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लोहाघाट के उच्च शिक्षित रघुवीर खेती से कमा रहे लाखों रुपये, पेश की मिसाल

पर्वतीय क्षेत्रों में जो लोग काश्तकारी को घाटे का सौदा बता रहे हैं उनको आइना दिखाने का काम उच्च शिक्षा प्राप्त रघुवर कर रहे हैं। वह आज असिंचित खेती में लाखों की नगदी फसलें उगाकर उम्मीद जगा रहे हैं। यही नहीं खेती से आज उनकी अच्छी खासी आमदनी भी हो रही है। लोहाघाट के विशुंग क्षेत्र निवासी रघुवर दत्त्त ने काश्तकारी के क्षेत्र में मत्स्य, मुर्गी पालन व परंपरागत कृषि व सब्जी उत्पादन कर क्षेत्र के बेरोजगार युवाओं के लिए मिशाल कायम की है। शिक्षित युवा रघुवर मुरारी ने खेती को अपना कर पर्वतीय क्षेत्र के युवाओं के लिए प्रेरणा नही बल्कि अपनी आजीविका का साधन भी काश्तकारी को बनाया है।

इन्होंने वर्ष 2000 में लखनऊ से स्नातकोत्त्तर को शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत खेती करने का फैसला लिया। शुरुआत में यह आसान न था, न ही सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था और न खेती करने का पर्याप्त अनुभव व ज्ञान था। गांव के बड़े बुजुर्गों से खेती का अनुभव लिया और कृषि विज्ञान केंद्र व कृषि एवं उद्यान विभाग से तकनीकी जानकारी प्राप्त की। उनकी मेहनत का नतीजा यह निकला कि आज वह प्रति सीजन एक से डेढ़ लाख रुपये की सब्जियां बेच रहे हैं। सिंचाई के लिए बरसाती पानी का संग्रह किया फिर उससे फसलों की सिंचाई के उपयोग में लाए। उन्होंने बताया यदि पलायन रोकना है तो खुद ही पहल करनी होगी। वह अन्य लोगों को भी आधुनिक खेती अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

यह उगाते हैं नगदी फसलें

लोहाघाट : अपनी असिंचित भूमि में नगदी फसलें उगा रहे हैं। जिनमें आलू,बीन, मटर, बंद गोभी, राई, मूली, खीरा, बैंगन, कद्दू, टमाटर, लौकी, लहसून, अदरक, हल्दी, शिमला मिर्च आदि नगदी फसलें प्रमुख हैं। उनका अधिकांश समय खेतों में ही व्यतीत होता है। खास बात यह है कि वे जैविक तौर तरीकों से सब्जी का उत्पादन करते हैं। वे रासायनिक खाद व दवा का प्रयोग नही करते हैं। उनकी प्रेरणा से क्षेत्र के अन्य लोग भी अब इस तरह की खेती कर अपनी आर्थिकी मजबूत करने में लगे हैं।

मुर्गी व मछली पालन को बनाया रोजगार का साधन

लोहाघाट : मुर्गी पालन के लिए पानी तालाब के पास मुर्गी घर का निर्माण करवाया। मुर्गी पालन का कार्य शुरू किया। जिसमें 60 से 80 कोईलर मुर्गी है। मुर्गी घर में इक्कठे बीट को मछली तालाब डाल दिया जाता है। दाने मछली खा जाती है। बीट तालाब में खाद का काम करती है। जिससे मछलियों को प्राकृतिक भोजन, काई का उत्पादन होता है। इससे मछलियों को अलग से आहार देने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। उन्होंने बताया मछली उत्पादन करने में लागत कम आती है।

कई समितियों ने किया सम्मानित

लोहाघाट : काश्तकार के प्रयासों के को देखते हुए विभिन्न संस्थाओं द्वारा रघुवर को पुरस्कृत कर सम्मानित किया गया। वर्ष 2009 में ग्राम्या द्वारा जल संरक्षण हेतु कृषक पुरस्कार, वर्ष 2010 में पंतनगर कृषि अनुसंधान जनपद का प्रगतिशील कृषक, 2010 आत्मा परियोजना द्वारा किसान श्री पुरस्कार, वर्ष 2013 में वाइब्रेंट गुजरात वैश्विक कृषि समिति 2013 में प्रतिभाग के लिए चयन हुआ। जिला उद्यान अधिकारी एनके आर्या नकदी की फसलों को उगाने का कार्य प्ररेणादायी है। विभाग ने उनके कार्यो को नजदीक से देखा है। विभाग ने कृषि यंत्र उपलब्ध कराए जिसका उन्होंने सदुपयोग किया।