उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास भाग -16

उत्तराखंड परिपेक्ष्य में कुलथ /गहथ दाल का इतिहास

दालों /दलहन का उत्तराखंड परिपेक्ष में इतिहास -भाग -5

उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास --16

उत्तराखंड में कृषि व भोजन का इतिहास --16

दालों /दलहन का उत्तराखंड परिपेक्ष में इतिहास -भाग -5

आलेख : भीष्म कुकरेती

Botanical Name - Marotyloma uniflorum

English name- Horse Gram

कुलथी , कुलथ या गहथ की जन्मस्थली भारत है। कर्नाटक व आंध्र प्रदेश से प्रागइतिहासिक खुदाई से 2000 BC पहले गहथ /कुलथ के अवशेष मिले हैं। दाइमाबद (महाराष्ट्र ) में भी कुलथी /गहथ के प्रागैतिहासिक प्रमाण मिले हैं। हरप्पा संस्कृति में भी कुलथ /गहथ भोज्य पदार्थ का प्रयोग होता था (अरुणिमा कश्यप , स्टीव वेवर म 2010 म ऐंटीक्विटी जौर्नल ). वेदों व उपनिषदों में भी कुल्थी / गहथ के औषधीय उपयोगों का वर्णन है।

बौद्ध व जैन साहित्य (200BC से पहले ) में भी गहथ/कुलथी , कुलथ का वर्णन मिलता है।

चरक संहिता में चरक ने स्वेदोपगगण शिंबी धान्यवर्ग में रखा है।

सुश्रुता ने कुलथी /गहथ को अर्थवजनका दर्विका व ध्यानय वर्ग में रखा है। और सुश्रुता (400 BC ) ने वणकुलथा का उल्लेख किया है।

तमिल संगम साहित्य (100 BC -300 A D ) में कुलथ को कोलु उल्लेख है।

फाणिक शब्द बाद में गढ़वाली में फाणु हो गया हो।

बागभट्ट ने अष्टांग हृदय में धन्य वर्ग में रखा तो अष्टांग संग्रह में कुल्थी या गहथ को स्थापना गण में रखा है

कौटिल्य ने कुलथ को वर्ष अंत या पहले बोने का उल्लेख किया है।

संगम साहित्य में कुलथ /गहथ को ने अनाज के साथ बोने का उल्लेख है।

कश्यप (800 सदी ) ने छिडक कर बोने का उल्लेख किया और उल्लेख किया कि एक बार गुड़ाई होनी आवश्यक है।

निघण्टु साहित्य में भी गहथ /कुलथ का उल्लेख भली भांति हुआ है।

द्रव्यगुण संग्रह, मदनपाल निघण्टु , कालीदेव निघण्टु , भावप्रकाश निघण्टु , शालिग्राम निघण्टु में कुल्था को धान्यवर्ग में रखा गया है। राजनिघण्टु , व शोडल निघण्टु ने कुलथ को शल्यादिवर्ग में रखा है। धन्वंतरि निघण्टु ने गहथ को धन्य वर्ग में रखा तो प्रिय निघण्टु ने पिपलादि वर्ग में रखा व आदर्श निघट्नु ने पलाशआदि वर्ग में कुलथी को स्थान दिया।

प्राचीन साहित्यों में गहथ /कुलथी /कुलथ के र्सद्द्र दाल /सूप को युस कहा गया है जिसे आज रसम कहा जाता है।

वरणका समुचय (1520 सदी ) में गहथ /कुलथी /कुलथ से 'बड़ा ' या पकोड़ी बनाने का उल्लेख हुआ है।

वाट (1889 ) ने उल्लेख किया है कि गहथ /कुलथी /कुलथ भोज्य पदार्थ के अतिरिक्त चारे का भी काम आता है।

उत्तराखण्ड में गहथ /कुल्थी के निम्न भोज्य उपयोग हैं -

दाल - अलग अलग प्रकार की दाल

फाणु /फांडु

पत्तों के साथ कपिलु

पटुड़ी / मस्यट की रोटी

भिगोये कच्चे दानों के परोठे

उबले दानों को पीसकर मस्यट के भरी रोटी व भरे पूरी /स्वाळ

पकोड़ियां

चबेना या बुखण