मेरे गाँव में बर्फ गिरी है

बालकृष्ण डी ध्यानीदेवभूमि बद्री-केदारनाथमेरा ब्लोग्सhttp://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/http://www.merapahadforum.com/में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुरक्षित

मेरे गाँव में बर्फ गिरी है

सफेद चादर धरती पर बिछी है


उच्च हिमालयी क्षेत्र है मेरा

बुरा असर है वो हर ओर बिछी है


धूप-छांव का खेल है जीवन

बूंदाबांदी और वो पल बदल रही है


करवट लेता हूँ वो अकड़ रही है

दायरे को और मेरे अब सिमटा रही है

दूर से वो बहुत खूबसूरत लग रही है

मिलते ही वो मुझ से बिछड़ रही है


लकदक हुए वो मेरे देखे सारे सपने

मेरे कारोबार की तरह वो भी ठिठोर रहे हैं


जलती चिमनी का बस अब सहार है

उजाड़ा है बस मेरा एक ही बचा वो आशियान है


मेरे गाँव में बर्फ गिरी है

फिर भी माँ मेरी दिन रात कामों में लगी है

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