गौं गौं की लोककला

संकलन

भीष्म कुकरेती

गटकोट की तिबारियों में काष्ठ उत्कीर्ण कला - 1

गटकोट संदर्भ में ढांगू गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों पर अंकन कला -9

सूचना व फोटो आभार - कमल जखमोला व विवेका नंद जखमोला , गटकोट

हिमालय की भवन ( तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 12

गटकोट के महेशा नंद व भवानी दत्त जखमोला की तिबारी की काष्ठ उत्कीर्ण कला

मित्रग्राम में भवन काष्ठ कला भाग -1

( चूँकि आलेख अन्य पुरुष में है तो श्रीमती , श्री व जी शब्द नहीं जोड़े गए है )

संकलन - भीष्म कुकरेती

गटकोट लोक कला अध्याय में कहा गया कि गटकोट गाँव ढांगू का एक महत्वपूर्ण गाँव है। गटकोट का एक अर्थ गढ़ कोट या गढ़ी में किला भी बताया जाता है। इस लेखक को गटकोट में भूतकाल में पांच छह तिबारियां होने की सूचना मिली है। आज केवल एक तिबारी -गुठ्यार सिंह रावत की ही तिबारी सुरक्षित है बाकी तिबारियां ध्वस्त होने के बिलकुल निकट हैं।

एक तिबारी जो महेशा नंद व भवानी दत्त जखमोला भाइयों की तिबारी के नाम से जानी जाती थी भी भग्नावस्था में है। देख भाल की बाट जोह रही यह तिबारी संभवतया एक दो साल में पूर्ण त्या ध्वस्त हो जाएगी फिर कोई इस तिबारी के पत्थर ले जायेगा व कोई लकड़ियां ले जाएगा और तब ऐसी तिबारियों का इतिहास पूरी तरह गर्त हो जायेगा।

महेशा नंद जखमोला व भवानी दत्त की तिबारी भी ढांगू की अन्य तिबारियों जैसे ही प्र्त्थम मंजिल में है। नीची तल मंजिल में एक कमरा आगे व पीछे एक कमरा जिन्हे दुभित्या भितर कहा जाता है। दो दुभित्या कमरे तल मंजिल में तीन दुभित्या कमरे हैं किन्तु ऊपरी पहली मंजिल में आगे के दो कमरों के मध्य दीवाल नहीं है व बरामदा है जिसके आगे काष्ठ कलकृति से तिबारी बनी है।

मकान ब्रिटिश काल में प्रचलित शैली याने मिट्टी पत्थर से बना है। तिबारी में चार बलशाली काष्ठ स्तम्भ हैं व किनारे के दो स्तम्भ काष्ठ कड़ी (शाफ्ट व बळी ) की सहायता से दीवाल से जुड़े हैं। चारों स्तम्भों से तीन मोरी , द्वार बनते हैं। स्तम्भ व दीवार को जोड़ने वाली काष्ठ कड़ी पर भी प्राकृतिक वानस्पतिक आकृतियां (natural carving art ) उभर कर सामनेआयी हैं।

