गौं गौं की लोककला

बैंजी कांडई (दशज्यूला , रुद्रप्रयाग ) में कांडपाल परिवार की तिबारी में काष्ठ कला , अलंकरण /नक्कासी

सूचना व फोटो आभार : जय वर्धन कांडपाल

Copyright

Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 124

बैंजी कांडई (दशज्यूला , रुद्रप्रयाग ) में कांडपाल परिवार की तिबारी में काष्ठ कला , अलंकरण /नक्कासी

गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली , खोली , छाज ) काष्ठ अंकन - 124

संकलन - भीष्म कुकरेती

सर्वेक्षण से पता चलता है कि उत्तरकाशी के बाद चमोली व रुद्रपयाग भवन काष्ठ कला के मामले में अधिक समृद्ध रहा है। रुद्रप्रयाग के दशज्यूला क्षेत्र में कांडई गाँव में कांडपाल परिवार की तिबारी दार मकान यह सिद्ध करने में सफल है कि रुद्रप्रयाग भवन काष्ठ कला के मामले में भाग्यशाली क्षेत्र है।

दश ज्यूला कांडई में कांडपाल परिवार के दुपुर , दुखंड /तिभित्या मकान के हर स्तर पर काष्ठ कला उत्कीर्णन या नक्कासी के दर्शन होते हैं , नकासी या काष्ठ कला अलंकरण विवेचना से कांडपाल परिवार के मकान को

निम्न भागों में विभक्त करना आवश्यक है -

मकान के तल मंजिल में खोली व खोली के अगल बगल में दोनों ओर काष्ठ कला उत्कीर्णन /नक्कासी

तल मंजिल में अन्य कमरों के द्वारों तथा खिड़कियों में काष्ठ कला अलंकरण

पहली मंजिल में तिबारी में काष्ठ कला अलंकरण /नक्कासी

पहली मंजिल में खोली या झरोखों में काष्ठ नक्कासी

प्रवेश द्वार में उत्कृष्ट काष्ठ कला अलंकरण या आमद रास्ते में उमदा नक्कासी:- कांडपाल परिवार की खोली प्रवेश द्वार /आमद रास्ता में नकासी उत्कृष्ट किस्म की है। प्रवेश द्वार के दरवाजों के स्तम्भों में लाजबाब नक्कासी हुयी है। मुख्य स्तम्भ दो अधोलम्भ वर्टिकल स्तम्भों को मिलकर बना है। स्तम्भों के आधार में घुंडी , कमल दल आदि अलंकरण दृष्टिगोचर होते हैं व ऊपर स्तम्भों में वानस्पतिक कला उत्कीर्ण हुयी है। खोली के मुरिन्ड /मथिण्ड /शीर्ष में प्रतीकात्मक याने देव मूर्ति खुदी है व मुरिन्ड पट्टिकाओं में प्राकृतिक (लता , पत्ती ) अलंकरण /नक्कासी हुयी है। छज्जे से शंकुनुमा आकृतियां लटक रही है।

खोली के अगल बगल में दो दो अलग तरह के स्तम्भ खड़े हैं। प्रत्येक स्तम्भ के तल भाग में ज्यामिति कला अलंकरण उत्कीर्ण है व ऊपर चौखट है जिसमे बहुदलीय फूल है। फिर ऊपर के चौखट में एक मानव आकृति व ऊपर के चौखट में फिर बहुदलीय फूल है। फिर ऊपर ज्यामितीय दो चौकियां व बीच में ड्यूलनुम आकृति कटान हुआ है। इन impost /चौकियों के ऊपर दो दो S (अंग्रेजी का एस ) नुमा आकृति खुदी हैं व ऊपर एक आकृति के ऊपर शेर व दूसरी आकृति के ऊपर हाथी की नक्कासी हुयी है। कहा जा सकता है कि खोली के दरवाजे के अगल बगल कुल चार फूल , दो मानव , दो शेर व दो हाथियों की आकृति खुदे है। नक्कासी दिलकश है।

कांडई (दश ज्यूला ) तल मंजिल में अन्य तीन कमरों के दरवाजों के सिंगाड़ /स्तम्भ में आधार से व ऊपर मुरिन्ड /मथिण्ड तक उम्दा किस्म की नक्कासी हुयी है। स्तम्भ के आधार में उल्टा कमल दल (कुम्भी आकृति ) है व ऊपर लता पर्ण व ज्यामितीय कला का मिश्रण है जो लुभावना है। मुरिन्ड /शीर्ष में भी प्राकृतिक व ज्यामितीय कला अंकन है। मुरिन्ड के मध्य प्रतीकात्मक देव आकृति खुदी है। दरवाजों पर भी मन भवन ज्यामितीय कला अलंकरण उत्कीर्णनन दर्शन होते हैं।

