© नरेश उनियाल,

ग्राम -जल्ठा, (डबरालस्यूं ), पौड़ी गढ़वाल,उत्तराखंड !!

.. जै दुर्गे माँ..

सादर नमस्कार प्रिय मित्रों..🙏

आज माँ जगदम्बा के चरणों में अपनी प्रथम भेंट अर्पित कर रहा हूँ... आप भी अवलोकन कीजिये और अपनी राय से अवगत भी कराइये... 🙏🌺🌺


" माँ दुर्गा-वन्दना"

[तर्ज--कोई दीवाना कहता है,कोई पागल समझता है]


"हे माँ अम्बे! हे जगदम्बे! तुम्हें प्रणाम करता हूँ,

मैं अपनी आज की रचना,तुम्हारे नाम करता हूँ !!


अकिंचन हूँ मैं माँ,अपनी शरण मुझको लगा लीजै,

कि तेरे नाम की रटना,मैं सुबहो शाम करता हूँ !!


बहुत मुश्किल समय आया है, मेरे देश पर हे माँ,

तेरे चरणों में हर मुश्किल,औ' हर इंसान करता हूँ !!


रहे रौनक भरी धरती, सदानीरा रहें नदियाँ,

रहे खुशबू भी फूलों में, तुम्हें पैगाम करता हूँ !!


ये दुनिया है मेरा परिवार, माँ इस पर नज़र रखना,

कि रक्षा के लिए विनती, मैं आठों याम करता हूँ !!


हुई है 'ईश वंदन' में, 'नरेश' की यह प्रथम रचना,

तेरे चरणों में यह अर्पण,मैं माता आज करता हूँ !!


फोटो: देवलगढ़ से माँ राज राजेश्वरी की प्रतिमा

साभार.. पूज्यपाद श्री Kunjika Pradad Uniyal जी