गौं गौं की लोककला

ढांगू संदर्भ में गढ़वाल की लोक कलाएं व भूले बिसरे कलाकार श्रृंखला - 7

मित्रग्राम (मल्ला ढांगू ) की लोक कलाएं व लोक कलाकार

ढांगू संदर्भ में गढ़वाल की लोक कलाएं व भूले बिसरे कलाकार श्रृंखला - 7


(चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )

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मल्ला ढांगू में उत्तरमुखी मित्रग्राम जखमोलाओं का गाँव है जहां पिछली शताब्दी में दो ही शिल्पकार परिवार थे। मित्रग्राम बहुत पहले गटकोट का ही भाग था या गटकोट से ही जखमोला परिवार मित्रग्राम में बसा। इतिहासकार डबराल लिखते हैं कि 1815 बाद विद्वान् , अंग्रेज विरोधी पंडित बासबानंद बहुगुणा गढ़वाल पलायन करते वक्त जसपुर , ग्वील से होते हुए मित्रग्राम ठहरे थे। मित्रग्राम के पूर्व में बन्नी , खैंडुड़ी , पश्चिम गटकोट , उत्तर में बाड्यों गाँव हैं। हिंवल नदी भी मित्रग्राम की सीमा में बहती है।

गाँव में प्राचीन बट वृक्ष ने कई नए वृक्षों को जन्म दे दिया था। इन वृक्षों के नीचे सभी परिवारों के पत्थर के ओखलियाँ स्थापित थीं।

अन्य गढ़वाल क्षेत्र की भाँति (बाबुलकर द्वारा विभाजित )मित्रग्राम में भी निम्न कलाएं व शिल्प बीसवीं सदी अंत तक विद्यमान थे. अब अंतर् आता दिख रहा है।

अ - संस्कृति संस्कारों से संबंधित कलाभ्यक्तियाँ

ब - शरीर अंकन व अलंकरण कलाएं व शिल्प

स -फुटकर। कला /शिल्प जैसे भोजन बनाना , अध्यापकी , खेल कलाएं , आखेट, गूढ़ भाषा वाचन (अनका ये , कनका क, मनका म ललका ला =कमला , जैसे ) या अय्यारी भाषा आदि

द - जीवकोपार्जन की पेशेवर की व्यवसायिक कलाएं या शिल्प व जीवनोपयोगी शिल्प व कलायें


मित्रग्राम में आवास भवन व गौशालाएं अलग अलग स्थाओं में थे। गांव मध्य पंचायत चौक है व उसके नीचे दिवार पर भूम्या मूर्ति थरपी गयी है।


भवन चार प्रकार के हैं

1 - आधुनिक -जो पुराने मकान तोड़कर सीमेंट आदि से बनाये गए हैं ऊपरी छत चौरस हैं

2 - आम बीसवीं सदी के भवन उबर , मंज्यूळ , ऊपरी छत स्लेटी पत्थर छे छायी हुयी। छज्जे पत्थर के।

3 - आम बीसवीं सदी के भवन किन्तु छज्जे या तो लकड़ी व चारों और या दो ओर लकड़ी के जंगले जैसे शेखरा नंद जखमोला ( चंद्रमोहन जखमोला )

4 -तिबारियां जहां लकड़ी की नक्कासी हुयी है - तिबारियां मित्रा नंद जखमोला , सदा नंद जखमोला , परुशराम जखमोला , भरोसा नंद जखमोला व नारायण दत्त जखमोला की थीं। नारायण दत्त जखमोला की तिबारी बची है जिसकी फोटो इस लेखक को प्राप्त हुईं , जिसमे साधारण नक्कासी है याने वनस्पति व तरंगित नक्कासी है , इस नक्कासी में पशु व पक्षी दर्शन नहीं हुए।

कर्मकांडी ब्राह्मण - सदा नंद जखमोला, मित्रा नंद जखमोला। वर्तमान में रोशन जखमोला प्रसिद्ध हैं

मित्रग्राम वालों के गुरु जसपुर के बहुगुणा हैं तो कर्मकांडी ब्राह्मण ठंठोली के कंडवाल। वैद्य भी ठंठोली के कंडवाल थे।

अतः गाँव में सभी कर्मकांडी व संस्कारी चित्रकलाओं के दर्शन होते हैं जैसे चौकल में गणेश थरपण आदि। हल्दीहाथ , होली में रंग उबटन लगाना लगवाना सामन्य थे ही।

गांव में पितरवड़ भी है। तिलक कला , आदि भी उल्लेखनीय धार्मिक कला विद्यमान है।

ओड /भवन निर्माता - जसपुर व सौड़ पर निर्भर

कृषि बढ़ई कार्य जैसे हल जुआ , जोळ , निसुड़ , कील , मुंगुर स्वयं निर्माण करते थे

वृहद बढ़ई कार्य हेतु भी जसपुर व सौड़ पर निर्भर। चीड़ हेतु दुसरे गाँवों पर निर्भरता

सुनार - जसपुर व पाली वाले

टमटागिरी - जसपुर पर निर्भर

लोहार - रख्वाराम परिवार जो छोटे मोटे उपकरण निर्माण करते थे बड़े कार्य हेतु जसपुर

छज्जे , ओखली। सिल्ल बट्ट हेतु ठंठोली पर निर्भर , छत के पत्थर कलसी कुठार (मल्ला ढांगू ) से व छज्जे पैडळ स्यूं से आते थे।

भ्यूंळ की टोकरियां खुद बनाते थे किन्तु बांस के दबल , टोकरी हेतु बाडयों पर निर्भर

गोठ संस्कृति थी अतः टाट पल्ल निर्माण की कला जीवित थी

भ्यूंळ , भांग के स्योळ से परिवार रस्सी , न्यार , नाड़ बनाते थे ,(खटोला , चौकी स्वयं निर्माण करते थे) ।

रामलीला कलाकार - जयराम, स्वयंबर, रामचंद्र , हरि प्रसाद , नाथूराम , शिरोमणि जखमोला आदि प्रसिद्ध हुए हैं

झाड़खंडी कार्य हेतु ठंठोली , गडमोळा आदि गाँवों पर निर्भर

महिलाएं दूध दुहने , छांछ छोळने , कुटाई -पिसाई , घास -लकड़ी कटाई , मंडाई , गेंहू के नळो से टोकरियां बनाने विशेषज्ञ थीं

अध्यापक भी मित्रग्राम से हुए हैं।

अगम राम जखमोला भोजन पकाने के विशेषज्ञ थे।

चूल्हे निर्माण कार्य गांव में ही होते थे।


गढ़वाल के अन्य गाँवों की तरह मित्रग्राम में निम्न भण्डारीकरण पात्र /कंटेनर्स उपयोग में आते थे -

गेंहू के नळो की बनी टोकरियां (रोटी रखने के काम )

तौलने के काष्ठ उपकरण में माणा , पाथ व धातु पाथ उपकरण होते थे।

अनाज भण्डारीकरण दबल , में होत्ते थे , लकड़ी के कुठार भी थे।

दूध , दही, घी भण्डारीकरण लकड़ी के परोठी , पर्या , पर्वठ , बरोळी , मिट्टी की बरोळी आदि

कठबड़ भी होते थे।

सभी भांति की टोकरियां

नमक लकड़ी के पात्रों में जमा रहता था।

पहले मिटटी के पात्र हथनूड़ से आयात होते थे


(आभार - रामचंद्र जखमोला की सूचना )

Photo curtsy -Roshan Jakhmola


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