उत्तराखंड के कलम वीर

लघु कथा बहादुर

बात ४०-५० साल पैलीगी च। उत्तराखंड का एक गौं म एक मनखि जू कि जंगलात मा नौकरी करदा छा पर नौकरी का अलावा खेती बाड़ी, गौर बछुर सब देखदा छाई। भौत ही मेहनती अर रौबदार व्यक्तिव छो युही कारण रौ व्हलो कि बकत बेबक्त गौं म के न कै से लड़ भिड़ भी जान छा। जब तलक बाल बच्चा छवटा छां त वु भी बुड्या जी की काम काज म मदद कर दयन छायां पर लड़कियूं का ब्यौ पगिन अर लड़का फौज म भर्ती क्या व्हाई कि बुड्या जी अकेला पड़ ग्याई पर खेती बाड़ी और नौकरी चलती रै। उनेरी मेहनत ही छै कि घौर मु नाज पाणि खूब राई और घ्यू ढूधे भी क्वे कमी नि छै पर समे का साथ हिम्मत जवाब देण बैठ ग्याई अब वु एक यन लड़का ख़्वजन बैठिगा जू वूं का दगड़ा मा रैके घौर बौण कु काम संभाल सकू आखिर एक दिन वु खोज भी पूरी व्हेगी । व्हाई यन कि बुड्या जी घौरो छवटो म्वटो समान ल्युण बाजार जायां छिन कि अचण चक एक ८-१० साल कु नाना पर वूं की नज़र ग्याई जु कुपोषणा कारण भलि के देख भी नि सकणु छौ । वे देखी के बुड्या जी न इशारा से वे नाना तैं अपणा पास बुलाई और नौ पूछी पर वु नेपाल से नयो नयो गढ़वाळ आयूँ छो जे कारण वु वनेरी बात समझ नि सकी फिर वे आदिमोल दूसरा नेपाली से वे नाना का बारा म पूछी त वैन बताई कि ये नानो को देखण वोळो क्वे नि त वूं कि ऑंखयूं म चमक ऐगी । वे बहादुर तैं वु समझे बुझेके अपना दगड म घौर ल्यायाँ।

घौर म खाण प्योणे क्वे कमी नि छे कुछ दिनु म ही बाहदुर लाल बण गौ और धर्म बुबा जी की भी खूब सेवा पाणि म लग गो। फिर से ग्वठयार गौर भैसों से भर ग्ये । समे जने जने अगिन बढ़ी बहादुर भी गौं म सब दगडी घुल मिल ग्ये अर अब गढ़वळि म भी बच्च्याण लग ग्याई दगड म सब दगडी रिश्ता भी ज्वण बैठ ग्याई । बुड्या जी की ब्वारी वैकि बो और क्वे चाचा बोडा त क्वे भैजी भुला भुली व्हे ग्याई। सब कुछ ठिक ठाक चलणु छो कि एक दिन बहादुरा धर्म बुबा जी सब तैं छवाड़ी बैकुंठधाम चल ग्याई।

बुड्या जी की ब्वारी भी बीमार रैन्दी छै त घौरे ज्यादातर जिम्मेदारी बहादुर पर ही ऐ ग्ये । बहादुर भी अपणों से घौर समझ के खुशी खुशी सब धाण करदु। पर वे की बो की तबियत अब ज्यादा खराब रौण बैठिगी त एक दिन भैजी अपणा बच्चों तैं अपणा दगड म ल्ये ग्याई। अब बहादुर अकेला पड़गे शुरू शुरू म भैजी ळ थोड़ा बहुत खरचा भी भैजी पर अपणा बाल बच्चों को भरण पोषण भी जरूरी छौ।

बहादुर जब अकेला पड़ी त नशा कने आदत भी बढ़ी । कुछ दिन त ठिक चली पर बाद बाद म बहादुर गौं वालो का काम भी कन बैठी। धीरे धीरे लोग भी कुछ कामु गा वास्ता वे पर निर्भर व्हे ग्या अर ब्यौ काजू की बहादुर रौनक बण ग्ये। गों से जब भी क्वे बारात जानि छै त बाहदुर सबसे ज्यादा खुश रन छौ किले कि गौं का छवोरों ळ वु हुरायूं रन छौ कि हमूल आज त्यौरो भी ब्यो कन।हल्को हैंसी मजाक अर घर का काम का बीच बाहदुरे जिंदगी बदस्तूर आज भी चलणि च। हालांकि अब लगभग ६० वर्ष की उम्र मा शरीर म भी अब पैली वाळी बात नि रै गे पर वु घर गौं बहादुरो अपणों गौं बण ग्ये अर बुड्या जी का परिवार का लोग भी वे तैं अपणे ही परिवारो सदस्य जन समझना अर गौं का लोग भी वें तैं अपणा दिल मा जगा दयना।

©द्वारिका चमोली की कलम से