गौं गौं की लोककला

बग्वाली पोखर (अल्मोड़ा ) में मोहन सिंह बिष्ट की 110 साल पुरानी बाखली में काष्ठ कला

सूचना व फोटो आभार : दीपक मेहता , अल्मोड़ा

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 130

बग्वाली पोखर (अल्मोड़ा ) में मोहन सिंह बिष्ट की 110 साल पुरानी बाखली में काष्ठ कला

बग्वाली पोखर (अल्मोड़ा ) मे मोहन सिंह बिष्ट की 110 साल पुरानी बाखली में काष्ठ कला , अलंकरण , लकड़ी नक्कासी

कुमाऊं , गढ़वाल, हरिद्वार , उत्तराखंड , हिमालय की भवन ( बाखली तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , खोली , कोटि बनल ) में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी - 130

संकलन - भीष्म कुकरेती

प्रोफेसर मृगेश पांडे अनुसार बाखली का अर्थ होता है कि --- एक जाति बिरादरी के लोग एक दूसरे से जुड़े एक कतार में घर बनाते है तो उसे बाखली कहते हैं व बाखली के सभी घरों की धुरी एक ही सीध में होती है। अधिकतर मकान दो मंजिले दोपुर या तिपुर होते हैं व घर एक बराबर ऊँचाई में होते हैं। मोहन बिष्ट अनुसार बाखली का पर्यायवाची शब्द बखाई भी है।

भैया दूज के दिन धार्मिक मेले हेतु प्रसिद्ध बग्वाली पोखर में कई बाखली या बखाई थीं। सम्प्रति , आज अल्मोड़ा के द्वारहाट क्षेत्र में बग्वाली पोखर में मोहन सिंह बिष्ट परिवार का 110 साल से अधिक पुराने दुपुर (1 +1 ) बखाली में काष्ठ कला व काष्ठ अलंकरण अथवा लकड़ी में नक्कासी की विवेचना होगी। सन 1915 में इस बाखली के मध्य पोस्ट ओफिस था व आज भी पोस्ट ओफिस इसी स्थान में बगल वाले मकान में स्थानन्तरित हुआ है।

बाखली /बखाई दुखंड /दुभित्या (एक कमरा अंदर व एक कमा बाहर ) है व लगता है या तो गौशाला रूप में प्रयोग होता था या भंडारीकरण हेतु उपयोग होता रहा होगा /है। काष्ठ कला या काष्ठ अलंकरण उत्कीर्णन दृष्टि से तल मंजिल में कोई विशेष काष्ठ वस्तु दृष्टिगोचर नहीं होती है। पहली मंजिल में भी स्तम्भ छोड़कर दास (छज्जा को आधार देने वाली संरचना) , छत आधार पट्टिका में सीधा सपाट कटान ही है ।

दोनों मकानों में कुल 32 या अधिक स्तम्भ /सिंगाड़ /खम्भे हैं व उनसे 31 ख्वाळ /खोली बनते हैं। ख्वाळ /ख्वाल के निचले भाग में ढाई फिट तक स्तम्भ के दोनों ओर काष्ठ पट्टिकाएं लगीं है जिससे स्तम्भ मोटा दीखता है व यहीं से स्तम्भ ऊपर की ओर बढ़कर सीधे मुरिन्ड /मथिण्ड या छत के नीचे पट्टिका के नीचे शीर्ष वाली कड़ी से मिल जाते हैं। शीर्ष कड़ी से नीचे स्तम्भों में कटान नुमा आकृति उत्कीर्ण हुयी है। छज्जे से ढाई फिट ऊपर तक रेलिंग व निम्न भाग पर पट्टिका लगी हैं। , इन पट्टिकाओं में ज्यामितीय ढंग से आयताकार आकृति उत्कीर्ण (carved ) हुयी है। कुश ख्वाळ पूरे के पूरे लकड़ी की पट्टिका से ढके हैं जैसे दरवाजे होते हैं। इन ख्वाळों /खोलियों की पट्टिकाओं में त्रिभुजाकार या आयताकार अंकन /कटान हुआ है व अंकन नयनाभिरामी हैं। सभी ख्वाळों के पपोरे पट्टिकाओं या आधार पर ढाई फिट तक की पट्टिकाओं में सभी में एक सामंता है।

कला दृष्टि से पूरे बाखली या मकान में लकड़ी के काम में सामंजस्य है, एकरुपता, एकरसता से छुटकारा , अनुपूचारिक व औपचारिक संतुलन ; कटान में अनुपात का ध्यान , गति , कुछ भागों का अनायास ही ध्यान खिंचाऊ होना , आकार व डिजाइन सिद्धांत का प्रयोग बखूबी हुआ है।

कुमाऊं के अन्य भागों की तुलना में मोहन सिंह बिष्ट की बाखली में प्राकृतिक व मानवीय अलकंरण /नक्कासी नहीं है किन्तु मकान बड़ा होने व स्तम्भों के कटान ने मकान की सुंदरता में चाँद लगा दिए हैं।

सूचना व फोटो आभार : दीपक मेहता , अल्मोड़ा

यह लेख भवन कला संबंधित है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .

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