गौं गौं की लोककला

ढौंड (पौड़ी गढ़वाल ) में पधानुं की तिबारी व खोली में काष्ठ कला , अलंकरण , नक्कासी

सूचना व फोटो आभार : जगदीश ढौंडियाल , ढौंड

Copyright

Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 120

ढौंड (पौड़ी गढ़वाल ) में पधानुं की तिबारी व खोली में काष्ठ कला , अलंकरण , नक्कासी

गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली , खोली , मोरी , काठ बुलन ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन, नक्कासी - 120

संकलन - भीष्म कुकरेती

गढ़वाल में ढौंडियाल स्यूं और डबराल स्यूं ही दो पट्टियां हैं जो ब्राह्मण जाति पर आधारित हैं। ढौंड गाँव में राजपुताना के गौड़ ब्राह्मण लगभग 17 वीं सदी में बसे थे. कहा तो यह जाता है कि ढौंढियालों के मूल पुरुष रूप चंद ने ढौंड गाँव बसाया था। यह तथ्य बिलकुल भ्रान्तिकारक है। ढौंड शब्द खस शब्द है याने गौड़ ब्राह्मण इस स्थान (ढौंड ) में बसने के कारण ढौंडियाल हुए। पौड़ी गढ़वाल में ढौंड स्यूंसी बैजरों /बीरों खाल क्षेत्र का महत्वपूर्ण गाँव है।

ढौंड व ट्विन विलेज पटाया में कई तिबारी व निमदारियों की सूचना है किंतु अभी फोटो पधानुं तिबारी व खोळी की ही मिली है।

मकान दुखंड /तिभित्या है व काफी बड़ा है। भवन काष्ठ कला अलंकरण , लकड़ी नक्कासी हेतु दो स्थानों की विवेचना करनी होगी। खोळी व तिबारी .

खोळी (पहली मंजिल में आंतरिक प्रवेश द्वार ) तल मंजिल पर स्थित है। खोली के मुख्य पांच भाग हैं - स्तम्भ, मुरिन्ड , मुरिन्ड के ऊपर पट्टिकाएं , मुरिन्ड के बगल में दीवालगीर , व खोली के ऊपर छ्प्परिका में काष्ठ अलकंरण /नक्कासी , जिनमे उत्कृष्ट काष्ठ कला (शानदार नक्कासी ) दृष्टिगोचर होती है.

खोळी / प्रवेशद्वार के दोनों ओर के प्रत्येक स्तम्भ /सिंगाड दो तीन खड़े /वर्टिकल सिंगाड़ों के मेल से बने हैं। आधार में कुम्भी जो कमल दल से बना है। घुंडी /कुम्भी के ऊपर स्तम्भ कड़ी /shaft में पर्ण लता अंकरण हुआ है। स्तम्भ चौखट मुरिन्ड /मथिण्ड से मिलते हैं , मुरिन्ड चौखट की चार पट्टिकाओं में वानस्पतिक अलंकरण हुआ है। मुरिन्ड की सबसे उपर की तह या पट्टिका के ऊपर एक पट्टिका है जो छ्प्परिका आधार पट्टिका भी है। इस पट्टिका में ज्यामितीय अलंकरण हुआ है। आश्चर्य है कि मुरिन्ड या मथिण्ड में कोई प्रतीकत्मक /देव प्रतीक नहीं निर्मित हुआ है या समय के साथ मिट गया होगा ।

चौखट मुरिन्ड के बिलकुल बगल में दोनों ओर छ्प्परिका से दो दो दीवारगीर (brackets ) स्थिर है व प्रत्येक दीवालगीर (bracket ) में चिड़िया चोंच या गर्दन व पुष्प पराग केशर नालिका उत्कीर्णित हैं। खोली के ऊपर की मोरी में भी अलंकरण के चिन्ह दीखते हैं ।

