उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास भाग -54
उत्तराखंड परिपेक्ष में लिंगुड़ इतिहास , सब्जी , औषधीय उपयोग,अन्य उपयोग और
उत्तराखंड परिपेक्ष में जंगल से उपलब्ध सब्जियों का इतिहास -12
उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास --54
आलेख : भीष्म कुकरेती
Botanical name - Diplazium esculentum
Common Name -Edible Fern
गढ़वाल -कुमाऊं -लिंगड़ , लिंगुड़
हिमाचल प्रदेश -लिंगडी
सिक्किम -निंगरु
अन्य भारतीय उत्तर पूर्वी प्रदेश -धेकिया
पूर्वी नेपाल - निंगरो /निंगडो
पश्चिमी नेपाल -नियुरो (मतलब मुड़ा हुआ )
बंगलादेश -धेकि शाक
चीनी नाम -पाकु
लिंगुड़ एक फर्न है जो समुद्र तल से लेकर 1500 मीटर सकता है.कहीं कहीं 2300 मीटर तक भी देखे गए हैं। अधिकतर 80 cm ऊँचे फर्न पाये जाते हैं।
लिंगुड़ का जन्म स्थल दक्षिण -पूर्वी एसिया है याने भारतीय उप महाद्वीप लिंगुड़ का जन्मस्थल भी हो सकता है।
चरक संहिता या अन्य आयुर्वैदिक पुस्तकों में कई फ़र्नों के उपयोग का उलेख हुआ है।
लिंगुड़ भारतीय महाद्वीप , चीन , तिबत , मलेसिया , कम्बोडिया , लाओस ,इंडोनेसिया , सिंगापुर , जापान, कोरिया आदि देसों में पाया जाता है। भारत में हिमालय की पहाड़ियों में लिंगुड़ का प्रयोग सब्जी व औषधि में होता है
ऐसा लगता है कि लिंगुड़ उत्तराखंड में पांच हजार साल से मनुस्य के काम आता रहा होगा . शायद आग अपनाने के कुछ सैकड़ों साल बाद मनुष्य ने लिंगुड़ को भूनकर खाना शुरू कर दिया होगा।
100 ग्राम लिंगुड़ की पत्तियों में पानी ( 90 मिलि ग्राम ), प्रोटीन (3. 1 ग्राम ); फाइबर ( 1. 2 ग्राम) ;राख ( 1 . 2 ग्राम ); पोटासियम (115 मि ग्राम ) कैल्सियम (22 ) मिली ग्राम ),लौह (1 . 2 mg ) पाया जाता है।
लिंगुड़ और खुंतुड़ नाम की पीछे क्या तिब्ब्ती भाषा का कोई प्रभाव होगा ?क्या लिंगुड़ उत्तराखंड के खश बोली (2500 साल पहले ) का शब्द है ?
लिंगुड़ के औषधीय उपयोग
लिंगुड़ दस्त , कबज आदि में औषधि के रूप में उपयोग होता है।
माओं को बच्चा पैदा होने के बाद टॉनिक के रूप में , रुधिर रोकने में कुछ देसों में लिंगुड़ का उपयोग किया जाता है।
वैज्ञानिक अमित सेमवाल और ममता सिंह के अनुसार गढ़वाल -कुमाऊं में लिंगुड़ के कई लोक औषधि उपयोग है जैसे - दस्त दूर करने , टॉनिक ,जुकाम , खांसी , पेट के दर्द , पेट की कृमियां दूर करने , कीड़े मकोड़े दूर करने में लिंगुड़ का उपयोग होता है। अमित सेमवाल ने सिद्ध किया है कि लिंगुड़ में एंटी-बैक्टेरिया के गुण हैं।
ध्यानी ने एक वैज्ञानिक लेख में लिखा कि लिंगुड़ गढ़वाल में आयुर्वैदिक औषधि में अष्टवर्ग पौधों में से एक पौधे के रूप में महत्वपूर्ण पौधा है.
लिंगुड़ की सब्जी
लिंगुड़ दो प्रकार क होते है एक खाने योग्य दूसरे विषैले अथवा ना खाने लायक।
सब्जी के लिए मुड़ी हुयी कच्ची उम्र की लाल भूरी रंग की कोपल/डंठल का ही उपयोग होता है।
सबसे पहले डंठलों को कपड़े से साफ़ करते हैं जिससे डंठल से रेसे निकल आयें।
फिर लिंगुड़ को राई जैसे काटते हैं या सीधा उबालते हैं और फिर उबाले डंठलों को काटा जाता है।
फिर उबली कटी डंठलों के पानी को निखार कर इन्हे थाली में रख देते हैं।
कढ़ाई में कडुवा तेल गरम किया जाता है और उसमे जख्या /जीरा /धनिया या भांग का तड़का छौंका डाला जाता है।
फिर उबले- कटे लिंगुड़ डालते है, भूना जाता है व साथ में मसाले, नमक , टमाटर डालकर पांच -सात मिनट पकने दिया जाता है।
पहाड़ों में लिंगुड़ का समय और प्याज का समय गर्मियों में होता है। तो प्याज की पत्तियों के साथ लिंगुड़ की मिश्रित सब्जी भी बनायी जाती है।
लिंगुड़ का सुक्सा व अचार भी बनाया जाता है .
प्रवासियों में पारम्परिक भोजन प्रेम जागरण आने से अब कोटद्वार , ऋषिकेश अदि सब्जी मंडियों लिंगड़ /खुन्तड़ मिल जाते हैं
Copyright @ Bhishma Kukreti 7 /11/2013