गौं गौं की लोककला

संकलन

भीष्म कुकरेती

डबरालस्यूं संदर्भ में गढ़वाल , हिमालय की भवन काष्ठ कष्ट कला -1

सूचना , फोटो आभार - हर्ष डबराल

उत्तराखंड , हिमालय की भवन की तिबारी में काष्ठ अंकन की लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 18

मसोगीं में जोगेश्वर प्रसाद व चैतराम डबराल की की तिबारी में भवन काष्ठ कला

Traditional House Wood Carving Art (Ornaments ) in Tibari of Masogi, Dabralsyun Uttarakhand , Himalaya - 18

( चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )

संकलन - भीष्म कुकरेती

मुख्यतया डबरालों का गाँव मसोगी डबरालस्यूं -उदयपुर पट्टी के सीमावर्ती गाँव है। मसोगी के उत्तर पूर्व में कूंतणी व दक्षिण पश्चिम में हिंवल नदी है व पश्चिम में खमण (बगुड्या ) की सीमा भी है।

मसोगी में लगभग वही सभी लोक कलाएं प्रचलित हैं जो डबरालस्यूं , ढांगू , उदयपुर , अजमेर पट्टियों में प्रचलित हैं।

मसोगी में तिबारी संदर्भ में अभी तक जोगेश्वर प्रसाद -चैतराम डबराल की तिबारी की सूचना मिली है। तिबारी पहली मंजिल पर स्थापित है व दुभित्या कमरों (एक कमरा आगे व एक पीछे वाला प्रकार ) की तिबारी है। मसोगी की यह तिबारी सामन्य किस्म की तिबारी में सुमार होती है।

जोगेश्वर -चैतराम डबराल की इस तिबारी में चार स्तम्भ (columns ) हैं , और चारों स्तंभ तीन खोली /द्वार /द्वार बनाते हैं। दो काष्ठ स्तम्भ मकान के दीवार को कड़ी (शाफ़्ट ) से जोड़ते हैं।

प्रत्येक स्तम्भ उप छज्जे के उप्पर एक चौकोर पाषाण आधार पर आधारित है। पाषाण आधार पर स्तम्भ का घटनुमा या पथ्वड़ नुमा आधार है जिसपर कलाकृति (संभवतया उलटा कमलाकृति ) अंकित है। फिर इस घट्नुमा आकृति के बाद सीधी कड़ी ऊपर चलकर स्तम्भ शीर्ष जो एक समांतर पट्टी है से जुड़ता है। यह समानंतर पट्टी /कड़ी छत के आधार जो काष्ठ दास पर टिके हैं से मिलते हैं। कहीं भी चाप नहीं है याने स्तंभ , स्तम्भ शीर्ष की पट्टी में ज्यामितीय कला ही मिलती है। कहीं भी प्राकृतिक या मानवीय कला के दर्शन नहीं होते हैं।

जोगेश्वर प्रसाद -चैतराम डबराल के मकान की एक विशेषता उजागर होता है कि तल मंजिल पर कमरे के बाहर द्वार /खोळी शीर्ष (मुण्डीर ) में पाषाण चाप दर्शनीय है। आंतरिक चाप (intrados ) ट्यूडर (Tudor ) नुमा चाप है। ट्यूडर से बाहर आकृति सुडौल है।

कहा जा सकता हो कि जोगेश्वर प्रसाद -चैतराम डबराल के मकान की तिबारी में कला केवल जायमितीय कला ही दर्शित होती है एक स्थान में प्राकृतिक कला दर्शनीय है। मकान के तल मंजिल के एक कमरे के द्वार (खोली ) में पाषाण चाप (मेहराब ) बिलकुल अलग विशेषता लिए है।

मकान लगभग 1925 के बाद का ही लगता है।

अब यह जीर्ण शीर्ण तिबारी आखरी सांस ले रही है। ऐसी तिबारियों को बचाना आवश्यक है किन्तु कौन बचाएगा ?

सूचना , फोटो आभार - हर्ष डबराल

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