म्यारा डांडा-कांठा की कविता
© कन्हैयालाल डंडरियाल एक कवि, लेखक,साहित्यकार
© कन्हैयालाल डंडरियाल एक कवि, लेखक,साहित्यकार
जोड़ हत
जोड़ हत
जोड़ हत
यूँक खुटौं म धैर दण्डकरु, तैं धर्मशिलम रगड़ नाक
म्यार कसूर?
त्यारु कसूर!
तिल सच किले ब्वाल, तु कैकु भलु किले चांदि?
किले ढकांदि तु नाँग सुन्दर दिखेणी?
निरभे जांदि मति करा!
सत्यम, शिवम, सुन्दरम त सिरफ ब्वनै बत्था छिन
इस्क्वल्यूँ, दफ्तरूं अगनै टंगणा बोर्ड छिन
जो अमल मा नि आंदा
ये आदर्श त सिरफ
हौरु कपाल फर चंगण लगाणा काम अंदिन !