कालू महरा

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी – कालू महरा

1856 से 1884 तक पौड़ी-गढवाल और कुमाऊं क्षेत्र हेनरी रैमजे के शासन में रहा। इस दौरान कुमाऊं के काली क्षेत्र में कालू मेहरा द्वारा गुप्त संगठन बनाए जाने और विद्रोह की तैयारियों के प्रमाण मिलते हैं। कालू मेहरा को उत्तराखण्ड का प्रथम स्वतंत्रता सेनानी माना जाता है। नाम – कालू सिंह महरा

जन्म – 1831

स्थान – चंपावत , उत्तराखंड

कालू सिंह महरा का जन्म उत्तराखंड के चंपावत जिले में हुआ। कालू सिंह महरा ने युवावस्था से ही अग्रेजो के खिलाफ जंग शुरू कर दी थी।

इनकी देश की आजादी की पहली लड़ाई में काली कुमाऊं की अहम भूमिका रही है। यह से अग्रेजो की हुकूमत के खिलाफ विद्रोह भले ही अंजाम तक न पंहुचा हो लेकिन ब्रिटिश हुकूमत की जेड हिला देने वाले विद्रोह ने क्रांति को एक नया रंग दे दिया।

काली कुमाऊं में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत का झंडा कालू सिंह महरा ने बुलंद किया। पहले स्वतंत्रता संग्राम में काली कुमाऊं के लोगों की मंशा को भी विद्रोह के जरिए जाहिर करावा दिया। इसकी क़ुरबानी उन्होंने स्वयं तो चुके ही साथ ही उनके दो घनिष्ठ मित्र आनंद सिंह फत्र्याल व विशन सिंह करायत को अंग्रेजों ने लोहाघाट के चांदमारी में गोली से उड़वा दिया।

आजादी की पहली लड़ाई काली कुमाऊं में जो हुआ वो आज भी इतिहास के पन्नो में दर्ज है कालू सिंह महरा का जन्म लोहाघाट के नजदीकी गांव थुआमहरा में 1831 में हुआ। कालू सिंह महरा ने अपने युवा अवस्था में ही अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद किया। इसके पीछे मुख्य कारण रूहेला के नबाव खानबहादुर खान, टिहरी नरेश और अवध नरेश द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ बगावत के लिए पूर्ण सहयोग सशर्त देने का वायदा था।

सके बाद कालू माहरा ने चौड़ापित्ता के बोरा, रैघों के बैडवाल, रौलमेल के लडवाल, चकोट के क्वाल, धौनी, मौनी, करायत, देव, बोरा, फत्र्याल आदि लोगों के साथ बगावत शुरू कर दी और इसकी जिम्मेदारी सेनापति के रूप में कालू माहरा को दे दी गई।पहली सफलता के बाद नैनीताल और अल्मोड़ा से आगे बढ़ रही अंग्रेज सैनिकों को रोकने के लिए पूरे काली कुमाऊं में जंग-ए-आजादी का अभियान शुरू हुआ।

किरमौली गांव में गुप्त छुपाए गए धन, अस्त्र-शस्त्र को स्थानीय लोगों की मुखबिरी पर अंग्रेजों ने अपने कब्जे में ले लिया और काली कुमाऊं से शुरू हुआ आजादी का यह अभियान बस्तिया में टूट गया.

कालू महरा को जेल में डाल दिया गया।

अंग्रेजों का कहर इसके बाद भी खत्म नहीं हुआ और अस्सी साल बाद 1937 तक काली कुमाऊं से एक भी व्यक्ति की नियुक्त सेना में नहीं की गई। कालू महरा का घर आग के हवाले कर दिया गया