उत्तराखंड में भांग की खेती पर नाजायज व अज्ञानता भरा हमला


उत्तराखंड में भांग की खेती पर नाजायज व अज्ञानता भरा हमला

आलेख -भीष्म कुकरेती

उत्तराखंड में पिछली सरकार ने औद्योगिक भांग कृषि हेतु कदम उठाये ही थे कि भद्रजनों व नारकोटिक्स सरीखे विभागों ने कदम उठाने से पहले ही कदम के आगे रोड़े नही एसिड बिखेर दिया।

भांग जैसे लाभकारी पौधे को राक्षस नाम दिया जा रहा है। किसी की समझ में नहीं आ रहा है कि जिनको नशा ही करना है उन्हें खेत के भांग की आवश्यकता नहीं होती है। जूं के डर से कपड़े पहनना बंद नहीं किया जाता वैसे ही नशा व्यापार के डर से औद्योगिक भांग उगाने की नीति बंद नहीं की जानी चाहिए।

मनुष्य सभ्यता में भांग की खेती पुरानतम खेतियों में से एक है।

भांग के निम्न लाभ हैं -

भांग के पर्यावरण संबंधी लाभ

१- भांग कोयला का सर्वोत्तम पर्याय है और भांग की जैविक ईंधन क्षमता कोयले से कहीं अधिक है।

२- उत्तराखंड में अंग्रेजों से आने से पहले भांग उत्तम रेशों के लिए बोया जाता था

३- भांग से उत्तम कागज बनता था और आज भी कागज उद्योग को संबल दे सकता है

४- 1 एकड़ में बोये जाना वाला भांग 20 सालों में उतना पेपर पल्प दे सकता है जितना 4.1 एकड़ के पेड़

५- भांग से बनने वाले कागज में डॉक्सिन युक्त क्लोरीन ब्लीच और वृक्ष पल्प के मुकाबले भांग कागज निर्माण में 75 % कम सल्फ्यूरिक ऐसिड की आवश्यकता होती है

६- भांग कागज 7 -8 बार रिसायकल हो सकता है जब कि वृक्ष पल्प से बनाया जाने वाले कागज को केवल 3 बार तक रिसायकल किया जा सकता है

७- भांग से कागज बनाने से जंगल कटान में कमी लायी जा सकती है

८- भांग के रेशे किसी भी प्राकृतिक रेशों में तागतवर व कोमल रेशे हैं

९- भांग की उत्पादन शक्ति रुई से अधिक है। एक एकड़ में भांग के रेशे रुई से दो से तीन गुना अधिक रेशे पैदा होते हैं ,

१० - वैसे भांग के कपड़े रुई से अधिक गर्म व अधिक समय तक कपड़े होते हैं।

११- भांग की रस्से नायलोन की रस्सी के मुकाबले अधिक लाभकारी व उपयुक्त होती हैं

१२-भांग कृषि में कीटाणुनाशक दवाईओं की आवश्यकता नहीं पड़ती है

१३- भांग के लिए अनुपजाऊ भूमि भी काम आ सकती है

भांग के बीजों के लाभ

१- भांग के बीजों में अन्य तैल बीजों की तुलना में 34 % अधिक तेल होता है।

२- अन्य तेलों के मुकाबले , भांग तेल व्हेल तेल के बाद सबसे अधिक लाभकारी होता है

३- भांग के तेल में सल्फर नहीं होता है

४- भांग के बीजों निटारने के बाद जो खली बचता है उसमे सोयाबीन से अधिक प्रोटीन होता है और मसाले व अन्य भोज्य के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

५- पिंडी जानवरों के लिए भी हितकारी है जैसे तिल, सरसों आदि की खली

भांग का कृषि में उपयोग

१- भांग खेती कम उपजाऊ भूमि में भी हो सकती है

२- निम्न स्तर THC (टैट्राहाइड्रोकैनाबि न्वाइड्स ) वाले भांग उत्पादन से हसीस /नशा पदार्थ नहीं बन सकता है

३-फसल चक्र हेतु भांग बहुत ही प्रभावकारी फसल है (उत्तरखंड में मकई के साथ भांग का बोया जाना विज्ञान सम्मत विधि है ) . लोबिया को भी भांग से फसल चक्र लाभ मिलता है।

४-भांग खेती हेतु 90 -110 दिन ही चाहिए

५- भांग 16 फ़ीट की ऊंचाई तक जा सकता है और एक जड़ फ़ीट गहराई तक जाता है। और भूमि की गहराई से पोषक तत्व खींचने में कामयाब पौधा है। फिर जब बांग के पत्ते भूमि में गिरते हैं व सड़ते हैं या जलाकर राख बनते हैं तो ये पत्ते बाद वाली फसल को पोषक तत्व देते हैं। भांग की जड़ें एक फ़ीट गहरे जाने से भांग भूमि के अंदर जुताई करने में सक्षम है

६- भांग एक ही खेत में सालों साल तक बोने की बाद भी उत्पानशीलता में कमी नहीं आती है

७- भांग में अल्ट्रा व्वॉइलेट किरण प्रतिरोधक शक्ति सोयाबीन आदि से शक्ति होती है

8- भांग खर पतवार नही जमने देता है

भांग तेल के लाभ

१- भांग तेल हारमोन संतुलन में सहायक होता है

२-भांग तेल स्किन प्रोटेक्टिव लेयर को ऊर्जा देता है

३- भांग तेल कोलेस्ट्रॉल कम करने में सहायक है

४- भांग तेल डाइबिटीज में भी लाभकारी हो सकता है

५- भांग तेल सोराइसिस में लाभकारी हो सकता है

६- रोधक शक्ति वृद्धि में काम आता है

भांग के अन्य उपयोग

१- ड्रेस मटिरियल्स , मैट्स आदि

२- फैशनेबल थैले

३-बोर्ड

४- कई प्रकार के इंसुलेटर वस्तुएं

५- कंक्रीट ब्लॉक्स

६- फाइबर ग्लास में मिश्रण हेतु माध्यम

7- गहने

8- जानवरों के गद्दे /विस्तर

प्रश्न है कि किस तरह भांग का औद्योगिक उत्पादन किया जाय कि आर्थिक क्रान्ति आ जाय। एक समय अठारवीं सदी में काशीपुर में ईस्ट इण्डिया कम्पनी की एक फैक्ट्री के कारण पहाड़ों में भांग खेती में वृद्धि हुयी थी।

भाग को निर्यात माध्यम समझकर ही इसे अपनाया जायेगा