गौं गौं की लोककला

ढांगू संदर्भ में गढ़वाल की लोक कलाएं व भूले बिसरे कलाकार श्रृंखला - 4

ठंठोली (मल्ला ढांगू ) की लोक कला , शिल्प व भूले बिसरे लोक कलाकार

ढांगू संदर्भ में गढ़वाल की लोक कलाएं व भूले बिसरे कलाकार श्रृंखला - 4

ठंठोली (मल्ला ढांगू ) की लोक कला , शिल्प व भूले बिसरे लोक कलाकार

ढांगू संदर्भ में गढ़वाल की लोक कलाएं व भूले बिसरे कलाकार श्रृंखला - 4

(चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं है )

संकलन - भीष्म कुकरेती

ठंठोली मल्ला ढांगू का महत्वपूर्ण गाँव है। कंडवाल जाति किमसार या कांड से कर्मकांड व वैदकी हेतु बसाये गए थे। बडोला जाति ढुंगा , उदयपुर से बसे। शिल्पकार प्राचीन निवासी है। ठंठोली की सीमाओं में पूरव में रनेथ , बाड्यों , छतिंडा व दक्षिण पश्चिम में ठंठोली गदन (जो बाद में कठूड़ गदन बनता है ) , दक्षिण पश्चिम में कठूड़ की सारी , उत्तर में पाली गाँव हैं।

ठंठोली की लोक कलाओं के बारे में निम्न सूचना मिली है -

लोक गायन व नृत्य - आम लोग , स्त्रियां जाती हैं , गीत भी रचे जाते थे। सामूहिक व सामुदायक नाच गान सामन्य गढ़वाल की भाँती। घड़ेलों में जागर नृत्य भी होता है। बादी बादण नाच गान व स्वांग करते थे। बिजनी के हीरा बादी पारम्परिक वादी थे। कुछ लोग स्वयं स्फूर्ति से भी स्वांग करते थे। बादी हर बारह वर्ष में लांग खेलते थे।

वाद्य बादन - बांसुरी बादन आम था , अलगोजा भी बजाया करते थे। बादी हारमोनियम भी बजाते थे। जागरी थाली व डमरू बादन करते थे। हंत्या घड्यळ के जागरी ठंठोली नाम चतुर था।

ढोल वादक - ढौंर के कुशला व सुतला। मुशकबाज बागों के कलाकार।

सिद्धि दर्शन - बीसवीं सदी मध्य तक चोर पकड़ने , खोई वस्तु या जानवर खोजने हेतु मंत्र बल पर पुरुषोत्तम कंडवाल घड़ा रिटाते थे व घड़े के ऊपर मकर राशि के रामचरण कंडवाल बैठते थे

रणेथ (ठंठोली का भाग ) डळया गुरु कई तंत्र मंत्र के विशेषज्ञ थे।

समस्या पूर्ति या पहेलियाँ ज्ञान - तकरीबन हर नागरिक पहेली , कहावतों , का ज्ञान रखता था।

कोशों का ज्ञान - आयुर्वेदिक वैद्य होने के लिए वैदकी सीखना सामन्य चलन था। संस्कृत का ज्ञान पहले घर में दिया जाता था।

सर्यूळ - बडोला व कंडवाल, कुकरेती सर्यूळ (सामहिक भोजन बनाना ) का कार्य करते थे।

पेय पदार्थ (कच्ची शराब ) - भवा नंद कंडवाल प्रसिद्ध थे।

बढ़ईगिरी - शिल्पकार , बाड्यों के व ठंठोली के थे

बांस के वर्त्तन - बाड्यों के चिरुड़ व गोबिंदराम

पत्थर खान - ठंठोली में मलण गाँव में छज्जे के दास , उरख्यळ (ओखली ) , सिल्ल बट्ट हेतु पत्थर की खाने थीं व पत्थर निकालने व कटान के कलाकारों में रीठू , बेळमू , पन्ना लाल व उनके पुरखे प्रसिद्ध थे

