गौं गौं की लोककला

हरसिल में विल्सन का 1843 -44 में निर्मित विल्सन कॉटेज में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , लकड़ी पर नक्कासी

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- शिव प्रसाद डबराल , व मनोज इष्टवाल , उत्तराखंड टूरिज्म सूचना विभाग

फोटो - स्वामी उपेंद्र व उत्तराखंड टूरिज्म विभाग

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 161

हरसिल में विल्सन का 1843 -44 में निर्मित विल्सन कॉटेज में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , लकड़ी पर नक्कासी

गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली , खोली , कोटि बनाल ) में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी - 161

संकलन - भीष्म कुकरेती

हरसिल का राजा या पहाड़ी विलसन या फ्रेड्रिक विलसन का गढ़वाल इतिहास में टिहरी राजा से अधिक चर्चित हुआ था। विलसन सन 1830 से पहले ब्रिटिश सेना में था व बाद में वह रुग्ण हुआ या कुछ कहते हैं कि वह ईस्ट इण्डिया कम्पनी सेना का भगौड़ा था। स्वास्थ्य सुधार हेतु विलसन को मसूरी भेजा गया था जहाँ उसे हिमालय इतना पसंद आया कि विलसन गढ़वाल का हो गया। विलसन शिकारी बन गया व जंगली जानवरों के अंग बेचकर विलसन ने खूब धन कमाया। 1845 में विलसन ने हरसिल में रहना आरम्भ कर दिया उसने स्थानीय लोगों से घनिस्टता स्थापित

की व जंगली जानवरों के अंग का व्यापर में वृद्धि करता गया। विलसन ने हरसिल में सेव के बगीचे भी लगवाए व स्थानीय परिवारों को भी सेव बागवानी हेतु प्रोत्साहित किया। विलसन ने संग्रामी शिल्पकारण से विवाह किया . जंगली जानवरों के अंग प्रत्यंग से कमाए धन से विलसन ने 1843 -1844 में विलसन फारेस्ट मैनसन निर्मित किया जिस घर की दीवारें व कमरों के फर्श लकड़ी के स्लीपरों के थे। (डबराल ) . बाद में टिहरी रियासत के वनों के ठेके लेकर विलसन ने अकूत धन कमाया। विलसन कॉटेज टिहरी देश के इतिहास हेतु तो महवत्वपूर्ण है ही अपितु पहाड़ों में नए वास्तु कला के जन्म हेतु भी महत्वपूर्ण है।

अनुमान किया जाता है कि गढ़वाल में निमदारी निर्माण शैली संभवतया 1843 -44 में निर्मित विलसन कॉटेज के प्रभाव से ही जन्मी। कुमाऊं में ब्रिटिशरों या अंग्रेजों के जंगलेदार मकान 1890 के बाद ही दीखते हैं व इस श्रृंखला में भी अल्मोड़ा व चम्पावत जिले के लगभग 1900 के निर्मित निमदारियों का वर्णन किया गया है। गढ़वाल में हरसिल में ही इस प्रकार की निमदारी 1843 में निर्मित हो गयी थी। हो सकता है पश्चिमी गढ़वाल में विलसन कॉटेज शैली का प्रभाव पड़ा होगा व पूर्वी गढ़वाल व कुमाऊं पर अन्य अंग्रेजों के भवनों से निमदारी भवन शैली का प्रभाव पड़ा होगा।

यदि हम जौनसार , नेलंग घाटी , टिहरी गढ़वाल (उदाहरण राजमिस्त्री नारायण दत्त भट्ट का मकान ) के व चमोली , रुद्रप्रयाग व कुमाऊँ के १८९० से पहले के मकानों का ध्यान देंगे तो पता चलेगा कि इससे पहले मकानों में छज्जा नमात्र का ही होता था या होता ही न था। विलसन की निमदारी के बाद ही शायद गढ़वाल में मकानों में पहली मंजिल में छज्जा व निम दारी शैली का प्रवेश हुआ होगा। पौड़ी गढ़वाल में इड़ा , सुकई व चमोली गढ़वाल में किमोठ में 1890 के पहले बताये गए मकानों में भी छज्जा नहीं पाए गए हैं।

