गौं गौं की लोककला

कुलसारी (नारायणबगड़ , चमोली )में हंसराज का भव्य मकान में काष्ठ कला, अलंकरण अंकन , लकड़ी नक्काशी

सूचना व फोटो आभार : उमेश पुरोहित

Copyright

Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 186

कुलसारी (नारायणबगड़ , चमोली )में हंसराज का भव्य मकान में काष्ठ कला, अलंकरण अंकन , लकड़ी नक्काशी

गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली , खोली , मोरी , कोटि बनाल ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्काशी - 186

(अलंकरण व कला पर केंद्रित )

संकलन - भीष्म कुकरेती

चमोली, रुद्रप्रयाग , जौनसार बाबर , रवाई , गर्ब्यांग , धानाचुली आदि क्षेत्रों से अनोखे Exotic काभवनों व उन पर अनोखी काष्ठ कलाकारी की रोज फोटो सहित सूचना मिलती रहती है। मित्रों के सहयोह का ही कारण है कि अब लेखक को यह सोचना पड़ता है पहले किस भवन से षुरूवर करूँ और इस भवन से शुरू करता हूँ तो दूसरा भवन छूट जाएगा का दुःख भी।

आज मुंबई में रहने वाले उमेश पुरोहित द्वारा सूचित कुलसारी (नारायण बगड़ , चमोली गढ़वाल ) के एक भव्य मकान में काष्ठ कला पर चर्चा होगी। उमेश अनुसार इस भवन में ‘घरजवैं ‘फिल्म की सूटिंग भी हो चुकी है। कुलसारी गाँव धीरज सिंह नेगी सरीखे नगर श्रेष्ठियों का गाँव है। समृद्धि की झलक कुलसारी में भवनों पर साफ़ झलकती है। सूचना मिली है ऐसे ही कुछ मकान और भी कुलसारी गांव में हैं।

प्रस्तुत बहन तिपुर (तल मंजिल +2 पुर ), दुखंड /दुघर है व घर के हर खंड में कला व समृद्धि झलकती है। काष्ठ कला दृष्टि से भी कलासारी के इस भवन में उकृष्ट किस्म की कलाकारी , नक्काशी मिलती है। कला का जहां सवाल है टिन की छत के ऊपर त्रिभुजाकार चिमनी भी ज्यामिति कला का अध्भुत नमूना है।

विवेचना हेतु मकान में निम्न भागों में कला , नक्काशी समीक्षा आवश्यक है

तल मंजिल के दोनों कमरों के दरवाजों व मुरिन्ड ऊपर ज्यामितीय काष्ठ कला

तीनों मंजिल में छोटी छोटी कुल 12 मोरियों में बारीक काष्ठ कला /नक्काशी

तल मंजिल मे से शुरू हो पहली मंजिल तक चली खोली व खोली ऊपर , अगल बगल में बारीक कला अंकन।

पहली व दूसरी मंजिल में बड़ी बड़ी मोरियों या (कुमाऊं में जिन्हे छाज कहा जाता है। ) में कला प्रदर्शन।

तल मंजिल के दोनों कमरों के दरवाजों में ज्यामितीय कटान हुआ है व एक द्वार के मुरिन्ड ऊपर त्रितोरण /तीनमहराब आकृति पट्टिका स्थापित हुयी है। यह त्रितोरण आकृति मकान की सुंदरता में वृद्धिकारक आकृति है।

तीनों पुरों /मंजिलों में हर मंजिल में चार याने कुल 12 मोरियां या झरोखे स्थापित हैं। प्रत्येक मोरी का स्तम्भ कुमाऊंनी बाखली के लघु मोरियों /झरोखों जैसे कई लघु स्तम्भों के युग्म /जोड़ से बना है।

