआ है।

प्रवेश द्वार याने तल मंजिल की खोली का काष्ठ सिंगाड़ /स्तम्भ साल की लकड़ी के बने हैं व चौकोर पाषाण आधार पर टिके हैं। पाषाण आधार के बाद सिंगाड़ का कुम्भी रूप वैसे ही है जैसा तिबारी स्तम्भों में होता है। स्तम्भ के इस कुम्भी आकार के बाद डीला /धगुल या round wood plate है फिर शफ्ट /कड़ी पर वानस्पतिक /प्राकृतिक अलंकरण हुआ है। खोली के सिंगाड़ पर प्राकृतिक याने फूल , पत्तियों का अलंकरण हुआ है। बाकी जगह ज्यामितीय कला के दर्शन होते हैं। मुरिन्ड /मुण्डीर / शीर्ष पट्टिका के मध्य अष्ट दल कमल अंकित है।

ललिता प्रसाद उनियाल की इस तिबारी का निर्माण अमाल्डू के ही मृदा -पाषाण व काष्ठ शिल्पी भानाराम आर्य ने व उनके शिष्यों ने किया था। भानाराम आर्य का आज भी नाम बड़े आदर से लिया जाता है।

ललिता प्रसाद उनियाल का तिपुर /तिबारी आज भी भव्य स्थति में तो कारण उनके पुत्र द्वारा समय समय पर मरोम्मत व देखरेख।

निष्कर्ष निकलता है कि ललिता प्रसाद उनियाल का भव्य तिपुर देवलगढ़ में राजराजेश्वरी दरबार की तर्ज पर है व इस भवन में प्राकृतिक , ज्यामितीय कला, अलंकरण हुआ है . कंही भी मानवीय (मानव , पशु या चिड़िया )

ललिता प्रसाद उनियाल के तिपुर भवन के दरवाजों व खड़कियों में काष्ठ कला ज्यामितीय शैली में ही उत्कीर्ण हुयी है।

अपने समय में डबरालस्यूं के शान नाम से प्रसिद्ध यह तिपुर आज भी डबराल स्यूं मी शान ही है। ललिता प्रसाद उनियाल की नई पीढ़ी सदस्यों का धन्यवाद जिन्होंने इस भव्य भवन का नष्ट होने से बचाये रखा।

सूचना व फोटो आभार : अशोक उनियाल , अमाल्डू

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