फरसाडी (पलतीर क्लब)

आखिरीजात्रा (विदगी)

जब ई सृष्टि क

घटपिंड़ि (धर्ति) मा

कै भी द्विपाया

चौपाया जीव कु

जीबन पिंड

मातलोक का दरव्जा

भच्वल्दं त जो जीव

जल्मुंद चा त ब्वदि

अलणा कु फलणु

ह्वे... !

ग्या ....!

मल्लप हूणा कु

अर जाणा कु

विधान त विधाता कु

पैलि कर्युं चा

इलै वेकि भ्वरिं

पैंछी सांसों तमळि

झणि

कै घड़ि कै पल मा

खाली ह्वे जावा

कै भि कुछ भि पता

नि लगदु

वेकि दिंई हर चीज

बिल्कुल नापतोलि रैंद

अर

यख जख जीव

जल्मुद चा वख

ल्हांस अर

म्वाडू बणणा तका

आखिरी विदैगी

जात्रा पुर्यांद .... !

ई जात्रा मा जाण से

वे जीवा कु ई धर्ति मा

बैर भौ कु गिजार

हींस हंकार कु थुपुडु

मोहमाया कु गफ्फा

सब यखि छूटि जांद

अर

जब लगंद वेकि

जिकुड़ि द्वर ढ़कि

मड़घटा अंदाळ तब

दगडम जांद बल

वेकि

करम की फंचि

धरम की कुटिरि

हूंदू चा वे दगड़

न्यौ निसाब बल

वे ज्यूंरा दरबार !

अर

यख जनि

माटा चीज माटै जुगा

हूंद त वेमा बटि

झड़ैंदि भि चा

अर रैंदि भि चा

सिर्फ अर सिर्फ

वे जीव का

नौं की बिज्वाड़ !!

जो कभी सुकदि नि च

अर कै से फुकदि नि च

तभि त नौ ही त च

यख इन

जो सदनि खुणि

अमर ह्वेजांद

अमर ह्वेजांद !!