गढ़वाली कविता
बालकृष्ण डी. ध्यानी
बालकृष्ण डी ध्यानी देवभूमि बद्री-केदारनाथमेरा ब्लोग्सhttp://balkrishna-dhyani.blogspot.in/search/http://www.merapahadforum.com/में पूर्व प्रकाशित -सर्वाधिकार सुर
गुमान
गुमान
गुमान
बैथ्यू छौं सुप्न्यु का रेल मां
अपरि हि दैल फैल मां
फुर्सत कख छ ..... रै गैल्या अब
कैते मिन भेट्ण कैते देन ऐ भेँट या
खोजदु छौं बल जी खोजदु छौं
अपडा मन भितर मि कैथे खोजदु छौं
मालूम छ्या मि यौ माटा कू जीबन
मिन एक दिन इन सौधी धौलि दीन
फिर बैथि कि ऐ कोरी किताब ते
किलै कि वैमा जिलेद लगाणु छौं
लिखणु छौं औरृ वैते पुसणु छौं
गैरो ऐ बस्ता किलै मि सरणु छौं
चितेणु छौं कि मिते अबेर ह्वैगेई
फुण्ड फूंकाण कूँन यौ गुमान ते मि देर ह्वैगेई
क्या यख जोडि मिन वैते लीजाणा को धे लगाणु छौं
वैन भि भोरिक रखयूं छ जै ते मि समझाणु छौं
बैथ्यू छौं सुप्न्यु का रेल मां ........