जयपाल सिंह रावत

म्यारा डांडा-कांठा की कविता

ऊपर है जब तारनहारा।

है सब का वह खेवनहारा।।

बन्द करो बम को बरसाना।

जीवन है फिर क्यों मर जाना।।

क्यों समझो वह देश बिराना।

आज रहे कल हो न ठिकाना।।

हो सकता वह हो अति प्यारा।

ऊपर है जब खेवनहारा।।

आपस में सब प्यार लुटाओ।

दुश्मन को दिल से अपनाओ।।

जीवन में दो दिन को आया।

क्यों करते इसको फिर जाया।।

जी अपना यह जीवन सारा।

ऊपर है जब खेवनहारा।।


वाह बारिश शुरू हो गई है

शीत की सी लहर चल रही है

बंद कूलर रखो उस किनारे

छोड़ किसको जरूरत पड़ी है

आज तरबूज वाला न आया

क्यों खरीदूं मुझे क्या पड़ी है

सामने चाय वाला खड़ा जो

भीड़ उसके यहां पर लगी है

बिक गयी मट्ठियाँ थी सभी जो

मस्त चांदी उसी की कटी है

गिड़गिड़ाने लगा आसमाँ फिर

अब रजाई हमें ओढ़नी है


घ्वीड़ चांठौ छयो,चांठ मै पौंछि गे।

ल्ये जलम छौ जखा,वो वखी लौटि गे।।

मुंड पैली टिकौ,खुटि पछिम धैर तू ।

कूड़ि पितरू कि चा,ईं नमन कैर तू।।

आज को-सीदिनुम,वूं दिखावा नि छौ।

घिलमंडी खेलिकै,बचपनम प्यार छौ।।

जब सुण्ये बीमरी,वो घनै बौड़िगे‌।

घ्वीड़ चांठौ छयो,चांठ मै पौंछि गे।।