गौं गौं की लोककला

जाजार (पिथौरागढ़ ) में स्व . मोहन सिंह दसौनी के मकान (बाखली भाग ) में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , नक्कासी

सूचना व फोटो आभार : राजेंद्र रावल , जाजार

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उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 174

जाजार (पिथौरागढ़ ) में स्व . मोहन सिंह दसौनी के मकान (बाखली भाग ) में काष्ठ कला , अलंकरण अंकन , नक्कासी

गढ़वाल, कुमाऊँ , हरिद्वार उत्तराखंड , हिमालय की भवन ( बाखली , तिबारी , निमदारी , जंगलादार मकान , खोली , कोटि बनाल ) में काष्ठ कला अलंकरण, नक्कासी - 178

संकलन - भीष्म कुकरेती -

जाजार पिथौरागढ़ के पाताल भुवनेश्वर के निकट बेरीनाग ब्लॉक का महत्वपूर्ण गांव है। राजेंद्र रावल ने जाजार गाँव से तीन चार बाखलियों की सूचना दी है। प्रस्तुत स्व मोहन सिंह दसौनी का तिपुर भवन (तल मंजिल + 2 मंजिल ) वास्तव में बाखली शैली का ही भवन है किन्तु भवन के दूसरे भाग का आधुनिकीकरण से यह भाग पूरा बाखली नहीं रह गया है। भवन तल मंजिल व दो ऊपरी मंजिल का है व दुघर /दुखंड शैली का है। दसौनी के भवन में तल मंजिल में काष्ठ कला या काष्ठ अलंकरण संबंधी दर्शाने के लिए कोई विशेष काष्ठ भाग नहीं है। काष्ठ कला या नक्कासी समझने हेतु पहली मंजिल व दूसरी मंजिल पर ही ध्यान देना आवश्यक है।

जाजार के मोहन सिंह दसौनी के भवन के पहली मंजिल में एक कमरे के दरवाजों व दो खिड़कियों में ज्यामितीय कटान के अतिरिक्त विशेष कुछ उल्लेखनीय कला नहीं मिलती है। पहली मंजिल में काष्ठ कला की विवेचना हेतु झरोखे पर ध्यान देना आवश्यक है। स्व . मोहन सिंह दसौनी के भवन के पहली मंजिल पर स्थित झरोखा /छाज कुमाऊं के अन्य बाखलियों के झरोखे / छाज के सामान ही है। इस झरोखे/ छाज में दो अंडाकार ढुढयार (झरोखे ) हैं व तीन तीन लघु स्तम्भों से मिलकर तीन स्तम्भ हैं। यह शैली लगभग कुमाऊं के प्रत्येक बाखली में सामान्य शैली है। प्रत्येक लघु स्तम्भ के आधार में अधोगामी पद्म पुष्प है फिर ड्यूल है उसक ेऊपर सीधा कमल दल है व उसके ऊपर से स्तम्भ सीधे ऊपर जाकर मुरिन्ड /मठिंड / शीर्ष के तल /layer बन जाते हैं। छाज के दोनों दरवाजों के मध्य खरोखा है जिसमे मेहराब कटान हुआ है।

मोहन सिंह दसौनी के बाखली भवन के दूसरे मंजिल में दो बड़े झरोखे /छाज व दो छोटे झरोखे /छाज हैं जो पहली मंजिल के झरोखे की लगभग प्रतिलिपियाँ ही हैं केवल आकार का अंतर् है। ऊपरी मंजिल के छाजों में डी दरवाजे नहीं है व तीन स्तम्भों की जगह दो ही स्तम्भ है।

निष्कर्ष निकलता है कि जाजार (बेरीनाग , पिथौरागढ़ ) के बाखली भाग में ज्यामितीय , प्राकृतिक (कमल दल आदि ) अलंकरण हुआ है और इस लेखक को मानवीय (figurative ornamentation ) नहीं देखने को मिला। भवन के तल मंजिल से शुरू होने वाली व पहली मंजिल में समाप्त होने वाली खोली भी पत्रों से भर दी गयी है अतः मानवीय अलंकरण के चिन्ह भी मिट गए हैं। (खोली में दैव प्रतीक होता ही है ) .

सूचना व फोटो आभार : राजेंद्र रावल , जाजार

यह लेख भवन कला संबंधित है न कि मिल्कियत संबंधी। . मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: नाम /नामों में अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .

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