पूर्व जाडंग (भटवाडी उत्तरकाशी ) के एक भग्न भवन में काष्ठ कला , अंकन , अल्नक्र्ण , नक्कासी
गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली , खोली , कोटि बनाल ) में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी - 150
संकलन - भीष्म कुकरेती
जुडांग भारत का सीमावर्ती आखरी गाँव है जो तिब्बत सीमा पर है व कभी यहां बसाहत थी
1962 के चीन युद्ध के बाद कई सीमावर्ती गाँवों को नीचे स्थान्तरित करना पड़ा। उनमे से एक गाँव उत्तरकाशी के भटवाड़ी में जाडंग भी है। जाडंग के लोग डूडा स्थान्तरित हुए हैं। 1963 के पहले के जाडंग में मकानों अब ध्वस्त हो गए हैं या जीर्ण शीर्ण हो गए हैं। खोजी ब्लौगर गीतांजली ने जाडंग के एक ऐसे ही जीर्ण शीर्ण भवन की सूचना दी जो पूर्व जाडंग की भवन काष्ठ कला पर प्रकाश डालने के लिए काफी है और उत्तराखंड में क्षेत्रीय हिसाब से भवनों में काष्ठ कला विशेषता को समझने के लिए अत्त्यावश्य्क हैं।
पूर्व जाडंग गाँव /घाटी (भटवाडी , उत्तरकाशी ) के प्रस्तुत जीर्ण शीर्ण मकान तिपुर मकान है (तल मंजिल + २ और उपर मंजिल ) है। मकान दुखंड है याने बाहर भी कमरे व अंदर भी कमरे। जैसा कि नेलंग घाटी के बोगारी गाँव के मकानों के अध्ययन से पता चलता है कि नेलंग , जाडंग , व नागा घाटियों में मकान में लकड़ी अधिक इस्तेमाल की गयी हैं व तल मंजिल गौशला व भण्डारीकरण हेतु प्रयोग होता था , जाडंग के इस भवन में भी लगता है कि इस भवन में भी तल मंजिल गौशाला व भडार थे व रहना वसना ऊपरी दो मंजिलों में होता था।
मकान की पहली मंजिल में तिबारी के पूरे लक्षण अभी तक विद्यमान हैं। तिबारी में तीन स्तम्भ (सिंगाड़ ) हैं जो दो ख्व्वाळ /खोली /द्वार बनाते हैं। सिंगाड़ गढ़वाल के अन्य क्षेत्र के तिबारियों जैसे ही हैं याने आधार पर अधोगामी पद्म पुष्प से बना कुम्भी /पथ्वड़ आकर , फिर ड्यूल (ring type wood plate ) फिर ऊर्घ्वाकार पद्म पुष्प दल (सीधा कमल फूल ) व फिर सिंगाड़ की मोटाई कम होना , यहां से मेहराब व सिंगाड़ का थांत स्वरूप लेना व अंत में ऊपर मुरिन्ड /मथिण्ड की कड़ी से मिल जाना। सिंगाड़ के थांत आकृति में अष्ट दलीय पुष्प , तितली नुमा पुष्प , व ज्यामितीय कटान से लता आभासी चित्र कुरेदे गए हैं।
मेहराब तिपत्ति (trefoil ) नुमा है व मेहराब के बारी तल के बाजु वाले त्रिभुजों में बारीक प्राकृतिक अलंकरण ( फर्न नुमा व पत्तियां ) की बारीक नक्कासी हुयी है।
पहली मंजिल के मुरिन्ड की कड़ी पर भी सिंगाड़ों के मिलन स्थान से ऊपर कमल दल जैसी आकृति उत्कीर्ण हुयी है। सिंगाडों के मिलन स्थलों के बीच कड़ी में ज्यामितीय अलंकरण उत्कीर्ण हुआ है। कड़ी में नक्कासी का सुंदर नमूना पेश हुआ है ।
तिबारी के भीतरी खंड के कमरों के दरवाजों में ज्यामितीय कला प्रयोग हुआ है।
पूर्व जाडंग गाँव /घाटी (भटवाडी , उत्तरकाशी ) के प्रस्तुत मकान की दूसरी मंजिल के सामने भाग में जो भी लकड़ी प्रयोग हुयी है वह पटिला (पतला स्लीपर ) रूप में है और कहीं भी कोई कला दर्शन नहीं होते हैं।
छत ढलवां है व छत आधार कड़ी में तीर के पश्च भाग (मिथकिय कला समाहित होना ) का जैसी आकृति तीर बनती उत्कीर्ण हुयी है जो स्वयं भी तीर बनती हैं व एक दुसरे जब मिलते हैं तो वहां शगुन रूप में कोई पर्तीकात्मक जायमितीय अलंकरण उत्कीर्ण हुआ है।
निष्कर्ष निकल सकते हैं कि पूर्व जाडंग (भटवाड़ी , उत्तरकाशी ) के उजड़े मकान में मिथकीय , ज्यामितीय अलंकरण है जो लकड़ी नक्कासी का उम्दा उदाहरण है।
सूचना व फोटो आभार : गीतांजली बनर्जी
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