लोहार गिरी - स्थानीय शिल्पकार में रीठू , बेळमू , पन्ना लाल

सुनार - जसपुर व पाली (मल्ला ढांगू ) पर निर्भर

टमटागिरी (ताम्बा , पीतल , कैसे के बर्तन निर्माण आदि ) - पूर्णतया जसपुर पर निर्भर

घराट - बाड्यों के शिल्पकारों पर निर्भर

कूड़ चिणायी (मकान निर्मणाकरता ओड ) - सौड़ व जसपुर के ओडों पर निर्भर

भ्यूंळ की टोकरी , दबल आदि स्थानीय लोग स्वयं निर्मित करते थे

माला आदि फूलों से बनाते थे व बच्चों की सुरक्षा माला जिसमे कौड़ियां , बघनखे , चांदी/ताम्बे के सिक्के , अजवायन थैली भरके बनाई जातीं थीं व कंडवाल पंडित विशेज्ञ होते थे।

मुख पर रंग व उबटन की प्रथा विवाह अवसर पर थी। दूल्हा दुल्हन को विष्णु व लक्ष्मी रूप दिया जा था।

गहने पहनने हेतु शरीरांग छेदन होता था व अधिकतर लोहारों की सहायता ली जाती थी। बचपन में लड़कियां तोर या वनस्पति के गहने बनाकर पहनते थे ,

ज्योतिष व कर्मकांड में पुरुषोत्तम कंडवाल , भैरव दत्त कंडवाल , दामोदर कंडवाल , दिनेश कंडवाल , राधाकृष्ण कंडवाल , किसन दत्त कंडवाल आदि वैद्य व भेषज प्रसिद्ध थे। भैरव दत्त कंडवाल व्यास वृति हेतु प्रसिद्ध थे। कर्मकांडी ब्राह्मण तकली कातकर जनेऊ निर्माण करते थे। जन्म पत्रियों पर विभिन्न चित्रकारी भी करते थे , पूजन समय कई कला प्रदर्शन होते थे -जैसे चौकल में में गणेश थरपण।

वैद्यों में जय दत्त कंडवाल ,हरि दत्त , पुरोषत्तम कंडवाल व किसन दत्त कंडवाल नामी वैद्य थे।

लकड़ी की नक्कासीदार आलिशान तिबारियां भी ठंठोली में थी व मलूकराम बडोला (नंदराम नारायण दत्त बडोला के दादा ) , , राजाराम बडोला , बास्बा नंद कंडवाल, जय दत्त कंडवाल, पुरुषोत्तम कंडवाल , रामकिसन कंडवाल आदि सात तिबारियां थीं। इनमे देवताओं को छोड़ पशु , पक्षियों व अन्य नक्कासी थी।

मकानों की लिपाई लाल या काली मिट्टी के साथ गोबर से होती थीं। व कमेड़ा भी प्रयोग होता था

लोक खेलों में - गारि /गिट्टे पाछ गारी, - गारि क्वाठा म डळण घिरपातयी , इच्चि दुच्ची , लुक्का छिपी -,घुंड फोड़ -, काणो बणिक पकड़न ,पकड़ा पकड़ , इकटंगड्या -छौंपा दौड़ , डुडड़ कूद याने रस्सी कूद खेल , रस्सा कस्सी, कुद्दी मरण /फाळ मरण, झुळा खिलण , बा कटण (तैराकी ) , डाळम चढ़ण, पत्थर घुरैक चुलाण , घुंघरा घुराण , - बाग़ बकरी खेल , गुच्छी खिलण कांचक या पथरक गोटी खिलण, इलाड़ु का घट्ट रिंगाण, रड़न , खाडु लड़ान . तीर चलाण - मल्ल युद्ध व मुक्केबाजी , तास खिलण , चौपड़ खेल , खुट गिंदी , हिंगोड़, हथ गिंदी , गिल्ली डंडा खेल, सिमनटाई /पिट्ठूपोड़ - , कबड्डी - खो खो - ,माछ मरण - अयेड़ी खिलण, ब्यौ मा -हल्दी लगाण , कंगण तुड़न ; रिंगण -,ग्यूं या अन्य फसल का बलड़ों म छजजा से , तमाखु बूंद दैं नचण , गिगड़ुं लड़ै मुख्य खेल थे कई खेल आज भी विद्यमान हैं।