म्यारा डांडा-कांठा की कविता

घन्टा,

घन्टा,

शब्द ब्रहा है जै से प्रकट ,

करद सचेतन दुनिया तैं

आत्मज्ञान को महासूत्र तुम ,

समझा मित्रो घन्टा तैं


ओम ओम जो ब्रहाक्षर च

जै से निकल आत्म विज्ञानं

निराकार की अभीव्यक्ति को,

घन्टा वो चा एक महान


शिव को डमरू, शंख विष्णु को,

ब्रह्रमा जी को वेद विज्ञानं

परम पुरुष की आदि शक्ति को ,

घन्टा सबि ये एक समान

ध्यान योग मा घन्टा ध्वनी की ,

महिमा को सुन्दर वर्णन चा

दयबता दैंत मनिख यूँ सबु चै,

घन्टा भौत पुरातन चा


देवी दयबता सबी मुग्ध ही ,

ब्रह्रमा शंकर नारायण

न्योछावर छिन सब घन्टा फर,

भागवत, गीता ,रामायण (१९६२)