गौं गौं की लोककला

बरसुड़ी (रुद्रप्रयाग ) में चमोली परिवार की बीस खम्या जंगलेदार निमदारी व खोली में काष्ठ कला, अलंकरण , अंकन , लकड़ी नक्काशी

सूचना व फोटो आभार: नंदन राणा

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 220

बरसुड़ी (रुद्रप्रयाग ) में चमोली परिवार की बीस खम्या जंगलेदार निमदारी व खोली में काष्ठ कला, अलंकरण , अंकन , लकड़ी नक्काशी

गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली , खोली , छाज कोटि बनाल ) काष्ठ कला, अलंकरण , अंकन , लकड़ी नक्काशी-220

संकलन - भीष्म कुकरेती

- इस श्रृंखला में जंगलेदार निमदारी उस भवन को कहा गया है जिस भवन के छज्जे (लकड़ी के या पैडळस्यूं प्रकार के पत्थर से बने ) में स्तम्भ (खाम ) हों जो ऊपर छत आधार तक पंहुचते हैं। स्तम्भों /खामों के मध्य आधार पर जंगले (reling with small size clumns ) बंधे होते हैं। ढांगू में निमदारी न कह इस प्रकार के भवन को जंगलेदार कूड़ कहते हैं।

सर्वेक्षण से पता लगता है कि इस प्रकार जंगलेदार निमदारी का प्रचलन हरिसल राजा आका विल्सन के 1864 में बनाये गए भवन के बाद ही शुरू हुआ अतः इस प्रकार के जंगलेदार भवन शैली को विल्सन शैली के निमदारी भी कह सकते हैं। गढ़वाल भूभाग (सभी गढ़वाल जिले , देहरादून व हरिद्वार ) में निमदारी निर्माण प्रचलन रहा है किंतु कुमाऊं खंड में अभी तक इस सर्वेक्षण में निमदारी निर्माण की कोई सूचना नहीं मिली।

प्रस्तुत बरसुड़ी (रुद्रप्रयाग ) में चमोली परिवार का भवन भव्य है जिसमे में छज्जे पर लगभग 20 स्तम्भों से निमदारी बनी है। कला दृष्टि से बरसुड़ी (रुद्रप्रयाग ) में चमोली परिवार के भवन के काष्ठ स्तम्भों में ही कला अवलोकन आवश्यक नहीं अपितु खोली में भी काष्ठ कला अवलोकन अत्त्यावष्यक है।

बरसुड़ी (रुद्रप्रयाग ) में चमोली परिवार के ढैपुर , दुखंड /दुघर वाले मकान में खोली तल मंजिल में है व चिन्ह बताते हैं खोळी भव्य रही है। खोळी के दोनों ओर मुख्य स्तम्भ हैं और प्रत्येक मुख्य स्तम्भ दो प्रकार के उप स्तम्भों के युग्म /जोड़ से बना है। एक प्रकार का उप स्तम्भ आधार से सीधा ऊपर मुरिन्ड के भू स्तरीय भाग का एक भाग बन जाते हैं। इन सीधे स्तम्भों में बेल बूटों की कला अंकित है। दूसरे प्रकार के उप स्तम्भ के आधार में उल्टा कमल अंकित है फिर ड्यूल अंकन है , जिसके ऊपर सीधा खिला कमल फूल आकृति खुदी है और यहाँ से यह उप स्तम्भ सीधा ऊपर जाकर मुरिन्ड का एक स्तर बन जाता है। मुरिन्ड चौखट है व कई स्तरीय कड़ियाँ मुरिन्ड में है। मुरिन्ड में देव आकृति स्थापित है। निम्न स्तर के मुरिन्ड के ऊपर भी मेहराब नुमा मुरिन्ड है। खोळी के दरवाजे पर ज्यामितीय कला अंकन किया गया है।

बरसुड़ी (रुद्रप्रयाग ) में चमोली परिवार के मकान में पहली मंजिल में जंगला बिठाया गया है जंगले में बीस स्तम्भ हैं जो छज्जे से ऊपर छत आधार तक गए हैं। स्तम्भों के आधार में दोनों तरफ पट्टिकाएं लगी हैं जो स्तम्भ को मोटाई देते हैं। इसके ऊपर स्तम्भ में उलटा कमल फूल अंकित है फिर ड्यूल है जिसके ऊपर सीधा खिला कमल फूल है जिसके ऊपर स्तम्भ कड़ी सीधे ऊपर जाती है किन्तु स्तम्भ में फिर आधार का दुहराव होता है याने कमल फूल व सबसे ऊपर स्तम्भ के दोनों ओर पट्टिकाएं। ऊपर व नीचे आधार में स्तम्भ एक दुसरे के आइना नकल हैं।

बरसुड़ी (रुद्रप्रयाग ) में चमोली परिवार के भवन के पहली मंजिल में स्थापित दो स्तम्भों के मध्य आधार पर तीन तीन लकड़ी की रेलिंग (कड़ियाँ ) हैं। इन कड़ियों के मध्य लौह जंगले सधे हैं।

निष्लृष निकलता है कि बरसुड़ी (रुद्रप्रयाग ) में चमोली परिवार की निमदारी भव्य है २० खम्या है व खोली में भी भव्य नक्काशी हुयी है। तीनों प्रकार के अलंकरण - ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय (देव आकृति ) अलंकरण मकान में मिलते हैं।

सूचना व फोटो आभार: नंदन राणा

* यह आलेख भवन कला संबंधी है न कि मिल्कियत संबंधी . मिलकियत की सूचना श्रुति से मिली है अत: अंतर के लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .

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