इस भवन में तीन लघु स्तम्भों से मोरी के दो मुख्य स्तम्भ बने हैं । इस भवन की प्रत्येक मोरी के लघु स्तम्भ आधार पर उलटे कमल फूल से कुम्भी बनी है ऊपर ड्यूल है व फिर सीधा कमल फूल अंकन है व यहां से स्तम्भ सीधा हो ऊपर मुरिन्ड की एक कड़ी बन जाता है और यह क्रम 12 के 12 मोरियों में उपश्थित है याने मकान में मोरियों पर शानदार , बारीक, दिलकश नक्काशी युक्त 72 लघु स्तम्भ हैं।

खोली की कला तो दर्शनीय है। तल मंजिल से पहली मंजिल तक खोली है। खोली के दोनों ओर स्तम्भ हैं। खोली के दोनों मुख्य स्तम्भ चार स्तरीय (तह ) लघु तंभों के जोड़ (युग्म ) से बना है याने चौगट स्तम्भों से मुख्य स्तम्भ बनते हैं। खोली में स्तम्भों के निर्माण में इस तरह का जटिल कला उत्तराखंड ही नहीं अपितु हिमाचल के जौनसार -रवाई क्षेत्र व नेपाल के डोटी व नेवार क्षेत्रों में भी मिलती है .

दोनो उपस्तम्भों उसी तरह कमल , ड्यूल की आकृतियां अंकित हैं जैसे मोरियों के लघु स्तम्भों में प्रकट हुयी है। अन्य दो उप स्तम्भों में से एक में प्राकृतिक नक्काशी हुयी है व एक सीधी है। सभी उप स्तम्भ ऊपर जाकर मुरिन्ड की कड़ी बन जाते हैं यह रूप प्रतिरूप भी मध्य हिमालय (हिमाचल, उत्तराखंड , नेवार , डोटी ) के सभी भागों में देखने को मिला है या कमोवेश रूप से एक जैसा ही है। खोली के मुरिन्ड में देव आकृति अंकित हुयी है।

छपपरिका के नीचे मुरिन्ड के ऊपर दोनों ओर दो दीवालगीर (bracket ) फिट हैं (कुल चार ) व प्रत्येक दीवालगीर में ऊपर नीचे ज्यामितीय व पक्षी नुमा सुडौल आकृतियां हैं उनके बीच एक एक हाथी अंकित है। छपपरिका से मुरिन्ड ओर झालर आकृति भी लटकती सुशोभित है।

पहली व दूसरी मंजिल में कुल मिलकर बड़े बड़े मोरी या तिबारी जैसे ही ख्वाळ हैं - दो पहली मंजिल ंव तीन दूसरी मंजिल में। स्तम्भ व मुरिन्ड में कला दृष्टि से इन ख्वाळों /बड़ी मोरियों में कला , अलंकरण बिलकुल छोटी मोरियों जैसे ही है बस आकर में ही अंतर है। बड़ी बड़ी मोरियों के द्वारों में ज्यामितीय कटान से दिल्ले /पैनल बनाये गए हैं।

कुलसारी (नारायण बगड़ , चमोली गढ़वाल ) के इस मकान निर्माण में मिट्टी -पत्थर- टिन व लकड़ी का प्रयोग हुआ है व सभी माध्यमों के मध्य सामजस्य बढ़िया तरीके से हुआ है जिसे गढ़वाली में कहा जाता है बल छंद से बिठाये गए हैं।

कलाओं में सामजस्य व रेखाओं में सामजस्य , अकार में अनुपातिक समरसता , गति व ताल का पूरा ख्याल , दोहराव आदि कारकों का पूरा ध्यान ओड व बढ़इयों ने रखा है।

मकान 1950 के करीब का निर्मित हुआ होगा क्यंकि भवन की बनावट में ब्रिटिश शैली का अनुसरण हुआ है।

सहर्ष निष्कर्ष निकल जाता है कि भव्य मकान में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मान्वित तीनों अलंकरण का अंकन हुआ है व कला संगठन तकनीक /ब्यूंत का पूरा ध्यान रखा गया है

सूचना व फोटो आभार : उमेश पुरोहित

यह लेख भवन कला संबंधित है न कि मिल्कियत संबंधी . मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: वस्तुस्थिति में अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020