© नरेश उनियाल,

ग्राम -जल्ठा, (डबरालस्यूं ), पौड़ी गढ़वाल,उत्तराखंड !!

सादर शुभसंध्या प्रिय मित्रों...

लॉकडाउन, लेखन और परिणिति..

आज चित्र लेखन के तहत एक रचना -

"पेड़"

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फल मिलते,मिलती छाया है,

शीतल जल, इनकी जाया है,

मीत, सखा हैं, ये भाई हैं !

काटो मत, जीवनदायी हैं !!


हे लौह! तेरी औकात नहीं है,

मुझको काटे?तेरी काट नहीं है,

पर तुझमे, जो घुसा हुआ है,

दुर्भाग्य !! वो अपना ही भाई है !!


काटो गर एक, सहस्र लगाओ,

थोड़ा सा तो पुण्य कमाओ !!

पेड़ को निरा, पेड़ ना समझ,

प्राणवायु की ये माई है !!


काटो मत जीवनदायी है,

काटो मत जीवनदायी है!!"