छ्प्परिका के आधार से कई शंकु नुमा आकृतियां नीचे की ओर लटकी हैं।

अतः कह सकते हैं कि खोली /प्रवेशद्वार में ज्यामितीय व प्राकृतिक अलंकरण की बहुतायत है व दीवारगीरों में मानवीय अलंकरण /नक्कासी है।

तिबारी पहली मंजिल पर है व दो बाहर के कमरों से निर्मित बरामदे पर चार स्तम्भों से तिबारी स्थापित हुयी है जिसमे स्तम्भों से तीन ख्वाळ बनते हैं। स्तम्भ को दीवार से जोड़ने वाली दोनों कड़ियों में पर्ण लता अलंकरण /नक्कासी हुयी है। चूँकि आंतरिक प्रवेश द्वार है तो छज्जा की चौड़ाई बिलकुल कम है। पत्थर के छज्जे के ऊपर पाषाण देळी /देहरी है जिसके ऊपर चार डौळ हैं जिनके ऊपर स्तम्भ खड़े हैं। स्तम्भ के आधार में अधोगामी कमल दल से कुम्भी बनती है जिसके ऊपर ड्यूल (ring type wooden plate ) है व फिर ऊर्घ्वाकार कमल दल ऊपर की ओर है व जहां से कमल दल समाप्त होता है वहीं से स्तम्भ की मोटाई कम होती जाती है जहां पर सबसे कम मोटाई है वहां पर चार ड्यूल या छल्ले हैं ऊपरी ड्यूल के ऊपर उर्घ्वगामी कमल दल है। इस ऊपरी कमल दल से एक ओर सीधा स्तम्भ का थांत (bat blade ) आकृति बनती है व दूसरी ओर तिप्पत्ति नुमा मेहराब चाप शुरू होता है जो दूसरे स्तम्भ के चाप से मिलकर पूरा मेहराब /तोरण बनता है। मेहराब के बाह्य त्रिभुज पट्टिका में किनारों पर एक एक बहुदलीय फूल हैं यान ेकुल आठ फूल मेहराब में हैं। मेहराब के ऊपर मुरिन्ड /मथिण्ड की पट्टिकाएं छत आधार पट्टिका से मिलती हैं व इन पट्टिकाओं में पर्ण -लता ालकंरित है याने पत्ते व लता की नकासी है।

स्तम्भ के ठीक ऊपर छत पट्टिका से एक एक दीवालगीर फिट है जो थांत तक सीमित है। प्रत्येक दीवालगीर में पक्षी गर्दन व चोंच तो है साथ में पुष्प कली का आभासी या वास्तविक अलकंरण भी है। यह गढ़वाल के काष्ठ शिल्पकारों की विशेषता रही है कि दीवालगीरों में ऐसा अलंकरण करते हैं कि आपको जो देखना है वह देखो याने दो किस्म के अर्थ आकृति उत्कीर्ण करना। यहाँ पर पुष्प केशर नाभि भी लगती है व चिड़िया की गर्दन या चोंच भी।

ढौंड के पधानुं तिबारी युक्त मकान के पहली मंजिल में एक मरहराब /तोरण /चाप नुमा मोरी है जिसके सिंगाड़ व मुरिन्ड में प्राकृतिक अलकनकरण के चिन्ह दीखते हैं।

तिबारी या मकान के शिल्पकारों के बारे में आज की नई पीढ़ी को बिलकुल पता नहीं है। संभवतया तिबारी 1925 के लगभग निर्मित हई होगी। एक समय पधानं तिबारी ढौंड ही नहीं ढौंडियल स्यूं की पहचान थी , शान थी या identity थी।

निष्कर्ष निकलता है कि पौड़ी गढ़वाल के बीरोंखाल क्षेत्र में ढौंड गाँव में पधानुं परिवार की तिबारी व खोली में ज्यामितीय , प्राकृतिक वा मानवीय तीनों प्रकार के अलंकरण हुए हैं व तिबारी उत्कृष्ट किस्म की तिबारी में गणना होगी।

सूचना व फोटो आभार : जगदीश ढौंडियाल , ढौंड

यह लेख भवन कला संबंधित है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020