गढ़वाल, उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार , बखाली , कोटि बनाल , खोली , मोरी ) में काष्ठ अंकन लोक कला अलंकरण, नक्कासी - 172
Traditional House Wood Carving Art (Tibari) of Lakhwar , Kalsi Dehradun , Garhwal , Uttarakhand , Himalaya - 172
(कला व अलंकरण केंद्रित )
संकलन - भीष्म कुकरेती
लख्वाड़ (कालसी , देहरादून ) महासू मंदिर व अन्य भव्य मकानों हेतु प्रसिद्द है। अब डैम हेतु भी प्रसिद्ध हो रहा है।
किशोर रावत ने लख्वाड़ से सुनील चौहान का मकान तिपुर , जौनसारी -रवाईं शैली में निर्मित हुआ है। जौनसारी शैली में निर्मित सुनील चौहान का तिपुर मकान प्रसिद्ध महासू मंदिर से सटा मकान है। लखवाड़ के सुनील चौहान के तिपुर मकान में काष्ठ कला व काष्ठ अंकन , नक्कासी जानने के लिए तीनों तलों पर ध्यान देना आवश्यक है।
तल मंजिल में कला व अंकन दृष्टि से दो तागतवर स्तम्भों व कमरों के दरवाजों पर ध्यान दिया जाय तो पाया जाता है कि खम्बों में केवल ज्यामितीय कटान हुआ है व कमरों के दरवाजों में भी ज्यामितीय कला ही सृष्टीगोचर हो रही है।
तल मंजिल के स्तम्भ में आधार पर चौकोर डौळ है फिर ड्यूल है फिर चौकोर आकार में स्तम्भ ऊपर बढ़ता है फिर ड्यूल है फिर स्तम्भ प्याले नुमा या चौकोर सजला नुमा आकृति लेकर ऊपर की कड़ी से मिल जाता है दोनों स्तम्भों में कटान कला एक जैसे ही है।
पहली मंजिल में भव्य निमदारी या जंगला स्थापित है। निमदारी में एक ओर सात स्तम्भ हैं व दुसरे कोण की ओर 9 के लगभग स्तम्भ हैं। किनारे में बड़ा स्तम्भ दोनों कोणों का प्रतिनिधित्व करता है। दोनों कोणों के मिलन स्थान का स्तम्भ कुछ मोटा है व इसके आधार पर कुम्भी या डौळ है फिर ऊपर ड्यूल है फिर स्तम्भ षट तल (6 dimensions ) का होकर ऊपर चला जाता है जहाँ फिर एक ड्यूल बना है व ड्यूल है जिसके ऊपर चौकोर नुमा आकृति है जिसके ऊपर एक चौकोर सजला नुमा आकृति है जो दूसरी मंजिल के फर्श की कड़ी से मिल जाता है। लगभग दूसरे छोटे स्तम्भों में कला इसी तरहअंकित है। स्तम्भों में कमल फूल आदि का अंकन अनुपस्थित है। इन स्तम्भों के आधार पर दो रेलिंग हैं दोनों रेलिंग के मध्य एक फ़ीट का अंतर् होगा व मध्य में हुक्के की नै जैसे नक्कासी वाले छोटे स्तम्भ फिट हैं। स्तम्भ मध्य हरेक जंगले में चार चार लघु स्तम्भ फिट हैं।
इस जंगले व स्तम्भों के मध्य के नीचे ज्यामितीय कटान से बहुत सुंदर आयताकार अंकन व कटान हुआ है जो ज्यामितीय कला का उमदा उदाहरण है।
तीसरे मंजिल में ज्यामिति कला से काष्ठ कला उभर कर आयी है . बिभिन्न आकार में षटकोणीय आकृतियों का अंकन दूसरी मंजिल में सुंदरता वृद्धि कारक हैं। दूसरे मंजिल में लकड़ी पर काम ज्यामितीय कटान से ही हुआ है और मकान को भव्यता प्रदान लड़ने में सफल हुए हैं।
मकानमें सिलेटी रंग के पत्थर की ढलवां छत है व जिसका आधार लकड़ी की है।
लखवाड़ (कलसी , देहरादून ) में सुनील चौहान के भव्य मकान में ज्यामितीय कटान से ही कला उभर कर आयी है व इसमें कोई अतिशयोक्ति न होगी कि लकड़ी पर ज्यामितीय कटान ने ही पूरे मकान को सुंदरता प्रदान की है व भवन के डिजायनर व शिल्पकारों की प्रशंसा तो भरपूर होनी ही चाहिए ।
सूचना व फोटो आभार : किशोर रावत
यह लेख कला संबंधित है न कि मिल्कियत संबंधी ,. सूचनाये श्रुति माध्यम से मिलती हैं अत: मिल्कियत सूचना में व असलियत में अंतर हो सकता है जिसके लिए संकलन कर्ता व सूचनादाता उत्तरदायी नही हैं .
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