विलसन कॉटेज फरवरी 1997 में आग में भस्म हो गया था व प्रस्तुत फोटो 1983 में ली गयी थी।

प्रस्तुत विलसन कॉटेज को गढ़वाली शब्दावली /ग्लोसरी हिसाब से भव्य निम दारी ही कहा जायेगा। विलसन कॉटेज दुपुर शैली में है व छत चद्दर की है व यॉर्कशायर या आयरिश शैली में छत बनी है। तल मंजिल में लम्बा बरामदा है जिसके अंदर कमरे हैं। तलमंजील के बरामदे के सभी स्तम्भों के ऊपर पहली मंजिल में लकड़ी का छज्जा /बरामदा सजा था व जिस पर जंगला सजा था।

तल मंजिल में बरामदे में बड़ा प्रवेश द्वार है जिसके बाह्य किनारे पर (चौक स सटकर ) एक तरफ एक स्तम्भ व दूसरी तरफ दो काष्ठ स्तम्भ थे . बरामदे के बाकी दोनों किनारों पर एक एक भाग में दो दो स्तम्भ थे। विलसन कॉटेज के तल मंजिल के स्तम्भ कला में लगभग जौनसार से लेकर अन्य गढ़वाल क्षेत्र के काष्ठ स्तम्भों से मेल खा रहे हैं। याने विलसन ने स्थानीय कला स्वीकार की व स्थानीय शिल्पकारों ने ही विलसन कॉटेज के काष्ठ स्तम्भों का निर्माण किया। स्तम्भ ऊपर पहली मंजिल के फर्श की आधारिक कड़ी से मिल जाते हैं।

ऊपरी मंजिल का फर्श लकड़ी की कड़ियों या स्लीपरों से ही बना है। पहली मंजिल की निमदारी पर 12 स्तम्भ हैं जो पहली मंजिल के फर्श के आधारिक कड़ी से उठकर ऊपर की कड़ी से मिल जाते हैं। परएक स्तम्भ का आधार थांत (criket bat blade ) आकर का है व कुछ ऊंचाई से मोटई कम होती है। इसी ऊंचाई पर ऊपरी रेलिंग भी है जिस पर आयत में X से भव्य जंगल ा बना था। जंगल व बाकि सब जगह ज्यामितीय कला का प्रदर्शन ही था।

निष्कर्ष निकलता है कि 1843 -44 में निर्मित विलसन कॉटेज में काष्ठ कला के हिसाब से यॉर्कशायर -आयरिश शैली व गढ़वाल शैली का समिश्रण हुआ है। तल मंजिल के स्तम्भ गढ़वाली शैली व कलाकृति के हियँ बाकि लकड़ी का काम ब्रिटिश शैली का है। बा तक के सर्वेक्षण में जिन भी निंदारियों की जानकारी मिली है वह 1900 बाद के ही हैं। तो कहा जा सकता है विलसन कॉटेज ही गढ़वाल की पहली निमदारी मानी जायेगी . यहां तक कि कुमाऊं भाग में भी अब तक इस लेखक को किसी भी निमदारी नुमा भवन की सूचना नहीं मिली जो 1900 से पहले निर्मित हो तो कह सकते हैं कि विलसन कॉटेज उत्तराखंड की पहली निम्दारी होगी। और यह कहना अतिशयोक्तिपूर्ण न होगा कि गढ़वाल में निमदारी भवन शैली प्रवेश में विलसन कॉटेज की निमदारी का हाथ अवश्य है।

सूचना - शिव प्रसाद डबराल , व मनोज इष्टवाल , उत्तराखंड टूरिज्म सूचना विभाग

फोटो - स्वामी उपेंद्र व उत्तराखंड टूरिज्म विभाग

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