गौं गौं की लोककला

बासुलीसेरा (अल्मोड़ा ) में नंदन सिंह बनेशी परिवार की बाखली में काष्ठ कला , काष्ठ अलंकरण अंकन , नक्कासी

सूचना व फोटो आभार : दीपक मेहता, द्वारहाट

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Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 177

बासुलीसेरा (अल्मोड़ा ) में नंदन सिंह बनेशी परिवार की बाखली में काष्ठ कला , काष्ठ अलंकरण अंकन , नक्कासी

कुमाऊँ , गढ़वाल, हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन ( बाखली , तिबारी , निमदारी , जंगलादार मकान , खोली , कोटि बनाल ) में काष्ठ कला अलंकरण, लकड़ी पर नक्कासी - 177

(काष्ठ कला व अलंकरण पर केंद्रित )

संकलन - भीष्म कुकरेती

अल्मोड़ा जनपद का द्वारहाट क्षेत्र समृद्ध क्षेत्र माना जाता है और द्वारहाट क्षेत्र से कई बाखलियों , भवनों की सूचना मिली है जो द्वारहाट की समृद्ध द्योतक हैं। इसी क्रम में बासुलीसेरा के नंदन सिंह बनेशी परिवार के बाखली नुमा भवन की काष्ठ कला पर चर्चा होगी। चूँकि फोटो भवन के एक ही भाग की मिली है तो इसे बाखली नुमा भवन नाम दिया है।

भवन दुपुर (तल मंजिल +पहली मंजिल ) है व दुघर /दुखंड (एक कमरा आगे व एक पीछे ) है। बासुलीसेरा के नंदन सिंह बनेशी परिवार की बाखली में काष्ठ कला मुख्यतया खोली व दो छाजों /झरोखों /मोरियों में ही मिलती है। बाकी तल मंजिल के दो कमरों व भवन की खिड़कियों में ज्यामितीय कटान के अतिरिक्त अन्य कला दृष्टिगोचर नहीं होती है।

बासुलीसेरा (अल्मोड़ा ) में नंदन सिंह बनेशी परिवार के बाखली के खोली में काष्ठ कला

बासुलीसेरा (अल्मोड़ा ) में नंदन सिंह बनेशी परिवार के बाखली की खोली भी आम कुमाऊंनी बाखलियों की खोलियों की तरह ही तल मंजिल से शुरू हो पहली मंजिल तक है। खोली की देहरी .दहलीज /देळी तक जाने हेतु तीन पाषाण सीढ़ियां है। खोली के दोनों ओर के सिंगाड़ /स्तम्भ चार चार लघुस्तम्भों (चरगट छुट सिंगाड़ ) को मिलाकर निर्मित है। आठों के आठों लघु स्तम्भ एक ही शैली व कला से निर्मित है। याने आठों स्तम्भों में समान कला सजी है। लघु स्तम्भ के आधार में अधोगामी पद्म पुष्प दल कुम्भी बनता है व उसके ऊपर ड्यूल है जिसके ऊपर उर्घ्वगामी पद्म पुष्प दल है जिसके ऊपर ड्यूल है फिर उलटा छोटा कमल फूल है व उसके ऊपर सीधा कमल फूल है। यहां से प्रत्येक लघु स्तम्भ सीधाी कड़ी रूप ले ऊपर मुरिन्ड की तह बनाते हैं। तल मुरिन्ड (शीर्ष ) में भी मेहराब है तो मथि (ऊपरी ) मुरिन्ड में भी मेहराब है व दोनों मेहराब तिपत्ति शक्ल की हैं। मथि मुरिन्ड (ऊपरी सिर ) में मेहराब के मध्य चौखट नुमा क्षेत्र में चार गणपति , तीन अन्य देव की आकृतियां स्थापित हैं व दो जंजीर से बंधा हाथी की आकृतियां हैं। मानवीय अलंकरण का महीन उत्कीर्णन का उत्तम उदाहरण नंदन सिंह बनेशी की बाखली भवन में मिलता है। इसी तरह स्तम्भों का सीधी कड़ी में बदलना व उनसे मेहराब के अर्ध चाप निकलना भी बारीकी का काम दर्शाता है।

बासुलीसेरा (अल्मोड़ा ) में नंदन सिंह बनेशी परिवार के बाखली के झरोखों /छाजों में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन

नंदन सिंह बनेशी की बाखली भाग में पहली मंजिल पर दो छाज /मोरी /झरोखे स्थापित हैं। छाज के दोनों सिंगाड़ /स्तम्भ तिरगट लघु स्तम्भों (तीन स्तम्भों का जोड़ ) को मिलाकर निर्मित हैं। तिरगट लघु स्तम्भ के आधार पर उल्टा कमल कुम्भी बनाता है फिर ड्यूल है फिर अधोगामी (उल्टा ) कमल फूल है उसके ऊपर ड्यूल है व फिर सुल्टा /उर्घ्वगामी कमल दल की आकृति उत्कीर्ण हुयी है व यहां से स्तम्भ सीकढ़ी कड़े बनता है फिर ऊपर उलटे कमल दल , ड्यूल , कमल दल , सीधा कमल दल व फिर से स्तम्भ का कड़ी बनकर ऊपर मुरिन्ड /शीर्ष का स्तर /तह /layer बन जाते हैं। छहों लघु स्तम्भों में एक जैसी ही काष्ठ कला उत्कीर्ण हुयी है व सब कार्य बारीकी की नक्कासी का काम बखूबी से हुआ है। नक्कासी में बारीकी के पुरे दर्शन होते हैं व शिल्प की प्रशंसा हेतु प्रशंसा शब्द अपने आप मुंह पर आ जाते हैं।

खिड़कियों के बड़े आकर से अनुमान लगता है कि मकान संभवतया 1950 के बाद निर्मित हुआ है अथवा बाखली का जीर्णोंद्धार हुआ है।

निष्कर्ष निकलता है कि बासुलीसेरा (अल्मोड़ा ) में नंदन सिंह बनेशी परिवार के बाखली में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय (धार्मिक देव आकृतियाँ व व हाथी ) अलकनकरण अंकन हुआ है व महीन काम बखूबी हुआ है।

सूचना व फोटो आभार : दीपक मेहता, द्वारहाट

यह लेख भवन कला संबंधित है न कि मिल्कियत संबंधी। . मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .

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