हजारों कहानियां

बालकृष्ण डी ध्यानीदेवभूमि बद्री-केदारनाथमेरा ब्लोग्सhttp://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/http://www.merapahadforum.com/में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

हजारों कहानियां


हम सोचते ही रह गये

अँगड़ाइयाँ ली उसने और वो

हजारों कहानियां कह गई


मैं तन्हा खुद को

सिमटा ना सका

आते जाते

वो मुझे सिमटा गई


किस घड़ी

कौन सी होगी रुत सुहानी

पास बैठ वो

मुझ से जतला गई


मुझको मालुम

एक पल भी

मैं उस बिन

जी ना सकूँगा


उसको भी

किसी और के लिए

मेरे जैसी ही

जज्बात है


हलकी सी सर्द दर्द हवा

जाड़ा भी ठीकठाक है

अंदाज ये सुर्ख जनवरी

तेरा भी तो मेरे जैसा हाल है


बस यूँ ही लिख देता हूँ मै

अपने से अपने तक ही

वो आदत तू ज़रा मेरी

वो राहत तू ज़रा मेरी


तेरे चेहरे पे उदासी

और फ़क्त दो आंसू

हमारा आलम आपने

अभी देखा ही नहीं


फिर भी मुझे बहुत

याद करता होगा वो

वो मेरा वहम अब भी

क्यों कर टूटता नहीं


हम सोचते ही रह गये


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