उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास भाग -45

उत्तराखंड में बंक /बंख का उपयोग और इतिहास

उत्तराखंड परिपेक्ष में जंगल से उपलब्ध सब्जियों का इतिहास - 3

उत्तराखंड में कृषि व खान -पान -भोजन का इतिहास --45

आलेख : भीष्म कुकरेती

Botanical name - Arisaema speciosum

Common name - Himalayan Cobra Lily

Arisaema की 150 के करीब प्रजातियाँ (species ) पायी जाती हैं।

बंक /बंख का पौधा दस से बीस सेंटीमीटर उंचा होता है। बंक का फूल सांप जैसे अंदेसा देता है। बंक छायादार जगहों पर 5900 से 9000 फीट ऊँचे स्थानों मेंउगते हैं।

Arisaema speciosum अथवा बंक /बंख या कोबरा लिली 1200 कीलोमीटर लम्बे हिमालय में अफगानिस्तान , पाकिस्तान , कश्मीर -गढवाल -कुमाऊँ से लेकर उत्तर पूर्वी भारत में पाया जाता है। इसी तरह नेपाल और चीन के हिमालयी क्षेत्र में भी बंक पाया जाता है।

Arisaema speciosum या बंक की जन्मभूमि हिमालय है यह उत्तराखंड भी हो सकता है। जिसका अर्थ है बंक सैकड़ों सैलून से उपयोग होता रहा है

नेपाल में बंक के पत्तियों को सुखाकर भाजी बनाई जाती है (N .K Bhatarai )

नेपाल में बंक के कॉर्न को छीलकर , उबालकर भाजी बनाई जाती है . बंक से आटा भी बनया जाता था।

बंख /बंक के बल्ब (जड़ ) का उपयोग भाजी में होता है।

बंक के पत्तों को सूअरों के लिए चारे के रूप भी उपयोगी है।

बंक का औषधि रूप में भी उपयोग होता है।

Arisaema tortuosum (नागदमन )

के ट्यूबर (जड़ ) को उबालकर भाजी के रूप में उपयोग होता है

Arisaema tortuosum (नागदमन ) के ट्यूबर (जड़ ) को जुकाम आदि में औषधि के रूप में उपयोग होता है (भगवती उनियाल आदि का लेख )।

Arisaema intermedium (बागमणगारी )

के बीजों को भूनकर बनाये गयी पेस्ट को जलने के स्थान पर दवाई के रूप में उपयोग होता है(भगवती उनियाल आदि का लेख ) ।

Copyright @ Bhishma Kukreti 28/10/2013