निश्चित ही

बालकृष्ण डी ध्यानीदेवभूमि बद्री-केदारनाथमेरा ब्लोग्सhttp://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/http://www.merapahadforum.com/में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित


कुछ कंही कोई थोड़ा सा रह ही जाता

मिलता बहुत पर कुछ हात नहीं आता


इने-गिने में मैं रोज उनको ही हूँ चुनता

ऐसे नहीं लंबा सफर उन बिन है गुजरा


बहुत नहीं पर थोड़ा ही साथ काफी है

साथ चले नहीं पर वो ही मेरा साथी है


कोई चीज़ ना ही ना ही कोई वस्तु उनकी

छोटी हो उनसे चुपके से मैंने ना लपकी


किंचित ही था जो वो संकोच था मेरा

कह नहीं सका उनसे उस ने डाल रखा था पहरा


कुछ थोडे चन्द शब्द जो उभरे पटल मेरे

इसी तरह ह्रदय संग उन्होंने रोज लिए फेरे


निश्चित ही कुछ कंही कोई थोड़ा सा रह ही जाता

मिलता बहुत पर कुछ हात नहीं आता


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