गौं गौं की लोककला
(पज्याण(पौड़ी गढ़वाल ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल के कुमाऊं शैली प्रभावित भवन में काष्ठ कला, अलंकरण अंकन; लकड़ी नक्काशी
सूचना व फोटो आभार: उदय ममगाईं राठी
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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020
उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 215
पज्याण(पौड़ी गढ़वाल ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल के कुमाऊं शैली प्रभावित भवन में काष्ठ कला, अलंकरण अंकन; लकड़ी नक्काशी
गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली , खोली , मोरी , कोटि बनाल ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी नक्काशी - 215
Tibari House Wood Art in Pajyan , Pauri Garhwal
संकलन - भीष्म कुकरेती
पौड़ी गढ़वाल का चौथान क्षेत्र एक समृद्ध क्षेत्र रहा है। चौथान पट्टी से कुछ तिबारियों की सूचना मिली है जैसे चौथान पट्टी के पज्याण गाँव से स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल निर्मित कुमाऊं प्रभावित मकान की भी सूचना मिली है। आज पज्याण( चौथान ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल के भवन में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन या लकड़ी पर नक्काशी की विवेचना होगी।
आयुर्वेद रत्न स्व अमला नंद ढौंडियाल प्रसिद्ध आयुर्वेद चिकित्स्क थे। पज्याण( चौथान ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल का भवन कुमाऊं भवन शैली प्रभावित भवन है। पज्याण( चौथान ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल के भवन में खोली व छाज पूरी तरह कुमाऊं शैली पर आधारित हैं। पज्याण( चौथान ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल के भवन में लकड़ी नक्काशी की विवेचना हेतु तीन स्थलों में टक्क लगानी आवश्यक है - खोळी ; पहली मंजिल में छाजों व भवन में खिड़कियों में काष्ठ कला अंकन।
पज्याण( चौथान ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल के भवन के तल मंजिल में खोळी में लकड़ी नक्काशी :-
पज्याण( चौथान ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल के भवन की खोली (प्रवेश द्वार ) तल मंजिल के आधार से भवन के पहली मंजिल में लगभग छत आधार के बिलकुल निकट तक है।
खोली के मुख्य सिंगाड़ अथवा स्तम्भ - पज्याण( चौथान ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल के भवन के खोली मुख्य स्तम्भ (सिंगाड़ ) छह (6 ) उप स्तम्भों के युग्म जोड़ से निर्मित है। उप स्तम्भ दो प्रकार के हैं। एक प्रकार के उप स्तम्भों में आधार से पर्ण -लता (बेल बूटों ) का अंकन हुआ है ये तीनों उप स्तम्भ सीधे ऊपर जाकर तीन स्तरों वाले मुरिन्ड की कड़ी बनाते हैं। एक पर्ण -लता अंकित उप स्तम्भ मुरिन्ड के सबसे ऊपर स्तर की कड़ी बनाता है , दूसरा पर्ण कला अंकन युक्त उप स्तम्भ मुरिन्ड के मध्य स्तर की कड़ी बनाता है व तीसरा पर्ण लता अंकित उप स्तम्भ मुरिन्ड का निम्न स्तर की कड़ी बनता है।
खोली के मुख्य स्तम्भ में दूसरे प्रकार के तीन उप स्तम्भ कुछ कुछ गढ़वाल की तिबारियों जैसे ही हैं। याने इस प्रकार के स्तम्भ आधार में उलटे कमल दल से कुम्भी बना है , उल्टे कमल फूल ऊपर ड्यूल , ड्यूल ऊपर दो कमल फूल व फिर स्तम्भ लौकी आकार ले ऊपर चलता है फिर उल्टा कमल अंकित है जिसके ऊपर ड्यूल व ऊपर सीधा कमल फूल है व फिर प्रत्येक ऐसा स्तम्भ सीधा ऊपर जाकर मुरिन्ड के तीन स्तरों के एक स्तर ी कड़ी भी बन जाते हैं।
खोली के मुरिन्ड ( शीर्ष, abacus जैसा ) के तीन स्तर हैं। निम्न स्तर में देव मूर्ति बिठाई गयी है व मध्य स्तर के ऊपर हिरण के सींग बिठाये गए हैं। मुरिन्ड की कड़ियों व पटिलों में ज्यामितीय अथवा प्राकृतिक कला अंकन मिलता है।
पज्याण( चौथान ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल के भवन में खोली ऊपर छप्परिका - डा ढौंडियाल के भवन की खोली के ऊपर छपपरिका है और छप्परिका से शंकु आकृतियां लटकी है। इसके अतिरिक्त छपरिका से खोली के दोनों मुरिन्ड से बाहर व मुरिन्ड के निम्न स्तर तक (छज्जे तक ) एक एक दीवालगीर स्थापित हैं जिनमे आधार पर दो दो हाथी व ऊपर S आकार की आकृति स्थापित है।
पज्याण( चौथान ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल के भवन के पहली मंजिल में छाजों (झरोखों , ढुड्यार ) में काष्ठ कला अंकन , लकड़ी नक्काशी - पज्याण( चौथान ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल के भवन के पहली मंजिल में दो छाजों (झरोखे ) की सूचना मिली है। छाज के दोनों दरवाजों के बाहर एक एक स्तम्भ है व एक एक स्तम्भ दो उप स्तम्भों के युग्म से बने हैं। उप स्तम्भ कला दृष्ति से बिलकुल खोली के उप स्तम्भों जैसे ही हैं।
छाज के दरवाजों का निम्न तल पटिल्या (तख्त जैसा ) से ढका है व झरोखा (ढुड्यार ) का छेद अंडाकार है व ऊपरी तरफ मेहराब युक्त है।
खिड़कियों व अन्य कमरों के दरवाजों में ज्यामितीय कला अलंकरण ही दिख रहा है।
निष्कर्ष निकलता है कि पज्याण( चौथान ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल के भवन के काष्ठ संरचनाओं में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय अलंकरण अंकन हुआ है.
यह भी निष्कर्ष निकलता है कि पज्याण( चौथान ) में स्व डा. अमलानंद ढौंडियाल के भवन शैली डोटी (पश्चिम नेपाल ) व कुमाऊं भवन शैली से पूरी तरह प्रभावित है।
सूचना व फोटो आभार: उदय ममगाईं राठी
यह लेख भवन कला संबंधित है . भौगोलिक स्थिति व मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: यथास्थिति में अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं।
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