कुछ अलग उत्तराखंड

उत्तराखंड के अंतिम गांव गंगी में बह रही संपन्नता की प्रेरक गंगा

टिहरी, उत्तराखंड स्थित सीमांत गांव गंगी के परिवार उन परिवारों में शामिल नहीं, जो सुविधाओं के अभाव में अपना गांव छोड़ पलायन कर गए। उत्तराखंड के अनेक गांव सूने होते गए। ऐसे में गंगी एक प्रतिमान स्थापित करने में सफल रहा है। कृषि, पशुपालन और दृढ़ इच्छाशक्ति के बूते इन्होंने संपन्नता की सुखद तस्वीर प्रस्तुत की है।

गंगी के लोगों ने अपने पिछड़ेपन को तो दूर किया ही, अपने स्तर पर अर्थव्यवस्था को भी नई ऊंचाई दी। यहां आलू और राजमा उत्पादन से ही किसान प्रतिवर्ष 50 लाख रुपये का कारोबार कर रहे हैं। जबकि, हर सीजन भेड़ों से करीब 50 क्विंटल ऊन निकालते हैं। ऊन अधीक्षक चंबा एसएस बोनाल बताते हैं कि इस ऊन को उत्तराखंड खादी बोर्ड के अलावा देश के अन्य राज्य भी खरीदते हैं।

जिला मुख्यालय नई टिहरी से 90 किमी की दूरी तय कर घनसाली-घुत्तु होते हुए भिलंगना ब्लॉक के दूरस्थ गांव गंगी पहुंचते हैं। समुद्रतल से 7000 फीट की ऊंचाई पर बसे गंगी की आबादी 700 है। गांव में हर परिवार के पास 500 से लेकर एक हजार तक भेड़-बकरियां हैं। एक बकरी की कीमत उसके वजन के हिसाब से तीन से लेकर सात हजार रुपये तक होती है। ग्रामीणों के पास सामान ढोने के लिए अपने घोड़ा-खच्चर भी हैं। इन्हें केदारनाथ यात्रा में भी इस्तेमाल किया जाता है। एक घोड़े की कीमत करीबी 1.25 लाख और खच्चर की करीब 70 हजार रुपये है। जिले के मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. बीएस रावत बताते हैं कि गंगी के घोड़ा-खच्चर देशी नस्ल के हैं, जो न ज्यादा बड़े होते हैं, न छोटे ही। इसलिए पर्वतीय क्षेत्र में इन्हीं की डिमांड है।

गंगी तक सड़क तो पहुंच गई है, लेकिन अभी इस पर छोटे वाहन भी नहीं गुजर पा रहे। सो, ग्रामीणों को आठ से दस किमी की दूरी पैदल नापनी पड़ती है। दो साल पूर्व ही गांव सौर ऊर्जा से रोशन हुआ और सभी 165 परिवार इसका उपभोग कर रहे हैं। गंगी के अधिकांश युवा 12वीं तक ही पढ़े हैं। स्नातक सिर्फ 12 हैं, लेकिन इनमें लड़कियां शामिल नहीं हैं। दरअसल, इंटर की पढ़ाई के लिए नौनिहालों को दस किमी पैदल चलकर राजकीय इंटर कॉलेज घुत्तू पहुंचना पड़ता है। जबकि, स्नातक की पढ़ाई के लिए बालगंगा महाविद्यालय सेंदुल की दूरी 40 किमी है। ऐसे में लड़कियां इंटर के बाद नहीं पढ़ पातीं।

जिला पर्यटन अधिकारी बताते हैं कि गंगी से प्रसिद्ध पर्यटन स्थल पंवाली कांठा व खतलिंग ग्लेशियर आसानी से पहुंचा जा सकता है। ट्रैकिंग के लिए यह जगह काफी प्रसिद्ध है। यहां से केदारनाथ के लिए भी पैदल मार्ग जाता है।

नहीं रोया कमियों का रोना..

गंगी में भोटिया नस्ल के कुत्ते भी पाले जाते हैं। इनकी उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में भारी डिमांड है। भोटिया कुत्ते का एक पिल्ला पांच हजार रुपये तक में बिकता है। गंगी के लोगों ने इसे भी कमाई का माध्यम बनाने में चूक नहीं की। यानी कमियों का रोना न रोकर, जो भी है उसी से नई राह बनाने का काम गंगी ने कर दिखाया है।