गौं गौं की लोककला

दाबड़ ( बिछला ढांगू ) संदर्भ में हिमालयी कला व कलाकार

ढांगू गढ़वाल की लोक कलाएं व लोक कलाकार श्रृंखला - 11


प्रस्तुति - भीष्म कुकरेती

दाबड़ ( बिछला ढांगू ) संदर्भ में हिमालयी कला व कलाकार


ढांगू गढ़वाल की लोक कलाएं व लोक कलाकार श्रृंखला - 9


(चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )

ढांगू में दो गाँवों के नाम 'दाबड़ ' हैं एक मल्ला ढांगू में मळ -दबडा व दूसरा बिछला ढांगू के खंड -अमोळा -दाबड़। इस अध्याय में बिछला ढांगू दाबड़ की लोक कलाओं की चर्चा की जा रही है।

सामन्य गढ़वाली गाँव जैसे ही डाबड में भी निम्न कलाएं मौजूद थीं या हैं -

अ - संस्कृति संस्कारों से संबंधित कलाभिव्यक्तियां जैसे पंडितों द्वारा पूजन समय गणेश , निर्माण आदि , जन्मपत्रियों में पंडितों द्वारा कई कलाएं , बधाण पूजन समय खिन्न लकड़ी से कुछ धार्मिक प्रतीक निर्माण आदि।

ब - शरीर अंकन व अलंकरण (हल्दी हाथ , होली व सुनारों द्वारा अलंकार निर्माण

स - धार्मिक व सामजिक स्तर पर लोक नृत्य व गीत गायन आदि

द - स्वयं हेतु या जीवकोपार्जन हेतु कई लोक कलाएं

तिबारियां - दाबड़ में आज भी चार तिबारी (ऊपरी मजिल बरामदे का काष्ठ कला अंकन ) मौजूद हालत में हैं . जब इन तिबारियों की निम्न जानकारी मिली है -

१ - भोला सिंह राणा की तिबारी

भोला सिंह के पहली पीढ़ी में नंदन सिंह व जगत सिंह राण हुए फिर जगमोहन सिंह राणा हुए अब हीरा सिंह राणा चौथी पीढ़ी के हैं। हीरा सिंह राणा का जन्म लगभग 1980 में हुआ था. एक पीढ़ी में 20 वर्ष का अंतर से तातपर्य निकलता है कि भोला सिंह का जन्म लगभग 1900 या 1880 (एक पीढ़ी में 25 साल का अंतर हो तो ) याने किसी भी प्रकार से भोला सिंह की तिबारी 1910 से पहले निर्मित नहीं हो सकती।


२- बालम सिंह राणा की तिबारी

बालम सिंह के पोते कलम सिंह राणा की उम्र आज 80 के लगभग है तो बालम सिंह का जन्म लगभग 1900 ठहरता है। याने 1925 के करीब तिबारी निर्मित हुयी होगी और तिबारी की मरोम्मत 1952 में भी हुयी

३- तारा सिंह राणा की तिबारी

तारा सिंह राणा का पुत्र भरत सिंह राणा हुए , भरत सिंह का पुत्र आलम सिंह राणा व आलम सिंह का पुत्र कलम सिंह की उम्र आज 40 वर्ष की है। याने यह तिबारी भी 1940 के बाद ही निर्मित हुयी। अनाम तिबारी काष्ट अंकन कलाकार - इन तिबारियों के वर्तमान उत्तराधिकारियों से पूछने पर उत्तर मिला कि उस समय भवन चिणाइ तो गंगापार वाले करते थे किन्तु तिबारी निर्माण के बारे में एक उत्तर होता है मथि मुलक (उत्तरी गढ़वाल ) . केवल भोला सिंह राणा की तिबारी कलाकार का नाम मिला और उसका नाम था मथुरा। कोई कहता है भवन निर्माता व् काष्ठ कलाकार गंगापार (टिहरी ) डुमरी -बछणस्यूं के थे। जबकि बछणस्यूं तो गंगा वार आज रुद्रप्रयाग किन्तु पहले पौड़ी गढ़वाल में था ।

ओड /भवन निर्माण

छोटे मकानों चिनाई (निर्माण ) हेतु ओड व मिस्त्री गाँव या मंजोखी (पड़ोसी गाँव ) के होते थे जिनमे भूतकाल व वर्तमान ओड ओं के नाम हैं - जवाहर सिंह , रूप सिंह , टेक सिंह , घनश्याम।

मंजोखी के ओडों में रैजा , भाना सतूर आदि प्रसिद्ध हुए हैं। यही पत्थर खान से पत्थर निकलते थे व बढ़ई गिरी का काम भी करते थे

यद्यपि मंदर निर्माण (बड़ी व दर्री जैसी गेंहू के पराळ से बनी चटाई ) प्रत्येक व्यक्ति पारंगत था किन्तु लूंगा सिंह , होशियार सिंह , फते सिंह , , कल्याण सिंह , दलीप सिंह विशिष्ट कलाकार माने जाते थे।

बांस के भंडार हेतु बर्तन (कंटेनर ) जैसे दबल आदि कलाकार थे चतुर

लोहार - गडमोला के चैतराम आर्य

टमटा गिरी (धातु वर्तन व उपकरण )- टंकयाण (धातु बर्तन मरोम्मत ) हेतु गडमोला पर निर्भर अन्यथा कभी जसपुर पर ही निर्भर थे

सुनार हेतु भी अन्य गाँव जैसे मल्ला ढांगू के जसपुर व पाली गाँव पर निर्भर

कोल्हू (कुलड़ ) - तेल पेरने हेतु कोल्हू दाबड़ के बंशीलाल कुलड़ मालिक हुए हैं।

कृषि कार्य हेतु कील , ज्यूड़ (रेशे का ) , हल , जुआ , निसुड़ , पाटा , दंदळ , रेशे बुनने , प्रत्येक परिवार स्वयं करता था। स्वतन्त्रता के बाद भी प्रत्येक मवासे के अपने म्वार जळट (मधुमखहि घर ) थे। लगभग प्रत्येक पुरुष हिरण , काखड़ , सुवर , शाही (सौलू ), आदि के आखेट खेलने , मुर्गा पकड़ने मेंकुशल थे। गंगा किनारे गाँव होने के कारण मच्छी भी मारना Fishing जानते थे।

पंडित - दाबड़ एक राजपूतों व शिल्पकारों का गाँव है अतः पंडिताई हेतु खंड पर निर्भर। खंड के स्व परमान्द बड़थ्वाल प्रसिद्ध थे और वर्तमान में श्याम लाल बड़थ्वाल।

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- सूचना आभार - सत्यप्रसाद बड़थ्वाल (खंड ) व ममता राणा (दाबड़ )

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