म्यारा डांडा-कांठा की कविता

बगत

बित्यों बगत दुबरा कभी बौड़ी क नि आंदु

हिय म समयीं याद कभी बि नि जांदि

अपणा-पर्यो की खट्टी मिट्ठी

याद ही छन दगड्या

जौं का सारा ल जिन्दगी कटि जांद।

बाटु हिट्दा कै मनखि मिल्दन अवनि

पण कुछी लोग होंदन जौंकि याद

हिय म सदन्नि खुणि समै जांद।

खैरि, अखरि का अत्यड़ों म बगत, बेबगत

कैन धक्ययों, कैन समळ्यों अर कैन तिंगयों

बस सुभौ अर मनख्यात याद रै जांद।

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यो बगत बि कटि जालु तुमन बोलि जबरि

जेठा घाम म स्य बात हिय म

सर्र ठंड़ सि फोळि जांद।

ल्यखला, रचला, हूणा खाणा दिन फिर आला

बस ऐसों का साल कोरोन की उकाळ

हम, तुम सब मिलिकै कटला

होलु जरूर उदंकार अर छंटेलु यो अंध्यरू

बस सांस अर हिकमता दगड़ि जब सब्बि अग्नै बढ़ला।।

दिनेश ध्यानी। 23 जून, 2020।