आलेख :विवेकानंद जखमोला शैलेश

गटकोट सिलोगी पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड

बिंदेश्वर महादेव चौथान में स्थित जल स्रोत (धारे , मंगारे , नौले ) की पाषाण शैली व निर्माण कला।

गढभूमि का प्राकृतिक जलस्रोत धारा मंगरा नौल़ौं कि निर्माण शैली विवेचना ।की इस श्रृंखला के अंतर्गत आज प्रस्तुत है उत्तराखंड जनपद पौड़ी गढ़वाल पट्टी चौथान विकास खंड थलीसैण के आराध्य देव भगवान बिंदेश्वर महादेव के धाम में निर्मित धारा त्रिवेणी की निर्माण शैली के बारे में।

जल संसाधनों की दृष्टि से देवभूमि जल समृद्ध तो है ही, इसके साथ ही समूचे उत्तराखंड की अपनी अद्भुत जल संस्कृति के लिए भी विशिष्ट पहचान रही है। इसके साक्ष्य हैं यहाँ पर उपलब्ध धारे, मंगारे, नौले और आदि शंकराचार्य कालीन जलकूपिकाएं। पहाड़ी गांवों में जल संसाधनों को पाषाण कला के माध्यम से आकर्षक स्वरूप देने की पुरातन परंपरा रही है। बाबा बिंदेश्वर के चरणों को पखारती यह जल त्रिवेणी इसका ही एक प्रत्यक्ष उदाहरण है। इस जलस्रोत को स्थानीय शिल्पियों द्वारा सुंदर सधे हुए ढंग से निर्मित किया गया है । धाराओं को उचित ढलान पर स्थापित करने के लिए पहले स्थानीय खदान के ढलवां पत्थरों को सुंदर ढंग से काटा गया है। तब इन गढी हुई आकर्षक सिल्लियों से पगार चिनाई ब्यूंत से 6 फीट ऊंची आधार दीवार चिनी गई है। तब भगवान शिव को समर्पित इस जल त्रिवेणी को तीन धाराओं(गंगा, यमुना, सरस्वती) में बांटने के लिए ढलवां पत्थरों को हथौड़ी छेन से गढ़कर एक कतार में तीन घुघूती मुखी धारे(मंगारे) लगाये गये हैं। मंगारौं को संतुलित व सुरक्षित करने के लिए इन्हें ऊपर से पुनः आकर्षक प्रस्तर सिल्लियों से चिनकर व्यवस्थित किया गया है । धारे के आधार को मजबूती देने के लिए इसके नीचे छोटी छोटी पठालें रखी गई हैं , जिससे कि गिरती धारा से भूमि कटाव न हो और गागर बंठे आदि वर्तन रखने के लिए ठोस आधार उपलब्ध हो जाए तथा जलस्रोत की स्वच्छता भी बनी रहे।मुख्य स्रोत को एकत्र करने के लिए ढलवां पत्थरों को खोदकर शानदार नाली बनाई गई है।

जल धाराओं को सुरक्षित रखने और पुरुष स्नानघर का स्वरूप देने के लिए खुले कमरे नुमा सुरक्षा दीवार चिनी गई है जिसमें दोनों ओर कपड़े वर्तन आदि रखने के लिए सपाट पठालों से स्लैब बनाई गई है। जलस्रोत की आधार दीवार और संपर्क नाली के बाहर से काई जमी हुई है। धारा के बगल में दो कक्षों वाला महिला स्नानागार भी बनाया गया है और इसमें जलापूर्ति के लिए साधारण धारे लगाए गए हैं। यहां वर्ष भर बाबा बिंदेश्वर के चरणों में दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। इसलिए स्वयं की शारीरिक स्वच्छता व आत्मिक पवित्रता के साथ ही साथ भगवान शिव का जलाभिषेक करने के लिए भी यह जलत्रिवेणी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आ रही है । बनावट की दृष्टि से बिंदेश्वर महादेव मंदिर की यह प्रसिद्ध जल त्रिवेणी असाधारण और प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से अत्यंत मनोहारी है। देवदार 🌲 के सघन वन्य प्रदेश(दूधातोली पर्वत श्रृंखला) से निसृत यह जल धारा प्राकृतिक और मानवीकृत कला के अनूठे सम्मिश्रण को दर्शाती है।

धारा के ऊपरी क्षेत्र में जमी छोटी छोटी हरी झाड़ियां और बांज देवदार के वृक्षों की कतारें ऐसे प्रतीत होती हैं जैसे कि हरी साड़ी में लिपटी कोई सुंदर नायिका इस धारे के जल में नहाने और और पवित्र शीतल जल का सेवन करने की मंशा लिए इठलाते बलखाते अल्हड़पन से दौड़ी चली आ रही हो। जिससे इस जलधारा का सौंदर्य अत्यंत ही मनोहारी हो गया है।

प्रेरणा स्रोत - वरिष्ठ भाषाविद साहित्यकार श्री भीष्म कुकरेती जी जसपुर ढांगू हाल निवासी मुम्बई ।

छायाचित्र:श्री दिलवर सिंह भंडारी जी कांडई चौथान की फेसबुक वाॅल से साभार ।