दशज्यूला कांडई में कांडपाल परिवार की इस तिबारी की बिलकुल अलग विशेषता है जो गढ़वाल की अन्य किसी भी तिबारी में अब तक नहीं मिली। तिबारी छज्जे के ऊपर देहरी /देळी के ही ऊपर है किन्तु कांडई दशज्यूला के इस तिबारीमें मुख्य चार स्तम्भ के प्रत्येक स्तम्भ वास्तव में चार चार स्तम्भों से मिलकर एक स्तम्भ निर्मित हुए हैं।


चारों मुख्य स्तम्भों में प्रत्येक स्तम्भ में आधार पर उल्टा कमल दल , फिर ड्यूल फिर सुल्टा कमल दल , फिर स्रम्भ की मोटाई कम होना व फिर उल्टा कमल दल , ड्यूल व फिर सुल्टा (upward () कमल दल है। अब प्रत्येक सुलटे कमल दल से उप स्तम्भ आकृतीयना निकलती है जो अंत में ऊपर मुरिन्ड /मथिण्ड /शीर्ष से मिल जाते हैं। इन उप स्तम्भों से ही मेहराब बनते हैं। मेहराब के बाहर त्रिभुजाकार आकृति में प्राकृतिक अलंकरण उत्कीर्ण हुआ है सुंदर रनक्कासी हुयी है। मुरिन्ड में प्रत्येक मेहराब के ऊपर एक देव या प्रतीकात्मक आकृति खुदी है। छत आधार पट्टिका से कई शंकुनुमा आकृतियां नीचे लटकी हैं।

एक और विशेषता दशज्यूला कांडई में कांडपाल परिवार के मकान की है कि मकान के पहली मंजिल पर खड़की का काम बाहर झांकना नहीं अपितु झंकन अहइ , इस खोली में अंडाकार खोल है जिसके बाहर की तो में ज्यामितीय ालकरण हुआ है व अंडकार खोल के अंदर झरोखा बना है जो अलग शैली का ही है और गढ़वाल में कम देखने को मिलता है।

जयवर्धन कांडपाल ने सूचना दी कि मकान सन 1941 में निर्मित हुआ व 1600 चंडी के सिक्के व्यय हुए थे व बल्कि काम श्रमदान से पूर्ण हुआ था। डिजाइन प्राणी दत्त का था व शिल्पकार थे क्वीली के कोली धुमु व धामू।

निष्कर्ष है निकलता है कि कांडपाल परिवार (जगदीश कांडपाल, त्रिलोचन कांडपाल, भगवती कांडपाल, देवेंद्र कांडपाल, विनोद कांडपाल ) के मकान में काष्ठ कला व् अलंकरण उत्कृष्ट किस्म का ही नहीं अपितु कुछ अलग व विशेष किस्म का है , उम्दा नक्कासी का नमूना इस मकान में मिलता है , मकान के काष्ठ में सभी प्रकार के प्राकृतिक , प्रतीकात्मक व ज्यामितीय अलंकरण /नक्कासी मिलता है। दशज्यूला कांडई के इस मकान में गढ़वाल से अलग विशेष कला के दर्शन भी होते हैं जैसे खोली के बाहर अगल बगल में अलग किस्म की आकृतियों का अंकन , तिबारी के चारों स्तम्भ अलग अलग चार स्तम्भों से मिलकर निमृत हुयी है जो गढ़वाल में अन्य स्थलों की तिबरियों में नहीं दिखी है अब तक व इ सभी स्तंभसीधा मुरिन्ड से नहीं मिलते अपितु इनके उप फिर से उप स्तम्भ नुमा आकृतियां है वे आकृतिया मुरिन्ड /मथिण्ड /शीर्ष से मिलते हैं। मकान में खड़की भी अंडे से झाँकन हेतु है।

सूचना व फोटो आभार : जय वर्धन कांडपाल

यह आलेख भवन कला संबंधी है न कि मिल्कियत संबंधी . मिलकियत की सूचना श्रुति से मिली है अत: अंतर के लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .

Copyright @ Bhishma Kukreti, 2020