आलेख :विवेकानंद जखमोला शैलेश

गटकोट सिलोगी पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड

फोटो साभार - श्री भीष्म कुकरेती जी की मैसेंजर वाल से ।

कुमाऊँ अल्मोड़ा में स्थित जल स्रोत (धारे , मंगारे , नौले ) की पाषाण शैली व कला

उत्तराखंड के स्रोत धारे,पंदेरे, मंगारे और नौलौं की निर्माण शैली विवेचना की इस कड़ी के अंतर्गत आज प्रस्तुत है कुमाऊँ मंडल में जनपद अल्मोड़ा के #स्यूनारकोट नौले की निर्माण शैली और पाषाण कला के बारे में।

जल संसाधनो से परिपूर्ण कुमाऊँ की इस पूण्य धरा पर अल्मोड़ा के निकट 14.वीं15वीं शताब्दी के लगभग निर्मित स्यूनारकोट का नौला आज भी अपने अद्भुत शिल्प के लिए जाना जाता है । बावड़ी के चारों ओर बरामदा बना है जिसमें पत्थर की अनेक देव मूर्तियां प्रतिमाएं लगी हुई हैं। मुख्य द्वार के सामने दो नक्काशीदार स्तम्भ बने हुए हैं।बावड़ी की छत कलात्मक रूप से विचित्र है।इसकी दीवारों में देवताओं और उनके उपासकों के चित्र अंकित हैं। यह अल्मोड़ा जनपद का सबसे प्राचीन एवं कला की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ नौला माना जाता है। नौले के विषय में प्राप्त जानकारी के अनुसार यह अल्मोड़ा जनपद का बहुत पुरातन नौला है ।सूचना स्रोत श्री हरीश अंडोला जी के एक लेख के अनुसार, इसका निर्माण स्थानीय शिल्पकारों द्वारा ही किया गया था। उस समय देवभूमि का शिल्प अपने चरम पर था तो स्थानीय शिल्पकारों ने बेजोड़ कलाकारी के रूप में पानी के प्राकृतिक स्रोतों को अद्भुत स्वरूप देने के लिए स्थानीय खदानों से प्राप्त सुडौल कटवे पत्थरों की सिल्लियों को हथोडी छेनी से तराशकर सुंदर आकर्षक नौलों का निर्माण किया था। इसे स्वच्छ और सुरक्षित रखने के लिए बाहर से एक कमरे जैसा आकार दिया गया है। कमरे की चिनाई स्थानीय पत्थरों को तराशकर किया गया है। पत्थरों की इस चिनाई में जोड़ ऐसे हैं कि लगता है कि ये पत्थर आपस में जुड़े हुए हैं। और तो और इसके प्रवेश द्वार पर लगे चौखट भी पत्थरों के खंभों से ही बनाया गये है। इस पर भी शानदार नक्काशी की गई है। ऊपरी छत पर भी स्थानीय खदानों के शानदार सपाट पठाल लगाये गये हैं। छत के बाहरी हिस्सों को संबलित करने के लिए बीच में भी पाषाण खंभ लगाये गये है। खंभों पर आकर्षक नक्काशी की गई है।इस की पवित्रता को अक्षुण्य रखने के लिए जलदेवता के रूप में भगवान विष्णु की शेषशायी मूर्ति की स्थापना की गई है। स्तम्भों पर शस्त्र लिए द्वारापाल, अश्वरोही, नृत्यांगनाएं, मंगलघट, कलशधारिणी गंगा.यमुना तथा सर्प, पक्षी की आकृतियों का प्रचुरता से प्रयोग हुआ है। प्रवेश द्वारा के स्तम्भों को द्वाराशाखाओं से भी सुसज्जित करने की परम्परा भी प्रचलित थी स्यूनराकोट अल्मोड़ा के इस ऐतिहासिक नौले में वीणावादिनी सरस्वती, दशावतार एवं महाभार के दृश्य उल्लेखनीय है। नौलों के आस.पास सिलिंग, पीपल, बड़ जैसे दीर्घजीव धार्मिक दृष्टि से पवित्र माने जाने वाले वृक्ष लगाये जाते थे। यहां के ग्राम्य जीवन के लिए नौला कितना महत्वपूर्ण माना जाता था यह इसकी शिल्पकला और इसके आसपास लगाये गये वृक्षों को देखते हुए सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है । जल स्रोत को इस प्रकार संग्रहण किया गया है कि अत्यंत मनमोहक यह यह बारामासी नौला स्वच्छ व सुरक्षित रह सके ।नमन है उस महान कलाकार के लिए हृदय से जिसने इस अद्भुत शिल्प का निर्माण किया था। पूर्वजों द्वारा संजोई गई इस अमूल्य धरोहर के संरक्षण का जिम्मा अब हमारी नई पीढ़ी पर है जिससे प्रकृति का यह अनमोल जलभंडार हमारी जीवन धारा में निरंतर प्राणाभिसिंचन करता रहे ।

सूचना सहयोग - वरिष्ठ भाषाविद साहित्यकार श्री भीष्म कुकरेती जी

आलेख :विवेकानंद जखमोला- शैलेश

गटकोट सिलोगी पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड

फोटो साभार - श्री भीष्म कुकरेती जी की मैसेंजर वाल से ।