खल नागराजाधार में बनवारी लाल भट्ट के मकान में काष्ठ कला व अलंकरण
सन् 1887 में निर्मित
टिहरी गढ़वाल , उत्तराखंड , हिमालय में भवन काष्ठ कला अंकन - 2
गढ़वाल, कुमाऊं , देहरादून , हरिद्वार , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार ) काष्ठ , अलकंरण , अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 79
- संकलन - भीष्म कुकरेती
यह सत्य है कि ब्रिटिश हो या टिहरी गढ़वाल , दोनों रियासतों में सम्पनता ब्रिटिश काल के उपरांत ही आयी। टिहरी रियासत भी अपवाद नहीं है। टिहरी में विकास हो रहा था। टिहरी राजधानी का सांस्कृतिक प्रभाव धीरे धीरे टिहरी व जौनसार के दूरस्थ गांवों में भी पड़ने लगा था। 1887 में निर्मित खल नागराजधार , (कोटी फैगुल , घनसाली टिहरी गढ़वाल ) में राजमिस्त्री बनवारी लाल भट्ट का मकान साक्षी है कि 1880 के बाद इस तरह की सम्पनता आ चुकी थी कि गाँवों में दो मंजिले या ढाई मंजिले भव्य मकान निर्मित हो सकें।
प्रसिद्ध राजमिस्त्री पंडित बनवारी लाल भट्ट के मकान की इस श्रृंखला में बड़ा महत्व है। मकान में पत्थर से उत्कृष्ट मकान निर्माण शैली का उदाहरण तो मिलता ही है साथ में काष्ठ कला के विकास का सूत भेद भी पंडित बनवारी लाल का यह मकान देता है। मकान दुखंड है व दो उबर (तल मंजिल के कमरे) हैं , उबरों में मध्य पहली मंजिल में जाने के अंदुरनी मार्ग हेतु खोळी /प्रवेश द्वार है.
राजमिस्त्री पंडित बनवारी लाल भट्ट के मकान की कई वास्तु विशेषताएं संज्ञान लेने लायक है जैसे कमरों के व खोळी द्वारों के ऊपर पाषाण arch /अर्ध मंडल/चाप या तोरण कला , इसके अतिरिक्त आलों /आळों के ऊपर भी पाषाण मंडल /arch /चाप हैं जो विशेष (exclusive ) हैं।
काष्ठ कला की दृष्टि से पंडित भट्ट का यह ढैपुर मकान बहुत ही महवतपूर्ण है और ऐसी समान कला युक्त या शैली युक्त भवन अब शायद ही बचे होंगे। काष्ठ कला की विवेचना हेतु मकान के निम्न स्थानों की विवेचनआवश्यक है
1- पंडित बनवारी लाल के मकान के दो उबरों के दरवाजों में काष्ठ कला
2 - मकान की खोळी /प्रवेश द्वार में दरवाजों पर काष्ठ कला
3 - मकान में तल मंजिल के आलों में काष्ठ कला /art व अलंकरण /motifs
4 - पहली मंजिल पर दुज्यळों / मोरियों /windows में काष्ठ कला व अलंकरण
5 - मकान के ऊपर छत आधार पट्टिका दासों /टोड़ीयों में काष्ठ कला
मकान के दो उबरों के दरवाजों में काष्ठ कला
उबरों के दरवाजों कोई चित्रकारी नहीं है केवल ज्यामितीय कटान है।
उबर के मुरिन्ड चाप में काष्ठ कला व अलंकरण
उबरों के एक मुरिन्ड के ऊपरी की पट्टिका में प्राकृतिक ( बेल - बूटे नुमा ) कलाकृति उत्कीर्ण दृष्टिगोचर होती है याने दोनों दरवाजों के मुरिन्ड के ऊपरी पट्टिका में अवश्य ही लंकरण था।
उबर के दरवाजों के ऊपर पाषाण चाप के नीचे पत्थरों /छिपटियों से बना अर्ध वृत्त बरबस दर्शक को आकर्षित करता है
आलिशान मकान में आलों में काष्ठ कला /art व अलंकरण /motifs
तलमंजील के ालों में कोई काष्ठ कला नजर नहीं आती किन्तु पाषाण कला का नायब नुमा देखने को मिलता है।
पहली मंजिल के आले नुमा खड़की/मोरियों /दुज्य ळ windows में काष्ठ कला व अलंकरण
पहले मंजिल में आलेनुमा दो मोरी/ दुज्यळ /खिड़की हैं व उनके ऊपर व चारों ओर पाषाण कला तो है ही अपितु सिंगाड़ /स्तम्भ व ऊपर मोरी मुरिन्ड में एक अर्ध चाप का काष्ठ अर्ध वृत्त भी दृष्टिगोचर होता है। मोरी /खिड़की के मुरिन्ड व सिंगाड़ में प्रशंसनीय काष्ठ अलंकरण हुआ है।
मकान के छत आधार पट्टिका चित्रकारी सहित दासों के ऊपर ठीके हैं
खोळी /प्रवेश द्वार में काष्ठ कला
खोळी के स्तम्भों के निम्न भाग पर चित्रकारी दृष्टिगोचर हो रही है है।
चित्रकारी अंकन दृष्टि से मुरिन्ड को दो भागों में बांटा जा सकता है। पहला भाग - एक मुरिन्ड के ऊपर गणेश जी की चतुर्भुज आकृति . गणेश जी के चार भुजाओं में एक में डमरू , एक हाथ में शंख , एक हाथ में कोई हथियार या शगुन नुमा आकृति है , चौथे हाथ में सूंड को भोजन या जल पात्र है। गणेश जी के माथे के ऊपर नागफन है। गणेश जी के दोनों ओर कमल दलीय स्तम्भ हैं व स्तम्भ से एक जालीदार कलयुक्त अर्ध वृत्त निकलता है जो सजावट का बेहद खूबसूरत नमूना है। गणेश जी के सूंड में दो दांत हैं , माला है व कान उभर कर आये हैं। कलायुक्त गणेश जी की प्रतिमा बाहर से बिठाई गयी है।
मुरिंड के दूसra भाग गणेश आकृति के ऊपर है जिसमे प्राकृतिक (वानस्पतिक ) व ज्यामितीय मिश्रित कला के दर्शन होते हैं।
पंडित बनवारी लाल भट्ट का यह मकान एक डेढ़ वर्ष में बनकर तैयार हुआ व ढैपर समेत सब जगह सांदण की लकड़ी का प्रयोग हुआ है।
निष्कर्ष निकलता है कि राजमिस्त्री का मकान गढ़वाल के वास्तु इतिहासकारों के लिए शैली समझने हेतु महत्वपूर्ण तो है ही साथ में मकान में पाषाण वा काष्ठ कलाओं व अलंकरणों का संगम देखने लायक है। बर्बस एक ही शब्द निकलता है , " वाह ! वाह ! क्या सुन्दर मकान है ! क्या कला है !"
सूचना व फोटो आभार : सत्या नंद बडोनी , कणौली
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