प्रत्येक स्तम्भ (column ) आकर व कलाकृति व उत्कीर्ण अनुसार बिलकुल समान हैं। पहली मंजिल के छज्जे के ऊपर उप छज्जा भी पत्थरों से निर्मित है व इस उप छज्जे के ऊपर स्तम्भ आधार एक पाषाण आधार है. स्तम्भ का काष्ठ आधार हाथीपद व जैसे छवि देता है। वास्तव में यह आधार अधोगामी कमल पुष्प दल की आकृतियों के कारण हाथीपद जैसे छवि प्रदान करता है। अधोगामी पदम् पुष्प दल जहां से शरू होते हैं वहा गुटका नुमा (wooden plate ) गोलाई लिए आकर में है व गड्ढे व उभार कला शैली से बना है। स्तम्भ के गोलाई में गुटका नुमा इस आकार के बाद ऊपर की ओर उर्घ्वगामी पदम् पुष्प दल शुरू होते हैं जो कुछ अंतराल उपरान्त कमलाकृति छवि प्रदान करने में सफल है। कमलाकृति समाप्ति के बाद स्तम्भ का shaft या कड़ी है जिस पर ऊपर जाने के बाद फिर से दो गुटकानुमा आकृति उभरती है। कड़ी में ज्यामितीय व प्रकृति जन्य कला उत्कीर्ण है। दोनों गुटकों में प्रकृति कलाकृति खुदी हैं। गुटका के ऊपर पुनः खड़ा दबल , पथ्वड़ या कुम्भ नुमा छवि उबरती है जिस पर प्राकृतिक कलाकृति उत्कीर्ण हैं। इस भाग पर पत्ती कलाकृति उभर कर आयी है। अधिकतर तिबारियों में स्तम्भ छड़ी/कड़ी (shaft ) के इस भाग में ऊर्घ्वाकर कमलाकृति मिलती है अपवाद दाबड़ आदि छोड़कर , किन्तु महेशा नंद -भवानी ड्डत की तिबारी में इस भाग में पत्ती आकृति उत्कीर्ण है। इस आकृति के बाद स्तम्भ से मेहराब का अर्धगोलाकार मंडल शुरू होता है जो दुसरे स्तम्भ के अर्ध मंडल से जुड़कर arch मेहराब बनता है। स्तम्भ के shaft /छड़ी के जिस स्थान (Impost ) से गोलकार मंडल (springer )शुरू होता है उसी स्थान (impost ) से स्तम्भ का थांत (बहुत बड़ा बैट नुमा आकृति ) शुरू होता है इस थांत पर भी प्रकति जन्य कलाकृति उत्कीर्ण /खुदे हैं।

मेहराव में कलाकृति

मेहराब या arch trefoil या तिपतिया नुमा मेहराब है। अंत वक्र (intrados ) के दो वक्र तो तिपतिया या trefoil नुमा ही है किन्तु अन्तवक्र के ऊपर का वक्र या Extrados कुछ कुछ Tudor आकृति का खुदा है। तिपतिया या trefoil शीर्ष में मंडल या arch कुछ कुछ नुकीला सा होता है जैसे ogee arch हो किन्तु यह मेहराब मुख्यतया trefoil नुमा ही है।

मेहराब में ऊपर के स्थान (keystone ) में किनारे पर दो पुष्प दल (शगुन प्रतीक ) उभर कर आये हैं जो चक्राकार हैं व केंद्र में गणेश प्रतीक (अंडकार आकृति जैसे पूजन के वक्त गोबर का गणेश बनाया जाता है ) . दो मंडल जहाँ पर मिलते हैं याने मेहराब का बिलकुल शीर्षमें प्रतीकत्मक शगुन /भाग्यशाली आकृत उभर कर आयी है । मेहराब के शीर्ष के बाह्य भाग में ज्यामितीय व प्रकृति कला साफ़ खुदी मिलती हैं।

मेहराब के बाहर एक चौकोर आकृति उभरी है जिस पर प्राकृतिक कलाकृति उभर कर आयी है (बेल बूटे) ।

मेहराब का ऊपरी भाग छत के दास पर स्थित भाग से मूल जाता है।

चरों स्तम्भ व तीनों मेहराब सभी दृष्टि (ज्यामितीय व कलाकृति दृष्टिकोण से ) से एक समान हैं।

स्तम्भ आधार , स्तम्भ छड़ी /कड़ी व मेहराब व मेहराब के बाह्य भाग ऊपर व दोनों ओर कहीं भी मानवीय (figurative आकृति याने पशु , पक्षी , मानव ) आकृति देखने को नहीं मिली है।

इसमें संदेह नहीं कि महेश नंद व भवानी दत्त की तिबारी अपने शुरुवाती काल में भव्य तिबारियों में गिनी जाती होगी। इस तिबारी में कोई figurative आकृति (पशु , पक्षी , मानव ) नहीं है। मेहराब शुरू होने से नीचे भाग ( impost के नीचे ) में ऊर्घ्वाकार कमलाकृति न होना व पत्ती आकृति होना भी इस तिबारी की अपनी विशेषता है

सूचना व फोटो आभार - कमल जखमोला व विवेका नंद जखमोला , गटकोट

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