गढ़वाली कविता

बालकृष्ण डी. ध्यानी

बालकृष्ण डी ध्यानी देवभूमि बद्री-केदारनाथमेरा ब्लोग्सhttp://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/http://www.merapahadforum.com/में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुर

ऐगे बसंत

ऐगे बसंत


ऐगे ऐगे रे बसंत

म्यारा डंडों कांडों मां

कुंगळा हैरा पता हैरगेनि

पिंग्ला फूलों दगड वो हैंसगेनि

म्यारा डंडों कांडों मां

ऐगे ऐगे रे बसंत


यों उजाड़ु मां

मिते कु धेय लगाणु

जिकुड़ी मेरि तू बता दे

त्वे ते कु बुलाणु

कु छ आणु व्हालू यख

खुटियूं कि चाप छ सुनाणी


क्दगा जंगलात मैदान पाड़ो ते

पार कैरि कि

बिन्सरी कि पैलि उजाळी

कैथे ऐकी यख होलि लजाणी

मेर धुरपाली चौक खंदवारों मां

ऐगे ऐगे रे बसंत

म्यारा डंडों कांडों मां


कैन रचाई व्हाळि

कैन नचाई व्हाळि

यन गीतों की माला मेरा पाड़ों मां

ऐकी यख कैन लगाई व्हाळि

चार दिसा सजै कि

ये ढोल दामों यख यन कैल बजाई व्हाळि

ऐगे ऐगे रे बसंत

म्यारा डंडों कांडों मां