"आखिर भगवान ही आपरु"

ठीक बारह बजि दुपहरी मा टैक्सीन वे तैं बजारम उतारि द्याइ छाइ। सात हजार रुप्या मा गाजियाबाद बिटिक गाड़ी कैरिक गौं गै छाइ मोहन। सड़क मान सीढ़ी चैढिक माथ दुकान मा पोंछ त सब्बि इन्नि घुरणा जन बुलेंद कू काल आइ यू। " लाला जी नमस्कार" वैन कंट्रोल वाल लाला देवी खुणि ब्वाल। देवि तैं भी ज्या व्है ह्वाल। सट्ट पुठ फरैकेकि भितरां चलि ग्याइ। यार क्या बात होलि ! मोहन सुचुणा छाई। चार मैना पैलि जनवरी मा त यू फट हाथ मिलाण कुन ये छाइ। अो कोरोनाक डैर। पर म्यारु म्वालू त पैर्यूं ही च। खैर , ठीक च आपर बचाव भी ठीक च।

" भाई सहाब, आपको पटवारी सहाब बुला रहे हैं स्कूल में" पैथर बिटिक एक आदिम हल्ला मचाणु छाइ।

मोहन पटवारीक सामणी पौंछि ग्याइ।

" आप कहाँ से? क्या आपका स्क्रिनिंग हुआ? कौन से गाँव से?" पटवारीन तीन चार सवाल झाड़ि देन।

" जी, कोटद्वार में हो गई थी। मैं अपने घर पर ही क्वारेंटाइन रहूंगा। यही मेरा गाँव है। आप फार्म दें दे" ।

सर्रा खानापूर्ती कन्ना क बाद मोहन आपर मकान खुणि उंधार बाटु लगि ग्याइ। वैक छुट भुला रौंद अचकाल घारम।

मोहन दिखणु छाइ कि वेक भुलाक ब्वारी चौक मा खडि हुंई छे। मोहन न आपर हिस्साक बगलक द्वी घर मकान मा जाण छाइ। तैंबरी खबर भुलाक ब्वारी मा भी पहुंच ग्याइ कि वूंक जेठाजी घारम आणा छन। बस वून भी फटाफट ताऽलु लग्याइ अर बच्चों लेकि पाणिक धारक तरफ भागि गैन।

भुला सोहन जू जंगल मा बाखर चराणु छाई, वू भागि भागिक आइ अर ढैया मान ही भुन्नु छाइ " भैजी। तुम

कख जाणा छवा? तुमन हमतें भी मारणा क्या"? क्या खुणि आव तुम घार। अभि वापस चलि जाव" ।

" अरे , म्यार घार च। त कख जाण मिन। तू म्यार घार क छाबी दे दी । मि वक्खि रोलु बंद। बस। अब मेरी नौकरी चाकरी भी चलि ग्याइ यीं कोरोना बीमारीक चक्कर मा" मोहन न ब्वाल।

" कत्ते न भैजी। केक भैजी , अर कैक क्या। हम भी मोरी जौला तुमार चक्कर मा" ।तुमन जख भी जाणा जाव।खबरदार वे प्रधान क ही डेयरा जाव " ।सोहन इकसार चिलाणु ।

मोहन सुचणु कि मिन आपर भुलाक खातिर ब्यौ भी नि कारि। ब्वै बुबाक मुरणक बाद पाऽल - पोस यूं तैं। कमैक भी यूं तैं ही दिणू रौं अर यू आज मिथे गी म्यार ही कूड़ पर नि जाणि दिणू। धिक्कार व्है ग्या मेरी किस्मत खुणि।

बेकार ही कमाणु छाइ यू खुणि।

अब रात भी हुण भैटि ग्ये छै। मोहन न स्वाच । यार गाजियाबाद वापस भी नि जै सकदू। नौकरी भी नि अब। जू कमाइ च द्वी चार लाख बैंक मा ही छन। अब किले ना गौंक मंदिर मा भगवान क ध्वार ही चलि जांदु। बजार बिटिक मंदिर पुराण गौं मा छाइ करीब तीन किलोमीटर दूर।

मोहन न एक लाठी पकड़ वखम कठकलि मान, अर तेज कदमुन उधांरि मा भागणु छाइ। जू भी इना वुना छाइ दिखणा वू भी आज सिवा सौंलि नि लगाणा छाइ। जन बुलेन खबेश ए गैर ह्वाल। मंदिर क धर्मशालाक चाबि पंडितजीन दूर बिटिक ही चुटाइ।

वैन धर्मशालाक ताल खुलिन अर सीधा भगवान क चरणोमा लेटि ग्याइ। आखिर भगवानक सिवाय क्वी नि आपरु। मोहन अब जीवनभर मंदिर सेवामा समर्पित

विश्वेश्वर प्रसाद