उस सांझ को

बालकृष्ण डी ध्यानी देवभूमि बद्री-केदारनाथमेरा ब्लोग्सhttp://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/http://www.merapahadforum.com/में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित




बार बार उसे देखा

ओझल होते हुए

अपने से रुक्सत होते हुए

(उस सांझ को ) .... २


इस बेकरारी को संभालों कैसे

दूर जा रही है वो उसे निहारों कैसे

काली रात आगोश उसे ले रही है

नयनो में उसको उतारों कैसे

(उस सांझ को ) .... २


तुझे ढूँढूता हूँ मैं परेशान होकर

ना जाओ तुम मुझे तन्हा छोड़कर

कैसे खुद को मै सँभाल पाऊँगा

जुदा हो तुझसे जीवन निभा पाऊँगा

(उस सांझ को ) .... २


फिर भी मानता हूँ मेरे नींदों में आओगी तुम

अपने साथ सपनो में ले जाओगी तुम

छोड़कर मुझे अकेले कैसे रह पाओगी तुम

जंहा छोड़ कर गयी मुझे वंही पाओगी तुम

(उस सांझ को ) .... २


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