गौं गौं की लोककला

तल्ला गुराड़ (चौंदकोट) में महानतम वीरांगना तीलू रौतेली परिवार के पुराने भवन में काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी नक्काशी

सूचना व फोटो आभार : उमेश असवालCopyright

Copyright @ Bhishma Kukreti , 2020

उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) - 185

तल्ला गुराड़ (चौंदकोट) में महानतम वीरांगना तीलू रौतेली परिवार के पुराने भवन में काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी नक्काशी

गढ़वाल, कुमाऊँ , उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी, निमदारी , जंगलादार मकान , बाखली , खोली , मोरी , कोटि बनाल ) काष्ठ कला अलंकरण अंकन; लकड़ी नक्काशी - 185

संकलन - भीष्म कुकरेती

तीलू रौतेली संसार में एक मात्र वीरांगना हुयी है जिसने 15 वर्ष की आयु से सात युद्ध लड़े व दुश्मनों द्वारा धोखे से बीरगति को प्राप्त हुयी थीं। तीलू रौतेली के परिवार के दो पुराने मकानों की सूचना तल्ला गुराड़ से मिली है। प्रस्तुत मकान व भव्य खोली ध्वस्त अवस्था में है। आज वीरांगना तीलू रौतेली के परिवार का उजड़ा बिजड़ा मकान व खोली पर चर्चा होगी।

तल्ला गुराड़ (चौंदकोट, पौड़ी गढ़वाल ) में तीलू रौतेली परिवार के मकान दुपुर , दुखंड व खोली वाला है। काष्ठ कला दृष्टि से तल्ला गुराड़ में तीलू रौतेली परिवार के उजड़े मकान में तिबारी व खोली पर टक्क लगाई जाएगी।

तल मंजिल पर स्थापित खोली (ऊपरी मंजिलों में जाने हेतु आंतरिक मुख्य प्रवेश द्वार ) बेमिशाल नक्काशीदार है। खोली तल मंजिल से पहली मंजिल तक गयी है। खोली के म्वार पर दोनों और सिंगाड़ (स्तम्भ ) हैं व् सिंगाड़ वास्तव में युग्म में हैं (दो तीन लघु स्तम्भों। कड़ियों से मिलकर बनना ) . . तीलू रौतेली परिवार मकान की खोली में चार लघु सिंगा स्तम्भ /कड़ियों को मिलकर एक ओर का सिंगाड़ बना है। आंतरिक कड़ी सपाट है जो ऊपर जाकर मुरिन्ड की भी कड़ी बन जाती है , आंतरिक कड़ी के बाद की कड़ी में बेल बूटों की नक्काशी हुयी है व यह कड़ी भी ऊपर जाकर मुरिन्ड की भूसमानान्तर कड़ी में बदल जाती है, बेल बूटों से सज्जित कड़ी के बाद सपाट कड़ी है जो ऊपर जाकर मुरिन्ड की कड़ी में बदल जाती है। सबसे बाहर मोटी कड़ी है जिसके आधार में कमल युक्त कुम्भियाँ हैं व ऊपर जाकर इस मोटी कड़ी में मुरिन्ड समानंतर में उलटा कमल उभरता है व फिर ड्यूल है व फिर सीधा कमल फूल है। यहां से यह कड़ी थांत (cricket bat blade type ) की शक्ल ले शिखर मुरिन्ड से मिल जाता है। स्तम्भ की सबसे बाहर की कड़ी भी बेल बूटों से सज्जित है व यह बेल बूटों से सज्जित कड़ी ऊपर शिखर मुरिन्ड की कड़ी में परिवर्तित होती है।

खोली में दो मुरिन्ड (शीर्ष ) हैं तल/अधोभव मुरिन्ड व शिखर मुरिन्ड। अधोभव या नीचे के मुरिन्ड की कड़ियों के ऊपर अर्ध वृत्त आकृति में गणेश आकृति व वानस्पतिक आकृति अंकित हैं।

तल या अधोभव मुरिन्ड के ऊपर एक मेहराब है जो शिखर मुरिन्ड निर्माण करता है। मेहराब के बाहरी त्रिभुजों में फूल अंकन हुआ है।

शिखर मुरिन्ड के बगल में दो दो दीवालगीर (bracket ) लकड़ी के चौखटों में स्थापित हैं याने कुछ चार दीवालगीर हैं। दीवालगीर के चौखट बैठवाक में एक शेर अथवा हाथी की काष्ठ आकृति स्थापित हुयी है। ब्रैकेटों पर भी सुंदर ज्यामितीय व वानस्पतिक कटान हुआ है।

ब्रैकेटों के नीचे के भाग की कड़ियों /पटिलों में सुंदर बेल बूटों की नक्काशी हुयी है।

छपरिका से लकड़ी के शंकु भी लटक रहे हैं।

तीलू रौतेली परिवार के प्रस्तुत मकान में तिबारी पहली मंजिल पर स्थापित है। तिबारी में चार स्तम्भ व तीन ख्वाळ हैं। दीवाल को स्तम्भों से जोड़ने वाली दो कड़ियों में शानदार बेल बूटों की महीन नक्काशी हुयी है।

प्रत्येक स्तम्भ के आधार किकुम्भी उल्टे खिले कमल की पंखुड़ियों से निर्मित हुयी हैं। कुम्भी के ऊपर ड्यूल है , ड्यूल के मत्थि उर्घ्वगामी पद्म पुष्प दल से खिला फूल है व यहां से स्तम्भ लौकी शक्ल ( याने ऊपर की और मोटाई कम होना ) अख्तियार करता है। जहां पर स्तम्भ की मोटाई सबसे कम है वहां पर एक उल्टा कमल दल है जिसके ऊपर ड्यूल है जिसके ऊपर खिला कमल फूल है व यहीं से स्तम्भ के दो भाग होते जाते हैं एक भाग थांत का आकर लेता हुआ ऊपर मुरिन्ड से मिल जाता है कुछ ऊपर थांत के किनारे नक्काशी युक्त दो लघु कड़ियाँ भी उभरती हैं व वे भी मुरिन्ड से मिलते हैं। स्तम्भ जहाँ से थांत की शक्ल बन जाती है वहीं से मेहराब का अर्ध मंडल भी शुरू होता है। मेहराब में प्राकृतिक अंकन हुआ है।

तीलू रौतेली परिवार का उजड़ा -बिजड़ा मकान संभवतया 1900 के लगभग ही निर्मित हुआ होगा।

निष्कर्ष में कहा जा सकता है कि मकान में काष्ठ कला में ज्यामितीय , प्राकृतिक व मानवीय अलंकरणों का प्रयोग हुआ है।

सूचना व फोटो आभार : उमेश असवाल

यह लेख भवन कला संबंधित है न कि मिल्कियत हेतु . मालिकाना जानकारी श्रुति से मिलती है अत: अंतर हो सकता है जिसके लिए सूचना दाता व संकलन कर्ता उत्तरदायी नही हैं .

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