गौं गौं की लोककला

तिबारी से संबंधित कुछ शब्द

आभार जानकारी

महेशा नन्द

तिबारी से संबंधित कुछ शब्द

उत्तराखंड के काष्ठ, लोहा, ढोल सागर के ज्ञाता, रुड़या और प्रस्तर शिल्पियों की जितनी प्रशंसा की जाय कम ही है। इन्होंने सदा ही निर्माण किया। बिना किसी लोभ-लालच वे उत्तराखंड को खूबसूरत बनाते गए।

आज की पोस्ट में मैं उन महान शिल्पियों के द्वारा निर्मित लकड़ी तथा पत्थरों से संबंधित शब्दावली प्रस्तुत कर रहा हूँ। तब नाप रखने का कोई साधन नहीं था। मिस्त्री अँगूठे व तर्जनी की सहायता से समकोण बनाते थे। अँगुलियों की रेखाओं से नाप रखकर तिबारियों व पत्थरों पर गढ़ाई करते थे। अंगूठे व अँगुलियों से बनाई गई विभिन्न मुद्राओं से जो नाप रखी जाती थी उस नाप को

#कुंडि कहते थे।

तिबारी के अवयवों के गढ़वाली नाम इस तरह हैं....

#छजपटि- तिबारी को ढकने वाली पत्थरों की छत.

#मथींड- लकड़ी की चौकोर कड़ी जो तिबारी के खम्बों के ऊपर रखी जाती है.

#मूंडि- मथींड के ऊपर रखी कड़ियाँ जो छजपटि के तख्तों के नीचे रखी जाती हैं.

#खाळा-तिबारी के खम्बों के बीच की समान दूरी.

#दिला-वह चौकस और समतल पत्थर जिनके ऊपर तिबारी के खम्बों को उर्ध्वाधर टिकाया जाता है.

#ड्यूलु-वह चौकस व तराश हुआ पत्थर जो दिला के ऊपर रखा जाता है तथा जिस पर तिबारी का खम्ब खड़ा किया जाता है.

#छज्जा-तिबारी के आगे लगे तराशे गए आयताकार समतल पत्थर.

#सीरा- छज्जे के पत्थरों के नीचे के आधार पत्थर जो कलात्मक ढंग से तराशे गये होते हैं वे खडे़ रूप में रखे रहते हैं.

#पाजि- लकड़ी की चौकस बल्ली जिसके ऊपर सीरे के पत्थर टिकाए जाते हैं.

#पीलपाया-तिबारी के मुख्य आधार स्तम्भ.

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महेशा नन्द